घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'

ताजा सर्वे इस विरोधाभास को सामने ला रहे हैं कि भारत में रोजगार के लिए कृषि पर निर्भरता बढ़ी है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि प्रधान होने को और अधिक पुख्ता करता है। साथ ही देश में विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ने का भी प्रमाण है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। यह बात नाबार्ड द्वारा ग्रामीण आबादी पर 2021-22 में किये गये सर्वे में बहुत साफ नजर आती है। देश में कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों के जरिए जीवनयापन कर रहे ग्रामीण परिवारों की संख्या बढ़ रही है और यह 57 फीसदी तक पहुंच गई है जो 2016-17 में 48 फीसदी थी। 

नाबार्ड ने यह सर्वे जुलाई 2021 से जून 2022 के बीच किया था जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के साथ 50 हजार तक की आबादी वाले अर्द्ध शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया था। सर्वे में कृषक परिवारों की परिभाषा में 6500 रुपये से अधिक की कृषि आय वाले परिवारों को शामिल किया गया है। इसके पहले 2016-17 के सर्वे में यह सीमा 5000 रुपये थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, कृषक परिवारों की औसत मासिक आय, गैर-कृषक परिवारों की औसत मासिक आय और सभी परिवारों की औसत मासिक आय से अधिक है। देश में सभी ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक आय 12,698 रुपये है, जबकि कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 13,661 रुपये और गैर-कृषक परिवारों की औसत आय 11,438 रुपये है। वहीं, 2016-17 के सर्वे में कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 8,931 रुपये जबकि गैर-कृषक परिवारों की 7,269 रुपये थी।

कृषक परिवारों के लिए खेती सबसे बड़ा आय का स्रोत है, जो कुल मासिक आय का लगभग एक-तिहाई (33 फीसदी) है। इसके बाद सरकारी या निजी सेवाओं का 23 फीसदी, मजदूरी का 16 फीसदी और अन्य उद्यमों का 15 फीसदी योगदान है। दूसरी ओर, गैर-कृषक परिवारों की आय में सरकारी या निजी नौकरियों का सबसे बड़ा हिस्सा 57 फीसदी है, जबकि मजदूरी से गैर-कृषक परिवारों को 26 फीसदी आय होती है।

रिपोर्ट में बताया गया कि जिन परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि है, उनकी औसत आय छोटी जोत वाले किसानों की तुलना में लगभग दोगुनी होती है। इसके विपरीत, जिनके पास 0.01 हेक्टेयर से कम भूमि है, उनकी आय का अधिकांश हिस्सा नौकरी, मजदूरी या पशुपालन से आता है। इसमें सरकारी या निजी नौकरियों का 31 फीसदी, मजदूरी का 29 फीसदी और पशुपालन का 25 फीसदी योगदान है। ऐसे छोटे किसानों की कुल आय में खेती का योगदान केवल 2 फीसदी है। 

सर्वे के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि 2016-17 से 2021-22 के बीच कृषि से आय अर्जित करने वाले परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। साथ ही इन परिवारों की कृषि से होने वाली आय अन्य स्रोतों से होने वाली आय के मुकाबले बढ़ी है। हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि यह सर्वे कोविड के दौर के एकदम बाद हुआ और उस समय लॉकडाउन की वजह के अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र उबर रहे थे। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय के पीरियोडिक लेबर फोर्स (पीएलएफ) सर्वे के आंकड़े भी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भारत में कृषि के जरिए आजीविका कमाने वालों की तादाद बढ़ रही है।

पीएलएफ सर्वे के मुताबिक, 1993-94 में देश की कामकाजी आबादी का 64.6 फीसदी हिस्सा कृषि में लगा था। इसका स्तर 2004-05 में घट कर 58.5 फीसदी और 2011-12 में 48.9 फीसदी रह गया। इसके बाद कोविड से पहले 2018-19 में कृषि पर निर्भरता गिरकर 42.5 फीसदी रह गई। लेकिन उसके बाद इसकी राह उल्टी हो गई और 2020-21 में इसका स्तर बढ़कर 46.5 फीसदी हो गया। यह अनुपात 2021-22 में 45.5 फीसदी पर आया लेकिन 2022-23 में फिर बढ़ कर 45.8 फीसदी हो गया। वहीं 2023-24 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 46.1 फीसदी लोगों को कृषि से रोजगार मिल रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले तीन साल में 8.3 फीसदी की औसत दर से बढ़ी है।

अगर ग्रामीण भारत के आंकड़ों को देखें तो वह इसी ओर इशारा करते हैं। ग्रामीण कामकाजी लोगों में से 2018-19 में 57.8 फीसदी लोगों को कृषि में रोजगार मिल रहा था जो 2019-20 में 61.5 फीसदी और 2020-21 में 60.8 फीसदी रहा। साल 2022-23 में यह कुछ कम होकर 58.4 फीसदी पर आ गया, जबकि 2023-24 में यह फिर से बढ़कर 59.8 फीसदी पर पहुंच गया।

नाबार्ड और पीएलएफ दोनों सर्वे में, रोजगार के मामले में कृषि पर निर्भर लोगों की तादाद बढ़ी है। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग में रोजगार पाने वाले लोगों की संख्या 2023-24 में गिरकर 11.4 फीसदी पर पहुंच गई, जो 2011-12 में 12.6 फीसदी और 2018-19 में 12.1 फीसदी थी। साल 2022-23 में मैन्यूफैक्चरिंग से अधिक लोग ट्रेड, होटल और रेस्तरां क्षेत्र में रोजगार पा रहे थे। वहां यह स्तर 12.2 फीसदी और कंस्ट्रक्शन में 12 फीसदी था।

पीएलएफ सर्वे के मुताबिक, सबसे अधिक 63.8 फीसदी लोग छत्तीसगढ़ में कृषि पर निर्भर हैं, मध्य प्रदेश में यह अनुपात 61.6 फीसदी, उत्तर प्रदेश  55.9 फीसदी, बिहार में 54.2 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 54 फीसदी, राजस्थान में 51.1 फीसदी, पंजाब में 27.2 फीसदी और हरियाणा में 27.5 फीसदी है। सबसे कम 8.1 फीसदी गोवा में कृषि पर निर्भर हैं।

वित्त वर्ष 2022-23 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की विकास दर 4.7 फीसदी थी, जो 2023-24 में घट कर सिर्फ 1.4 फीसदी रह गई। बीते वर्ष की आखिरी दो तिमाही में तो कृषि विकास दर सिर्फ 0.4 फीसदी और 0.6 फीसदी थी। अर्थात कृषि विकास दर घटने के बावजूद इस पर लोगों की निर्भरता बढ़ी है।

यह स्थिति तब है जब भारतीय अर्थव्यवस्था 2011 के 1.82 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2023 में 3.55 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई है। जो आर्थिक नीतियां बन रही हैं और लागू की जा रही हैं उनका आधार लोगों को कृषि से हटाकर दूसरे क्षेत्रों में ले जाना है। लेकिन ताजा सर्वे इस विरोधाभास को सामने ला रहे हैं कि भारत में रोजगार के लिए कृषि पर निर्भरता बढ़ी है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि प्रधान होने को और अधिक पुख्ता करता है। यह देश में विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ने का भी प्रमाण है।