पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार अपने एक महीने पूरे करने वाली है। इसने कई लोकलुभावन घोषणाएं की हैं लेकिन अभी तक ये घोषणा मात्र ही हैं, उन पर अमल नहीं हो सका है। मुख्यमंत्री भगवंत मान और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल अच्छी तरह जानते हैं कि उनका यह हनीमून पीरियड ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा, खासकर ऐसे समय जब प्रदेश के किसान मंडियों में गेहूं की खरीद की समस्या से परेशान हैं और राज्य में बिजली की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
यदि बिजली की बढ़ती मांग को पूरा ना किया गया तो पार्टी को मिले भारी बहुमत का उत्साह जल्दी ही बेचैनी में तब्दील हो सकता है। आगे धान का सीजन आने वाला है जिसके लिए भूजल की जरूरत होगी और उस पानी के लिए बिजली के मोटर या डीजल जनरेटर सेट की जरूरत पड़ेगी। डीजल के दाम उबल रहे हैं और किसान प्रदेश के नए मुख्यमंत्री को उनका 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा याद दिला रहे हैं। वे केजरीवाल की अन्य गारंटी भी याद दिलाने से नहीं चूक रहे।
मान इस बेचैनी को महसूस कर सकते हैं। वे घायल विपक्ष से भी चिंतित होंगे जो आप सरकार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे। इसलिए मान कहते हैं, “पंजाबियों थोड़ा समा देव” (पंजाबियों मुझे थोड़ा समय दीजिए)। 12 अप्रैल को दिल्ली रवाना होने से पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर यह पोस्ट किया था। कहा जा रहा है कि 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने के वादे को कैसे पूरा किया जाए, इस पर केजरीवाल से चर्चा के लिए वे दिल्ली गए थे। इसके अलावा प्रदेश की सभी वयस्क महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए पेंशन देने का भी वादा है।
पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 117 सीटों में से आम आदमी पार्टी को 92 सीटों पर जीत मिली थी। पार्टी के वादों को लेकर शुरू से ही सवाल किए जा रहे हैं कि इन सब के लिए पैसे कहां से आएंगे। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने चुनाव अभियान के दौरान भी यह सवाल उठाए। हालांकि सवाल उठाने से पहले उन्होंने अपने ही सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल के बजट भाषण को नहीं पढ़ा। 2021-22 के बजट में मुफ्त बिजली के लिए 7,180 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। कांग्रेस के 5 वर्षों के शासनकाल में 15 लाख किसानों को 30,000 करोड़ रुपए की मुफ्त बिजली दी गई। कहा जा सकता है कि सिद्धू को शायद यह नहीं मालूम था कि वह केजरीवाल के खिलाफ लड़ रहे हैं या अपनी ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ।
इसी तरह कांग्रेस सरकार के समय अनुसूचित जाति, जनजाति, दलित और कई अन्य वंचित वर्ग की महिलाओं को पेंशन दी जा रही थी। इन सभी वर्गों को मिला लें तो प्रदेश की बड़ी महिला आबादी को पेंशन मिल रही थी।
कांग्रेस अपनी इन योजनाओं का राजनीतिक लाभ लेने में कैसे चूक गई यह एक अलग मुद्दा हो सकता है। अब जो बात है वह यह कि मुफ्त बिजली और महिला पेंशन दोनों पहले से चल रही थी और आप सरकार को सिर्फ उन्हें जारी रखना है। निश्चित रूप से इसके लिए ज्यादा संसाधन चाहिए और प्रचार-प्रसार का भी बजट लंबा चौड़ा होगा। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि मान के विरोधी इन बातों पर अमल को जितना मुश्किल बता रहे हैं वास्तव में वह उतना मुश्किल नहीं होगा।
विधानसभा के पहले सत्र में वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने 3 महीने के लिए 37,120 करोड़ रुपए का जो लेखानुदान पेश किया है, उसमें इन मदों में ज्यादा प्रावधान किए गए हैं। बजट के आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि शिक्षा पर ज्यादा फोकस किया गया है। शिक्षा के लिए इस लेखानुदान में 4,643 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा कृषि के लिए 2,367 करोड़, सामाजिक सुरक्षा तथा महिला एवं बाल विकास के लिए 1,484 करोड़ और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के लिए 1,345 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। ध्यान देने की बात यह है कि यह प्रावधान सिर्फ अप्रैल-जून तिमाही के लिए हैं। चीमा अभी पूर्ण बजट बना रहे हैं, उससे पता चलेगा कि वादों पर पूरी तरह अमल किया जा रहा है या नहीं।
अल्पावधि से मध्यम अवधि तक देखें तो राज्य को 4,788 करोड़ रुपए के ब्याज भुगतान के बावजूद वित्तीय स्थिति को मैनेज करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। राज्य पर करीब तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज है जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 45 फ़ीसदी है। करीब दो लाख करोड़ रुपए के सालाना बजट में से 20000 करोड़ रुपए ब्याज भुगतान के लिए होंगे। कर्ज की स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन यह देखकर कि दूसरे राज्यों के हालात भी लगभग ऐसे ही हैं (सिवाय दिल्ली के), स्थिति को गंभीर नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने तो इस बात पर खुशी जताई थी कि राज्य के कर्ज को 2021-22 तक 2.73 लाख करोड़ रुपए तक सीमित रखा गया और राज्य उन पर समय पर ब्याज चुकाने में भी सक्षम था। बादल ने इसका श्रेय स्वयं को और कांग्रेस सरकार को दिया था। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू ने ही कर्ज को बहुत ज्यादा करार दिया था।
दीर्घ काल में देखा जाए तो मुख्य मुद्दा राज्य के आर्थिक ढांचे में है। अगर इस ढांचे में धीरे-धीरे बदलाव नहीं होता है तो हालात आप सरकार के लिए मुश्किल होंगे, खासकर इससे बंधी उम्मीदों को देखते हुए। महंगाई की ऊंची दर को देखते हुए खर्च तेजी से बढ़ेगा तो दूसरी तरफ राजस्व जुटाने के साधन सीमित हैं। पंजाब सरकार की तरफ से केंद्र को हाल ही दिए गए मेमोरेंडम में यह मुद्दा उठाया गया है और जीएसटी मुआवजा तत्काल जारी करने की मांग की गई है।
मेमोरेंडम में कहा गया है पंजाब के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों के खपत पैटर्न के अध्ययन से पता चलता है कि शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह कुल खपत का 56 फ़ीसदी खाद्य पदार्थों, इंधन, बिजली और कपड़ों पर होता है। इन पर या तो जीएसटी नहीं लगता है या जीएसटी की दर कम है। इनका 31 फ़ीसदी खर्च सेवाओं पर होता है। सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च का 22 फीसदी स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में जाता है, जिनपर जीएसटी से छूट मिली हुई है।
ग्रामीण पंजाब की कहानी भी अलग नहीं है। मेमोरेंडम में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रति माह खपत का 60 फ़ीसदी खाद्य पदार्थों, इंधन, बिजली और कपड़ों पर जाता है, जिन पर या तो जीएसटी नहीं लगती है या जीएसटी की दर कम है। प्रति व्यक्ति प्रति माह कुल खर्च का 26 फ़ीसदी सेवाओं पर जाता है। सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च का 57 फ़ीसदी स्वास्थ्य व शिक्षा पर होता है जिन पर जीएसटी से छूट मिली हुई है।
राज्य को मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में बड़ा जोर लगाने की जरूरत है, लेकिन समस्या यह है कि अगर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में गंभीरतापूर्वक कार्य किया जाए तब भी नतीजे आने में कई साल लगेंगे। सर्विस सेक्टर में पर्यटन जैसे क्षेत्रों में कम अवधि में नतीजे मिल सकते हैं। राज्य में युवा आबादी का लाभ उठाने के लिए खेती से परे जाकर सोचने की जरूरत है। प्रदेश के लगभग तीन लाख युवा हर साल विदेश जाने की कतार में रहते हैं।