तेज विकास दर के बीच सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ऊंची खाद्य महंगाई दर की पहेली को हल करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। अब इनकी उम्मीदें सामान्य मानसून के आधार पर खरीफ सीजन पर टिकी हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक खाद्य महंगाई दर मई में 8.7 फीसदी रही है और पिछले चार माह से लगातार 8.5 फीसदी के उपर बनी हुई है, जबकि खुदरा महंगारी दर (सीपीआई) पांच फीसदी से नीचे है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) के ताजा आंकड़ों में खाद्य महंगाई दर 9.2 फीसदी पर पहुंच गई है। अब सवाल है कि सरकार रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के अनुमान जारी कर रही है तो इनकी कीमतें क्यों बढ़ रही हैं। इस तरह के सवालों के जवाब मिलने की मुश्किल के बीच रिजर्व बैंक ने ताजा मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक के बाद कहा कि महंगाई दर आने वाले दिनों बढ़ सकती है।
असल में सरकार के खुद के आंकड़े उसकी मुश्किल बढ़ा रहे हैं। मई के महंगाई के आंकड़ों के मुताबिक खाद्यान्न महंगाई दर 10.4 फीसदी रही है। लेकिन सरकारी अनुमान में उत्पादन बढ़ता ही रहता है। दो साल पहले देश में गेहूं का उत्पादन गिरा तो सरकार ने वास्तविक गिरावट को मानने से इनकार कर दिया और उनमें मामूली संशोधन किया। उसके बाद पिछले साल भी बेहतर उत्पादन के अनुमान जारी किये गये, लेकिन सरकारी खरीद 262 लाख टन पर अटक गई और सरकारी खरीद के सीजन के बीच में ही स्टॉक लिमिट लागू करनी पड़ी। अब इस साल भी रिकॉर्ड उत्पादन का दावा किया जा रहा है। इसके बावजूद गेहूं की सरकारी खरीद 266 लाख टन तक ही पहुंची है।
गेहूं के 2275 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले बाजार में कीमतें 2600 रुपये प्रति क्विटंल को पार कर गई हैं। वहीं 1 अप्रैल, 2024 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 16 साल के निचले स्तर पर रह गया था। कमजोर खरीद के चलते 1 जून, 2024 को केंद्रीय पूल में गेहूं स्टॉक 299.05 लाख टन पर रहा जबकि पिछले साल इसी तिथि को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 313 लाख टन था।
पिछले साल कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने खुले बाजार की योजना के तहत 100 लाख टन से अधिक गेहूं की बिक्री की थी। इस साल आयात शुल्क में कमी की अटकलों के बीच सरकार को बयान देना पड़ रहा है कि उसके पास कीमतों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त स्टॉक है। अब सवाल उठता है कि जब देश में 11.2 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जारी किया गया तो सरकारी खरीद सीजन के दौरान ही कीमत एमएसपी से इतना उपर कैसे चली गई। इसकी एक बड़ी वजह सरकारी स्टॉक कम होना माना जा रहा है।
इसके अलावा दालों और खाद्य तेलों की कीमतों में भी तेजी आई है। खाद्य तेलों का मई में आयात पिछले साल के मुकाबले 45 फीसदी बढ़ा है। इसके बावजूद मई में खाद्य तेल 6.7 फीसदी महंगे हुए हैं, जबकि एक साल पहले इनकी कीमतें गिर रही थीं। इसके साथ ही जब देश के सबसे बड़े तिलहन सरसों की फसल बाजार में आई तो अधिकांश किसानों को 5650 रुपये प्रति क्विटंल के एमएसपी से कम दाम पर इसे बेचना पड़ा। लेकिन अब कीमतें 6200 रुपये प्रति क्विटंल पर पहुंच गई हैं।
मई के थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के अनुसार, खाने-पीने की चीजों की थोक महंगाई दर इस साल मई में 9.82 फीसदी रही, जबकि अप्रैल में यह 7.74 फीसदी थी। इसी तरह मई में सब्जियों की थोक महंगाई दर 32.42 फीसदी रही, जो अप्रैल में 23.60 फीसदी थी। वहीं, प्याज की महंगाई दर 58.05 फीसदी, आलू की 64.05 फीसदी और दालों की महंगाई दर 21.95 प्रतिशत रही।
दालों की खुदरा महंगाई दर 17.1 फीसदी पर पहुंच गई है। इनमें अरहर की कीमत 32.1 फीसदी बढ़ी हैं। दालों के मामले में चना का उदाहरण हमारे सामने है। जब सरकार के पास दो साल की खरीद के चलते स्टॉक अधिक था तो उसे कम कीमतों पर बेचकर पांच लाख टन से कम पर ला दिया गया। वहीं इस साल कीमतें बढ़ने के चलते उसकी खरीद केवल 45 हजार टन पर सिमट गई। अब कीमतों पर अंकुश के लिए आस्ट्रेलिया और दूसरे देशों से आयात का सहारा है।
चीनी उत्पादन को लेकर जब पिछले साल अगस्त में उद्योग ने उत्पादन में गिरावट का अनुमान जारी किया तो सरकार ने सफाई मांग ली। लेकिन जब उत्पादन गिरने लगा तो एथेनॉल के लिए गन्ने के रस और बी हैवी मोलेसेज पर रोक जैसे कदम उठाये। कमजोर उत्पादन के चलते चीनी के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। हाल ही में डेयरी कंपनियों ने दूध के दाम भी बढ़ाए, जिसका असर आने वाले समय में महंगाई के आंकड़ों में दिखेगा।
जीडीपी के एडवांस एस्टीमेट में कृषि जीडीपी की वृद्धि दर को 0.6 फीसदी से बढ़ाकर 1.4 फीसदी कर दिया गया जबकि अधिकांश फसलों का उत्पादन गिरा। उत्पादन के आंकड़ों के साथ ही बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी भी इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं अधिक उत्पादन के आंकड़ों पर बाजार पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रहा है। सामने आए आंकड़ों के आधार पर महंगाई का हल ढूंढ़ना कैसे संभव होगा जब वास्तविकता कहीं और है। मानसून सामान्य रहने की स्थिति में खरीफ का बेहतर उत्पादन कुछ राहत जरूर ला सकता है, लेकिन रिजर्व बैंक और सरकार को महंगाई के मोर्चे पर फतह पाने के लिए सही आंकड़ों की उपलब्धता पर फोकस करना होगा।