18वीं लोकसभा चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। हमेशा की तरह राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र लेकर आए हैं और बताया है कि सत्ता में आने पर वे क्या करेंगे। इन घोषणा पत्रों में उठाए गए मुद्दों में भ्रष्टाचार, सरकार में स्थिरता, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता आदि शामिल हैं। लेकिन इनमें पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने कोई जिक्र नहीं है, जबकि यही एक तरीका है कि शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करके ग्राम वासियों को राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनाया जा सकता है।
इस लेख में यह बताया गया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में पंचायती राज को कितनी जगह दी है। इसके साथ ही इसमें यह बताने की भी कोशिश की गई है कि अतीत में स्थानीय ग्रामीण शासन में इन राजनीतिक दलों ने क्या कदम उठाए हैं।
भारत इस समय जिन समस्याओं से जूझ रहा है उनमें से यह समस्या दो कारणों से अहम हो जाती है। पहला कारण तो यह है कि देश की 68% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, इसलिए इस क्षेत्र में घटित होने वाली हर घटना पूरे देश को प्रभावित करती है। दूसरा, 73वें संविधान संशोधन के बाद गांव, ब्लॉक और जिला स्तर के करीब 34 लाख पंचायत प्रतिनिधि हैं। यह निचले स्तर पर दुनिया का सबसे बड़ा प्रतिनिधित्व है और इसकी अनदेखी करने का मतलब है देश हित की अनदेखी करना। यहां हम कुछ चुनावी घोषणा पत्रों की तुलना करते हैं और इस बात का आकलन करते हैं कि राजनीतिक दलों ने विकेंद्रीकृत लोकतंत्र को गहरा बनाने की क्या मंशा दिखाई है।
इंडियन नेशनल कांग्रेस ने न्याय पत्र नाम से जो घोषणा पत्र जारी किया है, उसमें कहा गया हैः
-जीएसटी रेवेन्यू का एक हिस्सा पंचायतों को दिया जाएगा।
-हम राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऐसा फार्मूला बनाएंगे ताकि जीएसटी रेवेन्यू का एक हिस्सा समेत विभिन्न फंड को सीधे पंचायत और निगमों को दिया जा सके।
-हम रिन्यूएबल एनर्जी स्कीम लागू करेंगे जिस पंचायत और निगम बिजली के मामले में यथासंभव आत्मनिर्भर हो सकेंगे।
-73वें और 74वें संविधान संशोधन के निर्माता के रूप में कांग्रेस पार्टी राज्यों से इनके प्रावधानों को वास्तविक अर्थों में लागू करने तथा पंचायतों और निगमों को फंड मुहैया कराने के लिए कहेगी। कांग्रेस ग्राम पंचायत से जुड़े मसलों में ग्राम सभा की भूमिका और उनकी अथॉरिटी बढ़ाएगी। हम निम्नलिखित नियमों के पालन में ग्राम सभा की भूमिका बढ़ाएंगेः
क) पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट 1996
ख) द फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006
ग) द लैंड एक्विजिशन एक्ट 2013
-कांग्रेस उत्तर पूर्वी राज्यों में स्वायत्त जिला परिषदों को आर्थिक मदद बढ़ाएगी।
-कांग्रेस उत्तर पूर्वी राज्यों में स्वायत्त जिला परिषदों को रिवाइव करेगी तथा उन्हें स्थानीय प्रशासन के लिए एक सक्षम इंस्ट्रूमेंट बनाएगी। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि विकास कार्यों के लिए स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से ज्यादा फंड आवंटित किए जाएं।
घोषणा पत्र में कहा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनके खनन के प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले संबंधित पंचायत अथवा निगम प्रतिनिधियों के साथ सलाह मशविरा किया जाएगा।
-कांग्रेस पानी तक पहुंच और पानी के लोकतांत्रिक वितरण पर विशेष ध्यान देगी। बांधों और जल निकायों में भंडारण पर फोकस, भूजल स्तर बढ़ने के उपाय तथा जल प्रबंधन के बड़े भागीदारी कार्यक्रम शुरू करके हम इन मुद्दों का समाधान तलाशने की कोशिश करेंगे। इनमें राज्य सरकारों, सिविल सोसाइटी संगठनों, किसानों, पंचायत और ग्राम सभाओं तथा निगमों को भी शामिल किया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी ने संकल्प पत्र नाम से अपने चुनावी घोषणा पत्र में मोदी की गारंटी टैगलाइन के साथ ये वादे किए हैंः
-हम पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय स्वायत्तता और सस्टेनेबिलिटी के लिए कदम उठाएंगे।
-पर्वतीय राज्यों में सतत विकास की बात करते हुए घोषणा पत्र में कहा गया है, हम राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के साथ मिलकर विशेष मास्टर प्लान बनाएंगे ताकि उन स्थानों की नैसर्गिक सुंदरता और जैव विविधता बरकरार रहे। इसमें स्थानीय भूगोल, संस्कृति और परंपराओं का ध्यान रखते हुए पर्वतीय क्षेत्र का संतुलित विकास किया जाएगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी ने अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया हैः जीडीपी का एक हिस्सा स्थानीय स्व-शासन के खर्च के रूप में निर्धारित किया जाएगा। स्थानीय निकायों को दी जाने वाली राशि राज्य सरकारों के माध्यम से दी जाएगी।
समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र को जनता का मांग पत्र; हमारा अधिकार बताया है। इसमें डॉ राम मनोहर लोहिया का जिक्र कई जगहों पर है लेकिन ग्रामीण स्थानीय शासन के लिए एक शब्द भी नहीं कहा गया है, जबकि डॉ. लोहिया इसके बड़े समर्थक थे। डॉ लोहिया गांव, जिला, राज्य और केंद्र को ‘चार पिलर स्टेट’ कहते थे, उसका पार्टी विकेंद्रीकरण की नीति के तहत जिक्र कर सकती थी और अपना आशय बता सकती थी।
पार्टी के घोषणा पत्र में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के विकास की बात कही गई है। पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत बनाकर स्थानीय स्तर पर इसे आसानी से हासिल किया जा सकता है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण शासन के संदर्भ में चुनावी घोषणा पत्र में कोई चिंता नहीं दिखाई गई है।
इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल के घोषणा पत्र में पंचायत को सशक्त बनाने का कोई जिक्र नहीं है। द्रविड़ मुनेत्र कषगम ने भी पंचायत को मजबूत बनाने का कोई वादा नहीं किया है। ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने पंचायत को मजबूत बनाने की कोई बात नहीं कही है, सिवाय इसके कि सेवाओं की डिलीवरी के लिए समय-समय पर ग्राम पंचायत और वार्ड स्तर पर कैंप का आयोजन किया जाएगा।
उम्मीद तो यह थी कि समाजवाद में भरोसा रखने वाले और डॉ. लोहिया के अनुगामी मजबूत स्थानीय शासन की पैरोकारी करते। लेकिन शायद यह भी कहा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी, आरजेडी, डीएमके और टीएमसी यह सभी राजनीतिक दल इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं। वे कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र पर आश्रित हैं। पंचायत के रूप में विकेंद्रीकृत लोकतंत्र को मजबूत बनाने का वादा करने वाली कांग्रेस एक मात्र पार्टी दिखती है।
टिप्पणी
पंचायत के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में जो जिक्र किया गया है, उससे यही लगता है कि सिवाय कांग्रेस के, अन्य किसी भी पार्टी ने इस दिशा में प्रयास नहीं किया है। कांग्रेस पार्टी ने न सिर्फ पंचायत के साथ जीएसटी साझा करने का वादा किया है, बल्कि स्थानीय शासन को उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा देश के जनजातीय इलाकों में भी मजबूत बनाने की बात कही है।
ग्रास रूट स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में एक और कदम यह है कि स्थानीय समस्याओं के समाधान में ग्राम सभाओं को शामिल किया जाए। बेहतर होता अगर कांग्रेस उन विषयों का भी जिक्र करती जो पंचायत से जिला पंचायत स्तर तक विकेंद्रीकरण के लिए जरूरी हैं।
कांग्रेस बीआरजीएफ जैसे कार्यक्रम लागू करने का वादा कर सकती थी। इस कार्यक्रम के तहत जिला प्लानिंग कमेटी का गठन अनिवार्य है। इनके अलावा स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत न्यायपालिका को भी पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल किया जा सकता था।
भारतीय जनता पार्टी ने पंचायती राज संस्थाओं की आर्थिक स्वायत्तता और उनकी सस्टेनेबिलिटी की बात कही है। आशय तो बहुत अच्छा है, लेकिन सवाल है कि यह होगा कैसे। इस संदर्भ में हर घर जल स्कीम अथवा जल जीवन मिशन का जिक्र उदाहरण के तौर पर किया जा सकता है।
कार्यक्रम के ऑपरेशनल गाइडलाइंस (2019) में सिर्फ ग्राम पंचायत को शामिल करने की बात कही गई है। इंटरमीडिएट (पंचायत समिति, ब्लॉक समिति, जनपद पंचायत, क्षेत्र पंचायत) और अपेक्स स्तर (जिला पंचायत) को इसमें शामिल नहीं किया गया है। आश्चर्यजनक रूप से लागू करने वाली सपोर्ट एजेंसी, जैसे एनजीओ का जिक्र है लेकिन ब्लॉक और जिला स्तर पर पंचायत को शामिल नहीं किया गया है।
जिला स्तर पर एक अलग जिला जल एवं स्वच्छता मिशन शुरू किया गया है, लेकिन जिला पंचायत संस्थानों में कोई भरोसा नहीं दिखाया गया है, जो एक संवैधानिक निकाय है। इस व्यवस्था के तहत कार्यक्रम को लागू करने में बेमेल भाव दिखता है। दूसरी बात यह कि उन्होंने पंचायत के ग्रांट लेने को नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने गवर्नेंस को परिभाषित करते हुए कहा था, “विकास के लिए किसी देश के आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में अधिकारों का किस तरह इस्तेमाल होता है।” यह बात मौजूद संदर्भ में प्रासंगिक नहीं लगती है। इसके विपरीत गवर्नेंस वह है जिसमें प्रासंगिक नियमों तथा प्रावधानों को देश के लोगों को साथ जोड़ते हुए लागू किया जाए।
(लेखक स्थानीय प्रशासन और विकास मामलों के विशेषज्ञ हैं)