जून में खुदरा महंगाई की दर तीन महीने के उच्च स्तर 4.81 फीसदी को पार कर गई, जबकि सब्जियों की कीमतों में 0.93 फीसदी की नकारात्मक गिरावट देखी गई। टमाटर की आसमान छूती कीमतों के बीच जून में सब्जियों की कीमतों में नकारात्मक रुझान पर आश्चर्यचकित न हों। जुलाई में टमाटर की कीमतों ने नया रिकॉर्ड बनाया है। टमाटर की ऊंची कीमतों को तो हम झेल सकते थे, लेकिन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, असम और बिहार में बाढ़ से सब्जियों को भारी नुकसान तो हुआ ही, साथ ही मानसून की बारिश में देरी की वजह से देर से बोए गए धान भी बह गए।
थोक मंडियों और पड़ोस की दुकानों दोनों में कीमतें बढ़ गई हैं और इसमें तत्काल सुधार के कोई संकेत नहीं हैं। राष्ट्रीय राजधानी के आजादपुर जैसी मंडियों के व्यापारियों का मानना है कि कीमतों पर दबाव कम से कम कुछ महीनों तक जारी रहेगा। मंडियों में आवक कम होने के कारण फलों और सब्जियों जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें और बढ़ने के लिए खुद को तैयार रखें।
टमाटर की मौजूदा स्थिति से गृहणियां परेशान हैं क्योंकि वे इसके बिना खाना बनाना सीख रही हैं। इसके अलावा आलू, प्याज, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, फूलगोभी, बैंगन और अन्य सब्जियों पर लगातार निगरानी रखने की आवश्यकता है क्योंकि उनके दाम में भी तेजी का रुख है। अनाज एवं इससे बने उत्पाद और दालें गरीब और निम्न मध्यम वर्ग की जेब काटने वाली अन्य खाद्य वस्तुएं साबित हो रही हैं क्योंकि जून 2023 में अनाज और उत्पादों की मुद्रास्फीति साल-दर-साल 12.71 फीसदी बढ़ी है। यह समस्या गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के लिए अधिक गंभीर है।
दिल्ली की आजादपुर जैसी मंडियों से आ रही रिपोर्टों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं की आवक पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो इन राज्यों के कई हिस्सों में फसलें नष्ट हो गई हैं, और दूसरी, पहाड़ी राज्यों में राजमार्गों के बह जाने के कारण परिवहन अस्त-व्यस्त हो गया है। पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में भी बाढ़ के पानी से सड़कें या तो डूबी हुई हैं या फिर टूट गई हैं। टमाटर और फलों के प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी सड़कें बह जाने के कारण हालात अस्त-व्यस्त हो गए हैं।
मौसम का यह खतरनाक रुख खेती पर कहर बरपा रहा है। मौसम की मार का प्रभाव अर्थव्यवस्था के अन्य प्रमुख क्षेत्रों पर भी महसूस किया जा रहा है, खासकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों पर, जो बागवानी और पर्यटन सहित ज्यादातर कृषि पर निर्भर है। इन दोनों राज्यों को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि मौसम का रुख विरोधाभासी हो गया है। या तो बारिश बहुत कम हो रही है या फिर हो रही है तो कम समय में ही बहुत ज्यादा हो जा रही है। इससे हिमालयी क्षेत्र में मानसून का कैलेंडर गड़बड़ा गया है।
बाढ़ प्रभावित राज्यों में रहने और जीवन जीने का खर्च अन्य राज्यों में रहने की तुलना में काफी बढ़ जाएगा। उदाहरण के लिए दिल्ली को ही लीजिए, पुराने दिनों में यहां वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी के किनारे कुछ मौसमी सब्जियां उगाई जाती थीं। अब यह सब इतिहास का हिस्सा है। यमुना नदी उफान पर है और झोपड़ियों में रहने वाले गरीबों को पीड़ा और दर्द दे रही है। बहरहाल, हम अपनी मुख्य कहानी पर ध्यान केंद्रित करते हैं और वह है कीमतों पर असर।
रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में सख्ती बरतने के बावजूद जून में मुद्रास्फीति तीन महीने के उच्च स्तर 4.81 फीसदी पर पहुंच गई। फलों और सब्जियों की महंगाई में क्रमशः 1.36 फीसदी और शून्य से नीचे 0.93 फीसदी की मामूली वृद्धि के बावजूद ऐसा हुआ। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में फलों और सब्जियों का संयुक्त भार लगभग 10 फीसदी है। आने वाले महीनों में अनाज एवं उत्पादों और दालों के साथ-साथ फलों एवं सब्जियों के बास्केट की महंगाई दर में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी। अनाजों एवं दालों की महंगाई अभी 10 फीसदी से ऊपर बनी हुई है।
बाढ़ ने आरबीआई की मुद्रास्फीति आकलन प्रक्रिया को पूरी तरह से बाधित कर दिया है। आरबीआई ने अनुमान लगाया था कि अगली कुछ तिमाहियों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 4 फीसदी के उसके अनुकूल लक्ष्य पर वापस आ सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों और विदेशी मुद्रा दरों में स्थिरता के कारण भले ही मुद्रास्फीति में कमी मीडिया की सुर्खियां बटोरती रहे लेकिन मूल्य वृद्धि का शैतान उभोक्ताओं को परेशान करता रहेगा।
देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ का कहर और कुछ हिस्सों में मानसून की बारिश सामान्य से कम रहने की वजह से खरीफ फसलों की संभावनाएं भी बहुत अच्छी नहीं दिख रही हैं। रूरल वॉयस की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे धान की बुआई में 10 फीसदी और अरहर की बुआई में 42 फीसदी की गिरावट देखी गई है। यह सब मौसम देवता के हाथ में है। सरकार और उपभोक्ता दोनों को उनसे उम्मीद लगी हुई है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)