हिमाचल प्रदेश के एप्पल फार्मर्स फेडरेशन के कन्वेनर सोहन ठाकुर के मुताबिक, “दिसंबर-जनवरी में बर्फबारी नहीं होने और मार्च-अप्रैल में बारिश होने की वजह से सेब उत्पादकों, खासकर हिमाचल प्रदेश में उत्पादन का काफी नुकसान हुआ है। मौसम में इस बदलाव से सिर्फ 40 फीसदी ही उत्पादन हो पाया है।”
ऐसे परिदृश्य में घरेलू आपूर्ति में कमी के कारण सेब की कीमतों में तेज वृद्धि होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा हुआ क्या? बिल्कुल नहीं, क्योंकि एक या दो नहीं बल्कि दो दर्जन से अधिक देशों से होने वाला सेब का आयात इस कमी को पूरा करने के लिए तैयार था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इनमें से कई देशों ने वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 30 करोड़ अमरिकी डॉलर (लगभग 2500 करोड़ रुपये) मूल्य का सेब भारत को निर्यात किया।
दिल्ली की आजादपुर थोक मंडी में सामान्य किस्म की सेब की कीमत 14 सितंबर को 4,925 रुपये प्रति क्विंटल रही। प्रीमियम किस्म की कीमत 100 रुपये प्रति किलो तक है। यह थोक मंडी की दरें हैं। इससे भ्रमित न हों कि यह कीमत उत्पादकों को मिल रही है। वास्तव में सेब किसानों को मिलने वाली कीमत इससे बहुत कम है। सोहन ठाकुर कहते हैं, ''इसमें कोई संदेह नहीं है कि कीमतों में गिरावट बढ़ते आयात के कारण है।'' उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों को निर्यात पर भी विभिन्न प्रकार की बाधाएं हैं।
सेब उत्पादकों को उत्पादन में घाटा हुआ लेकिन आयात के कारण उन्हें बेहतर कीमत नहीं मिल पाई। उत्पादकों के लिए सिर्फ यही प्रतिकूल स्थिति नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार ने अमेरिका से सेब के आयात पर अतिरिक्त 20 फीसदी शुल्क को भी हटाने की घोषणा कर दी है। 2019 में अमेरिका के साथ हुए एक विवाद के निपटारे के तहत यह शुल्क हटाया गया है। एक समझौता के तहत ऐसा किया गया है जिसमें भारतीय इस्पात पर अमेरिका द्वारा आयात प्रतिबंध हटाना शामिल था, जबकि भारत ने सेब आयात पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क को हटा दिया।
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया क्योंकि यह फैसला जी20 शिखर सम्मेलन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के भारत आने से कुछ ही दिन पहले हुआ था। कांग्रेस ने इसे किसानों के लिए निराशाजनक बताया, तो वाणिज्य मंत्रालय ने तकनीकी बातें साझा करते हुए जवाब दिया। सरकार का दावा है कि 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क हटाने से घरेलू उत्पादकों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि इसके परिणामस्वरूप सेब, अखरोट और बादाम के प्रीमियम बाजार में प्रतिस्पर्धा होगी और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित होगी।
इसके अलावा, सरकार ने बताया कि अमेरिका से आयात पर अतिरिक्त शुल्क हटाने का कदम कैसे अमेरिकियों के लिए तुर्की, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों की तरह निर्यात करना एक जैसा हो गया है। एक बात तो स्पष्ट है कि फलों का भारतीय बाजार कई देशों के लिए पर्याप्त रूप से रसदार है। इसलिए, मकसद केवल अमेरिकी सेब उत्पादकों को अतिरिक्त बाजार पहुंच प्रदान करना नहीं है, बल्कि चुनावी वर्ष में खुदरा महंगाई (जो लगभग 7 फीसदी के करीब है) को नियंत्रण में रखना भी है। मगर किसानों का सवाल है कि ऐसा किसकी कीमत पर किया जा रहा है?
ऐसा लगता नहीं है कि सरकार के पास बहुत अधिक विकल्प हैं, लेकिन कोल्ड स्टोरेज और नियंत्रित वातावरण सुविधाओं की स्थापना में बड़े निवेश की घोषणा निश्चित रूप से सेब उत्पादकों के लिए मददगार साबित हो सकती है। भारतीय बागवानी को बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता के साथ-साथ फसल पद्धतियों के मामले में भी आधुनिक बनाना होगा। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के हमले का सामना करने के लिए किसानों को केंद्र और राज्यों दोनों की सरकारों द्वारा उदार सब्सिडी की भी जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)