महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और केंद्र सरकार की इन्फलेशन टारगेटिंग की रणनीति कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही है। यही वजह है कि इस साल (2023-24) असामान्य मानसून ने जहां कृषि और सहयोगी क्षेत्र की विकास दर को पिछले वित्त वर्ष के चार फीसदी से घटाकर 1.8 फीसदी पर ला दिया है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र की मांग रिकवर नहीं हो पा रही है। इसका मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र खासतौर से एफएमसीजी और कंज्यूमर डयूरेबल सेक्टर की मांग पर सीधा असर दिख रहा है। दूसरी तरफ, आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने वाली हाउसिंग, ट्रांसपोर्टेशन, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज की महंगाई रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) के लिए चार फीसदी (दो फीसदी कम या ज्यादा) का लक्ष्य तय कर रखा है। इसे हासिल करने के लिए रिजर्व बैंक को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। खुदरा महंगाई दर का बड़ा हिस्सा फूड बॉस्केट से आता है इसलिए कोशिश रहती है कि खाद्य महंगाई दर में बढ़ोतरी न हो। इस काम में आपूर्ति बेहतर करने के लिए सरकार की मदद की जरूरत पड़ती है क्योंकि केवल मौद्रिक नीति के जरिए ब्याज दरों और मौद्रिक तरलता जैसे कदमों से महंगाई रोकना संभव नहीं है।
इसलिए सरकार की कोशिश है कि खाद्य उत्पादों के दाम ना बढ़ें। इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कामचलाऊ बढ़ोतरी की जा रही है ताकि उसका असर खुदरा कीमतों पर कम से कम पड़ें। दूसरी तरफ, आपूर्ति बढ़ाने की नीति के तहत गेहूं, चीनी, चावल, प्याज और दूसरे खाद्य उत्पादों के निर्यात को हतोत्साहित करने या प्रतिबंध लगाने के फैसले लिए गये। गेहूं के लिए दशकों बाद स्टॉक लिमिट लागू की गई और पिछले दिनों इस स्टॉक लिमिट को कम किया गया। यही नहीं पेट्रोल में एथनॉल ब्लैंडिंग के अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम (ईबीपी) को दांव पर लगाते हुए सरकार ने दिसंबर, 2023 में गन्ने के जूस से सीधे एथेनॉल बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया, ताकि कम चीनी उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि, चीनी उद्योग की लॉबिंग के बाद गन्ने के जूस से सीधे एथेनॉल उत्पादन के लिए 17 लाख टन की सीमा तय की गई। साथ ही सी-हैवी मोलेसेज से बनने वाले एथेनॉल के दाम बढ़ाये गये। मोलेसेज के निर्यात पर 50 फीसदी शुल्क लगाया और मक्का से बनने वाले एथेनॉल के दाम भी बढ़ाये गये। लेकिन ये सब कदम उद्योग के लिए अधिक थे किसान के लिए कम।
दालों की महंगाई दर 20 फीसदी से अधिक है। इसके आयात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 31 मार्च, 2025 तक शुल्क में छूट और मात्रात्मक प्रतिबंधों में ढील जैसे फैसले लिए गये। इसी तरह खाद्य तेलों की कीमतों को कम रखने के लिए खाद्य तेलों के रियायती दरों पर आयात की छूट 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दी गई। ये दो कदम साफ करते हैं कि सरकार को घरेलू उत्पादन से मांग पूरी होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन किसानों को अधिक दाम ना मिले इसके लिए आयात को बढ़ावा देने की नीति भी वह उपभोक्ता हितों के नाम पर अपना रही है। यही नहीं 80 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज देने के साथ सब्सिडी पर केंद्रीय पूल से गेहूं की आपूर्ति कर सस्ता आटा भी बाजार में उतारा गया है।
अब सवाल उठता है कि जब किसान को अधिक दाम मिलने की संभावना को ही रोक दिया जाएगा तो पहले से ही आय कमी से जूझ रहे किसान की आर्थिक स्थिति कैसे बेहतर होगी। सरकार कुछ भी दावे करें लेकिन सात फीसदी की दर से बढ़ रही अर्थव्यस्था में ग्रामीण मांग का रिकवर नहीं होना इस बात का सुबूत है कि कृषि से होने वाली आय में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। इसके पीछे मौसम की मार तो एक वजह है कि लेकिन महंगाई पर काबू पाने के लिए अपनाई जा रही इन्फ्लेशन टार्गेटिंग की नीति भी एक बड़ी वजह है।