कृषि क्षेत्र की दूरदर्शी शख्सियत का निधन देश के लिए एक मार्मिक क्षण है। आज हम एक सच्ची विभूति डॉ. एमएस स्वामीनाथन को विदाई देते हैं। एक ऐसे व्यक्ति जिनका नाम प्रगति, नवाचार और खाद्य सुरक्षा की दिशा में प्रयास का पर्याय बन गया। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत के कृषि परिदृश्य की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। उनकी यह विरासत निश्चित रूप से पीढ़ियों तक गूंजती रहेगी।
अपने अभूतपूर्व कार्य के अलावा उन्होंने भारत में कृषि अनुसंधान और विकास के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. स्वामीनाथन ने अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने देश के सभी क्षेत्रों के वैज्ञानिकों के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान प्रयासों को सुविधाजनक बनाया। वैज्ञानिक दिमागों की इस नेटवर्किंग ने कृषि में नए समाधान की नींव रखी जिससे हमारे कृषि परिदृश्य को बेहतर बनाने के लिए समर्पित शोधकर्ताओं के बीच एकता की भावना को बढ़ावा मिला।
इसके अलावा वैज्ञानिक खोजों और व्यावहारिक कार्यान्वयन के बीच अंतर को पाटने की उनकी प्रतिबद्धता के कारण लैब-टू-लैंड कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दूरदर्शी पहल का उद्देश्य कृषि प्रौद्योगिकियों को सीधे किसानों तक पहुंचाना था जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि रिसर्च का लाभ हमारे खेतों में मेहनत करने वालों तक पहुंचे। यह भारत के कृषक समुदाय के कल्याण के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण था। अपने पूरे करियर के दौरान डॉ. स्वामीनाथन ने वह हासिल किया जिसे कुछ लोग लगभग असंभव मान सकते हैं।
डॉ. स्वामीनाथन का प्रभाव और नेतृत्व भारत की सीमाओं से परे तक फैला था। 1982 से 1988 तक फिलीपींस में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के रूप में उन्होंने चावल अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति के लिए संस्थान का मार्गदर्शन किया। दुनिया भर में चावल उगाने वाले क्षेत्रों को इसका लाभ मिला।
भारत की प्रगति के प्रति उनका अटूट जुनून प्रेरणादायक था। उनके पास वैज्ञानिक ज्ञान को व्यावहारिक समाधान में बदलने, हमारे खेतों में मेहनत करने वालों के लिए आशा और जीविका लाने की दुर्लभ क्षमता थी। उन्हें मिले पुरस्कार और प्रशंसाएं उनके असाधारण योगदान की गवाही देते हैं। 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए मिले रमन मैग्सेसे पुरस्कार से लेकर 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता तक उनका वैश्विक प्रभाव निर्विवाद था। अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार, शांति के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, यूएनईपी ससाकावा पर्यावरण पुरस्कार और यूनेस्को गांधी स्वर्ण पदक जैसे सम्मानों ने कृषि और ग्रामीण विकास के प्रति उनके असाधारण समर्पण को और उजागर किया। उनके अपार योगदान के लिए देश ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
डॉ. स्वामीनाथन केवल एक वैज्ञानिक नहीं थे, वह एक कुशल नेतृत्वकर्ता थे जिन्होंने हमारे कृषक समुदाय के कल्याण की अथक वकालत की। किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सरकार को राष्ट्रीय किसान कल्याण नीति लाने के लिए राजी किया और किसानों को खेती की लागत पर 50 फीसदी मुनाफा देकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान करने की सिफारिश की। इससे उन्हें पूरे कृषक समुदाय का सम्मान और आभार प्राप्त हुआ।
आज जब हम उनके निधन पर शोक मना रहे हैं, इस दूरदर्शी व्यक्तित्व द्वारा छोड़ा गया शून्य अथाह है। डॉ. स्वामीनाथन एक कुशल योजनाकार, अत्यंत सम्मानित व्यक्ति थे जिनका किसानों और भारतीय कृषि के प्रति प्रेम अटूट था। बौनी गेहूं की किस्मों को पेश करके और उनका प्रजनन करके देश को अच्छे अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में उनके योगदान से 1950 में जहां उत्पादन 5 करोड़ टन था वह अब बढ़कर अब 33 करोड़ टन हो गया है। इसलिए भारत एक आयातक देश से दुनिया का एक प्रमुख खाद्य निर्यातक बन गया है।
अंत में, भारी मन से मैं भारत के नीति निर्माताओं द्वारा उन्हें हमारे सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने का अवसर चूक जाने पर पूरे कृषि वैज्ञानिक समुदाय की इच्छा को प्रतिबिंबित करते हुए उन्हें भारत रत्न देने की मांग करता हूं। उनके प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। डॉ. एमएस स्वामीनाथन की मृत्यु से भारत ने एक महान सपूत खो दिया। उनकी उपलब्धियां युवा पीढ़ी को भारतीय कृषि के बेहतर भविष्य के प्रयास करने के लिए प्रेरित करती रहेंगी। पूरा कृषि वैज्ञानिक समुदाय उनके निधन पर शोक व्यक्त कर रहा है और हम उनकी महान आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
(लेखक पद्म भूषण से सम्मानित, आईसीएआर के पूर्व डायरेक्टर जनरल, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के पूर्व सचिव और इंडियन साइंस कांग्रेस के पूर्व प्रेसिडेंट हैं)