आज पूरी दुनिया ‘अंतरराष्ट्रीय पौधा स्वास्थ्य दिवस’ यानी इंटरनेशनल डे ऑफ प्लांट हेल्थ मना रही है। इससे मनुष्य के जीवन में फसली पौधों के महत्व का पता चलता है। सभ्यता की शुरुआत से बीमारियों, कीटों और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए अच्छी क्वालिटी के बीज और स्वस्थ पौधों का महत्व जगजाहिर है। दुनिया में हर साल बीमारियों और कीटों से 200 से 300 अरब डॉलर की फसलों का नुकसान होता है। कीटो से फसलों को होने वाला नुकसान 10 से 40% तक है। जलवायु परिवर्तन भी पौधों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है जिससे विश्व खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।
वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी 10 अरब हो जाएगी। तब 60% अतिरिक्त खाद्य पदार्थों की जरूरत होगी, जबकि जमीन, पानी, जैव-विविधता जैसे प्राकृतिक संसाधन कम होंगे। इसलिए वर्ष 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) को हासिल करना बहुत मुश्किल काम होगा। खास तौर से गरीबी दूर करने (एसडीजी 1), कोई भूखा ना रहे (एसडीजी 2), क्लाइमेट एक्शन (एसडीजी 13) और भूमि पर स्वस्थ जीवन (एसडीजी 15) से संबंधित लक्ष्यों को। इस दिशा में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है ताकि स्वस्थ फसलें तैयार की जा सकें, साथ ही बायोटिक और एबायोटिक दबाव और जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों से बचाया जा सके।
कीट एवं बीमारियां- पौधों की सेहत के लिए वास्तविक खतरा
पौधों पर कीटों और बीमारियों के हमले विश्व खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में ब्राउन स्पॉट फंगस (हेलमिंथोस्पोरियम ओरिजाइ) के हमले ने चावल की फसल को 50 से 90% तक नुकसान पहुंचाया। इसका नतीजा 20 लाख लोगों की मौत (बंगाल का अकाल 1942-43) के रूप में सामने आया। फाइटोप्थोरा इनफेस्ट के हमले से आलू में लेट ब्लाइट से आयरलैंड में 10 लाख से अधिक लोगों की जान चली गई (आयरिश अकाल 1845)। टारो लीफ ब्लाइट (फाइटोप्थोरा कोलोकासिया) से 1993 में समोआ में लगभग 100% नुकसान हुआ, जिससे प्रशांत क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो गया।
दशकों से गेहूं की फसल भी ब्लैक, ब्राउन और येलो रस्ट तथा करनाल बंट से प्रभावित होती रही है। दो दशकों से ताकतवर स्टेम ब्लैक रस्ट (ug99), जिसे पहले सबसे पहले युगांडा में देखा गया था, का बोरलॉग ग्लोबल रस्ट इनीशिएटिव (बीजीआरआई) के तहत समाधान किया जा रहा है। गेहूं की 90% किस्मों को इससे खतरा है और अब यह ईरान तक पहुंच गया है। हाल में फॉल आर्मीवर्म (स्पोडोप्टेरा फ्रूगीपर्डा) के पूर्वी अफ्रीका, बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल में हुए हमले से फसलों को 40% तक नुकसान हुआ।
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भारत में 2001 में जेनेटिकली मॉडिफाइड बीटी कॉटन रिलीज किए जाने से पहले बॉलवर्म (हेलीकॉवेरपा आर्मीगेरा) से फसल को बचाने के लिए रासायनिक कीटनाशकों के स्प्रे की जरूरत पड़ती थी। कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का लगभग आधा इन्हीं पर इस्तेमाल होता था। सौभाग्यवश बीटी कॉटन से छोटे किसानों को बीते दो दशक में काफी फायदा हुआ है। उनका कीटनाशकों का प्रयोग लगभग 40% कम हो गया है। इस तरह जेनेटिकली मॉडिफाइड कॉटन को अपनाने से भारत न सिर्फ कपास का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बना बल्कि एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी बन गया है।
एकाधिक देशों में फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए विकासशील देशों में पूरे देश के स्तर पर एक प्रभावी क्वारंटाइन उपाय अपनाने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में प्रभावी क्वारंटाइन सिस्टम अपनाने से गेहूं की फसल को करनाल बंट से तथा अन्य फसलों को भी दूसरे कीटों से बचाया जा सका है। इस तरह विभिन्न फसलों और क्षेत्रों में बीमारियों और कीटों से पौधों को बचाने के लिए मजबूत प्लांट क्वॉरंटाइन सिस्टम महत्वपूर्ण है।
ग्लोबल एक्सचेंज और केला, कसावा, आलू, जिमीकंद, मीठा आलू के साथ नींबू और सेब जैसे फलों के उत्पादन में स्वस्थ पौधे तैयार करने और अच्छी क्वालिटी की उपज हासिल करने में सर्टिफाइड प्लांटिंग मैटेरियल की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
पौधों की सेहत सुधारने के लिए क्रॉप ब्रीडिंग
वैश्विक खाद्य, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्लांट जेनेटिक रिसोर्स महत्वपूर्ण हैं। आकार छोटा करके जेनेटिक सुधार और प्रकाश के प्रति असंवेदनशील जीन से गेहूं और चावल के मामले में दक्षिण एशिया में हरित क्रांति में सफलता मिली। वाइल्ड जर्म्प्लाज्म के प्रयोग द्वारा नोबिलाइजेशन से भारत में गन्ना उत्पादन में भी क्रांति आई। नोबिलाइजेशन से गन्ने का उत्पादन उष्णकटिबंधीय दक्षिण से उत्तर भारत के समशीतोष्ण क्षेत्रों तक फैलाने में मदद मिली। खासकर समय से पहले फसल और तने को सड़ने से रोकने के मामले में।
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जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों से बचने के लिए हमें तत्काल ऐसे जीन की आवश्यकता है जिनमें सूखा, अधिक गर्मी, बाढ़, बीमारी, कीटों के हमले आदि की प्रतिरोधी क्षमता हो। इसके अलावा इनोवेटिव जीनोम एडिटिंग (क्रिस्पर/सीएस9) टेक्नोलॉजी के प्रयोग से एकाधिक रजिस्टेंस जीन की स्टैकिंग के लिए भी प्रयास तेज करने की जरूरत है। इसके लिए विश्व स्तर पर प्लांट ब्रीडिंग के प्रयास तेज करने पड़ेंगे। इसमें नार्स और सीजीआईएआर (NARS and CGIAR) के बीच मजबूत साझेदारी के साथ के अलावा निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी भी शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र के संगठन एफएओ की स्टडी के अनुसार अनेक विकासशील देशों में प्लांट ब्रीडिंग के प्रयासों में बड़े पैमाने पर कमी आई है। इसलिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की मदद से चलने वाले ग्लोबल इनीशिएटिव ऑन प्लांट ब्रीडिंग को एफएओ विकासशील देशों में अमल में ला रहा है।
‘एक स्वास्थ्य’ की अवधारणा को बढ़ावा
हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2020 को ‘इंटरनेशनल प्लांट हेल्थ इयर’ घोषित किया था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इस पर ज्यादा काम नहीं हो सका। इसके विपरीत ‘एक स्वास्थ्य’ (मिट्टी, पौधा, पशु, मनुष्य) की अवधारणा को व्यापक प्रमुखता दी जा सकती है। एक सेहत ऐसा एकीकृत अप्रोच है जो विभिन्न पारिस्थितिकी में मिट्टी, पौधे, पशु और मनुष्य की सेहत को दीर्घकालिक तरीके से संतुलित और अप्टिमाइज करता है। एक सेहत अवधारणा का एक प्रमुख लक्ष्य खाद्य सुरक्षा भी है, क्योंकि इसमें स्वस्थ खाद्य उत्पादन, प्रोसेसिंग, वैल्यू चेन और मार्केटिंग की बात कही गई है। इसलिए सभी पक्षों (किसानों, उपभोक्ताओं, शोधकर्ताओं, निजी क्षेत्र, एनजीओ और सरकारी अधिकारियों) को ज्यादा समन्वित तरीके से सस्टेनेबल खाद्य उत्पादन की दिशा में काम करने की जरूरत है, ताकि ऐसे स्वस्थ फसली पौधे तैयार किए जा सकें जो हमारी खाद्य और पोषण सुरक्षा को पूरा करें। इसके अलावा हमें कम से कम प्रमुख खाद्य फसलों के मामले में कीटों और बीमारियों के हमले का पूर्वानुमान बताने वाले ऑटोमेटेड सिस्टम विकसित करने की जरूरत है।
सस्टेनेबिलिटी के लिए फसल विविधीकरण
सब्जियों, फलों, मसालों, औषधीय पौधों इत्यादि जैसी अधिक कीमत दिलाने वाली फसलों की ओर खेती के विविधीकरण से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और गरीबी में कमी आएगी। अनाज, मिलेट, दाल, तिलहन, सब्जियों और फलों की हाल में विकसित बायोफोर्टीफाइड वैरायटी को अब बढ़ावा देने की जरूरत है। इनमें पोषण अधिक होता है।
वर्ष 2023 अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष भी है। मिलेट में सूखा, अधिक गर्मी के साथ कीटों और बीमारियों की प्रतिरोधी क्षमता होती है। चावल और गेहूं की तुलना में इनमें प्रोटीन, फाइबर, मिनरल और विटामिन अधिक पाए जाते हैं। फूड बास्केट में उनके अधिक इस्तेमाल से वैश्विक भूख की समस्या (ग्लोबल हंगर) के समाधान में मदद मिल सकती है। हाल में आयोजित संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली सम्मेलन (यूएन फूड सिस्टम्स समिट) में भी स्थानीय फसलों पर शोध तथा उनका इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दिया गया।
अनाज केंद्रित क्रॉपिंग सिस्टम से हटकर विविध और एकीकृत कृषि प्रणाली (अनाज और फलीदार पौधे आधारित) को अपनाना अधिक सस्टेनेबल होगा। इससे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण तथा पुनरुत्थान वाली खेती को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। अभी तक फसल विविधीकरण और सेहतमंद फसलों को उपजाने से वैश्विक खाद्य सुरक्षा को पाने में मदद मिली है। लेकिन स्वस्थ पौधों के बीजों का प्रयोग करते हुए स्थानीय खाद्य प्रणाली को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी को हासिल करने में अधिक मदद मिल सकती है।
(डॉ. आर एस परोदा TAAS के चेयरमैन, DARE के पूर्व सचिव और ICAR के पूर्व डायरेक्टर जनरल हैं)