मानव आबादी के विस्तार के साथ-साथ पशुजन्य (जूनोटिक) बीमारियों का एक लंबा इतिहास रहा है जो जानवरों और मनुष्यों के बीच फैलती है। हवाई परिवहन और वैश्वीकरण की प्रगति ने दुनिया भर में संक्रामक रोगों के तेजी से प्रसार को और भी आसान बना दिया है। संक्रामक रोगों के विस्तार, पशुजन्य संबंधी नई-नई बीमारियों के आने, रोग संचरण (ट्रांसमिशन) पर शहरीकरण के प्रभाव और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए पशुजन्य रोगों (जूनोसेस) के महत्व की इस लेख में पड़ताल की गई है।
उभरती पशुजन्य बीमारियां
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि अधिकांश उभरती संक्रामक बीमारियां (ईआईडी) जूनोसेस (पशुजन्य रोग) हैं जो सभी संक्रामक बीमारियों का 60.3 फीसदी है। इनमें से 71.8 फीसदी वन्यजीवों में उत्पन्न होते हैं, जैसे सार्स (सीवियर एक्यूट रेसपेरिटरी सिंड्रोम) और इबोला वायरस। पिछले चार दशकों में ऐसी लगभग 50 नई बीमारियों की पहचान की गई है। इनमें इक्वाइन मॉर्बिली वायरस, निपाह वायरस, दक्षिण अमेरिकी हंता वायरस और नए स्ट्रेन एर्लिचिया एवं बेबेसिया शामिल हैं जो मनुष्यों में गंभीर बीमारियों या मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
शहरीकरण और रोग संचरण
शहरीकरण की प्रक्रिया ने ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर बड़े पैमाने पर श्रमिकों की आवाजाही को बढ़ाया है। इसकी वजह से पशुजन्य रोगों का संभावित प्रसार हुआ है। लीमा, पेरू जैसे शहरी समुदायों और गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक जैसे संघर्ष वाले क्षेत्रों में ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों का प्रकोप अनियंत्रित शहरीकरण के परिणामों को उजागर करता है। नए क्षेत्रों में मानव आबादी का विस्तार भी पशुजन्य रोगों के उत्पन्न होने में योगदान देता है। उदाहरण के लिए, पेरू और ब्राजील के सुदूर जंगलों में नए कृषि समुदायों के बसने से पिशाच-चमगादड़ रेबीज का बड़ा प्रकोप हुआ।
एशिया में जापानी एन्सेफलाइटिस एक महत्वपूर्ण पशुजन्य बीमारी है जो हर साल हजारों लोगों को प्रभावित करती है। यह बीमारी धान के खेत की सिंचाई पद्धतियों से करीब से जुड़ी हुई है। धान का खेत स्थिर पानी का बड़ा क्षेत्र होता है जो वायरस फैलाने वाले मच्छरों के लिए एक आदर्श प्रजनन भूमि प्रदान करती है। इन स्थिर जल निकायों में मच्छर पनपते हैं और इन क्षेत्रों में मानव आबादी की निकटता से संचरण का खतरा बढ़ जाता है। एशिया में जापानी एन्सेफलाइटिस की घटना खासतौर पर अधिक है। सालाना इसके लगभग 30 हजार मानव मामले आते हैं जिससे लगभग 7,000 लोगों की मौत हो जाती है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य
जहां तक मानव स्वास्थ्य की बात है तो पशुजन्य रोगों की ज्यादा संख्या, उनकी बढ़ती आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) और गंभीरता के कारण यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अनुमान है कि दुनिया भर में सालाना 40-70 हजार लोग रेबीज से मरते हैं, खासकर कुत्ते के काटने के कारण। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पशुजन्य रोग विशेषज्ञ समिति ने 250 से अधिक पशुजन्य रोगों की पहचान की है। आमतौर पर इनसे संक्रमण तब होता है जब मनुष्य संक्रमित जानवरों के संपर्क में आता है, जैसा कि रेबीज, ब्रुसेलोसिस और टीबी जैसी बीमारियों में देखा जाता है। पशुजन्य बीमारियों से न केवल मानव जीवन का नुकसान होता है, बल्कि रोगग्रस्त पशुओं का नुकसान, कृषि उत्पादन में कमी, इसकी रोकथाम और उपचार की लागत और मानव उत्पादकता में कमी के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक बोझ भी पड़ता है।
रोकथाम एवं नियंत्रण
पशुजन्य रोगों की रोकथाम और नियंत्रण में तीन स्तरीय दृष्टिकोण शामिल हैं- मनुष्यों की प्रत्यक्ष सुरक्षा, पशुओं में संक्रमण को कम करना या समाप्त करना और वेक्टर-विरोधी उपाय। मनुष्यों की प्रत्यक्ष सुरक्षा करने के तहत विशिष्ट टीकाकरण कार्यक्रम आवश्यक हो सकते हैं, जैसे सीवेज श्रमिकों के लिए लेप्टोस्पायरोसिस टीकाकरण या पशु चिकित्सकों और टैक्सिडर्मिस्ट जैसे उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए रेबीज टीकाकरण। पशुओं में संक्रमण को कम करने के लिए कुत्तों में रेबीज की रोकथाम के लिए टीकाकरण, जानवरों को बांध कर या बंद रखना, काटने वाले कुत्तों को अलग रखना और आवारा जानवरों को हटाना आवश्यक है। इसके अलावा जानवरों में रोग नियंत्रण के लिए बीमार और संक्रमित जानवरों को मारने के साथ-साथ संक्रमित झुंडों को अलग रखने एवं उनकी जांच जरूरी है। खेतों और बूचड़खानों में स्वच्छ (हाइजेनिक) प्रबंधन प्रथाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संक्रामक वायरस के प्रसार को रोकने के लिए वेक्टर और वाहन नियंत्रण उपाय आवश्यक हैं। साथ ही खाद्य श्रृंखला से संक्रमित सामग्रियों को पूरी तरह से हटाना आवश्यक है। खाद्य और कृषि संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और डब्ल्यूएचओ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन पशुजन्य रोगों के प्रसार को रोकने और नियंत्रित करने के लिए नियमों और अंतर-एजेंसी सहयोग के सामंजस्य की सुविधा प्रदान करते हैं।
दुनिया में लोगों के बीच बढ़ती परस्पर संबद्धता के साथ-साथ पशुजन्य बीमारियां सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण खतरा बन गई हैं। पशुजन्य संबंधी नई बीमारियों के उत्पन्न होने, शहरीकरण और पर्यावरणीय परिवर्तनों से रोग संचरण का खतरा बढ़ गया है। इसे रोकने और नियंत्रित करने के लिए मानव और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों, वेक्टर नियंत्रण, टीकाकरण और प्रभावी निगरानी प्रणालियों को शामिल करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इन बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण को प्राथमिकता देकर हम मानव और पशु आबादी पर इनके प्रभाव को कम कर सकते हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार ला सकते हैं और इनसे जुड़े आर्थिक बोझ को कम कर सकते हैं।
(डॉ. अब्दुस सबूर शेख सामुदायिक पशु चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। ग्रामीण भारत में पशुधन आधारित आजीविका विकास में उन्हें 20 वर्षों से अधिक का अनुभव है।)