सरकार और उपभोक्ता खुश हैं कि इस साल प्याज के दाम कम रहेंगे और किसी भी उपभोक्ता की आंखों में आंसू नहीं आएंगे। लेकिन इसके विपरीत इस वर्ष किसान आंसू बहा रहे हैं। अनेक किसानों ने इस साल मई से प्याज का भंडार कर रखा था। उन्हें उम्मीद थी कि आगे चलकर इसके अच्छे दाम मिलेंगे, लेकिन सिर्फ निराशा उनके हाथ लगी और वे अच्छी क्वालिटी का प्याज ओने-पौने दाम पर बेच रहे हैं।
प्याज एक राजनीतिक फसल बन गई है और सत्ता में काबिज कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि इसकी कीमत ज्यादा बढ़े। सरकार ने प्याज के भंडारण की सुविधाओं का निर्माण करने के लिए किसानों को सब्सिडी दी। किसानों को लगा कि इसके पीछे सरकार का उद्देश्य यह था कि उन्हें प्याज की बेहतर कीमत मिल सकेगी। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि वह सब्सिडी किसानों के लिए नहीं बल्कि उपभोक्ताओं के लिए थी ताकि उन्हें पूरे साल कम कीमत पर प्याज मिल सके।
प्याज की फसल जब तैयार होती है तो सरप्लस होने की स्थिति में सरकार हस्तक्षेप करती है और नेफेड (NAFED) के माध्यम से इसे खरीदती है। इसके लिए मूल्य स्थिरीकरण फंड (PSF) बनाया गया है। हालांकि प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल किया गया है, लेकिन इसके लिए कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में शामिल हर कमोडिटी के लिए एमएसपी निर्धारित करना अनिवार्य है, लेकिन जल्दी खराब होने वाली कमोडिटी के कारण प्याज का कोई एमएसपी नहीं होता है।
अधिसूचित एजेंसियां बाजार कीमत पर प्याज की खरीद करती हैं। ये एजेंसियां ट्रेडर से बेहद कम कीमत पर प्याज खरीदती हैं लेकिन इनकी बिलिंग काफी ऊंचे दाम पर होती है। प्याज की खरीद और बिक्री में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है। बफर स्टॉक इसलिए बनाया जाता है ताकि जब दाम बढ़े तो उसे नियंत्रित करने में उस स्टॉक का इस्तेमाल हो सके। लेकिन जब दाम घटते हैं तब किसानों को ऐसी कोई मदद नहीं मिलती है। ऐसे समय जब प्याज के दाम बढ़ रहे थे और किसानों को लगने लगा कि उन्हें 20 रुपये प्रति किलो से अधिक की कीमत मिल सकती है, तो नेफेड ने अपने स्टॉक से बाजार में बड़े पैमाने पर प्याज उतार दिया। नतीजा यह हुआ कि इसकी कीमत करीब 10 रुपये नीचे आ गई।
इस साल प्याज की उत्पादन लागत लगभग 20 प्रति किलो है। चार से पांच महीने तक प्याज का भंडारण करने पर प्रति किलो लगभग 5 रुपये का खर्च और जुड़ जाता है। प्याज की शेल्फ लाइफ सीमा को पार कर चुकी है इसलिए किसान उसे जल्दी बेचने के लिए मजबूर हैं, बदले में उन्हें चाहे जो कीमत मिले।
सरकार ने प्याज के व्यापार में हमेशा हस्तक्षेप किया है। कभी स्टॉक लिमिट लगा कर, कभी एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने पर अंकुश लगाकर, कभी न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) बढ़ाकर तो कभी निर्यात पर पूरी तरह पाबंदी लगाकर। यह सभी कदम उपभोक्ताओं के लिए हैं और इनसे किसानों के हितों को नुकसान पहुंचा है। उपभोक्ताओं को प्याज की नियमित सप्लाई होती रहे और किसानों को उचित कीमत मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को हस्तक्षेप बंद करना होगा। बाजार और व्यापारियों को यह तय करने दिया जाए कि प्याज का निर्यात अथवा आयात करना है या नहीं, या फिर इसे बाजार में किस कीमत पर बेचा जाना है।
भारत घरेलू खपत के दोगुने से भी ज्यादा प्याज का उत्पादन करता है। इसलिए निर्यात के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमने अपना हिस्सा कम कर लिया है। कुछ साल पहले तक प्याज के वैश्विक निर्यात में 40% हिस्सा भारत का होता था जो अब घटकर 8.5% रह गया है। निर्यात को लेकर अनिश्चितताओं से भरी नीति के कारण हमने बड़े आयातकों के बाजार को खो दिया है। इससे हमारे प्रतिस्पर्धी देशों को फायदा मिला है। अतिरिक्त प्याज की खपत प्रोसेसिंग इकाइयों में हो सकती है, लेकिन प्याज से जुड़ी प्रोसेसिंग इकाइयों में निवेश करने का कोई साहस नहीं दिखाता है। इसका कारण सरकार की अप्रत्याशित नीति है।
उपभोक्ता और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भले खुश हो, लेकिन इस देश के प्याज उत्पादक किसान रो रहे हैं। हमें उनके परिवार और उनकी आजीविका के बारे में भी सोचना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र भारत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं शेतकारी संघटन के पूर्व अध्यक्ष हैं व सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसान आंदोलन के समाधान के लिए नियुक्त समिति के सदस्य रहे हैं)