महंगाई की चर्चा इन दिनों हर जगह है। इस पर नियंत्रण रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल के महीनों में रेपो रेट 6 बार बढ़ाया है। गृहिणियां पशोपेश में हैं। उन्हें आलू तो 7 रुपए किलो मिल रहा है, टमाटर 20 रुपए किलो लेकिन एक किलो घी के लिए उन्हें 675 रुपए देने पड़ रहे हैं। दूध और इसके अन्य उत्पादों के दाम कितने बढ़ेंगे इसे लेकर भी अनिश्चितता है। उत्तर भारत में मदर डेयरी और अमूल ने बीते 10 महीने में अलग-अलग वैरायटी के दूध के दाम 8 रुपए प्रति किलो बढ़ाए हैं।
दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी पूरे देश में हुई है। सिर्फ डेयरी कोऑपरेटिव नहीं बल्कि निजी क्षेत्र की डेयरी ने भी दाम बढ़ाए हैं। दक्षिण भारत के प्रमुख डेयरी ब्रांड तिरुमाला, जर्सी, वल्लभ और हेरिटेज ने हाल ही कीमतों में 2 से 4 रुपए लीटर तक की बढ़ोतरी की है। कीमतों में नई बढ़ोतरी के बाद प्निजी ब्रांड के फुल क्रीम दूध की कीमत 72 रुपए, स्टैंडर्ड दूध की 64 रुपए और टोंड किस्म की 52 रुपए प्रति लीटर हो गई है। हालांकि तमिलनाडु की कोऑपरेटिव आविन इन्हीं किस्मो के दूध क्रमशः 12 रुपए, 21 रुपए और 12 रुपए दाम पर बेच रही है। जैसा कि सीएनबीसी टीवी 18 के साथ इंटरव्यू में जीसीएमएमएफ (अमूल) के पूर्व एमडी आर एस सोढ़ी ने कहा, इस वर्ष दिवाली तक कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद ना करें। अतीत में दूध को महंगाई कम करने वाला माना जाता था लेकिन अब यह स्वयं महंगाई बढ़ाने वाला हो गया है। आश्चर्यजनक बात यह है कि ज्यादातर कृषि उपज की कीमतें नीचे जा रही है जबकि दूध के दामों में बढ़ोतरी हो रही है।
खाद्य महंगाई में उतार-चढ़ाव को देखना भी रोचक है। दिसंबर 2022 महंगाई 4.19% यानी जनवरी 2022 से सबसे निचले स्तर पर थी। सब्जियों, खाद्य तेल, मीट और इसके उत्पाद तथा दालों के दाम में तेज गिरावट इसकी वजह थी। महंगाई बढ़ाने वाले कारकों में अनाज, अंडे और दूध शामिल हैं। महंगाई बढ़ाने में अनाज का योगदान 7%, दूध का 8.23% और अंडे का 6.91% रहा। जनवरी और फरवरी 2023 में दूध के दामों में और बढ़ोतरी ने स्थिति को विकट बना दिया है।
विश्व स्तर पर देखें तो 2022 में खाद्य पदार्थों के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी एफएओ के अनुसार एक साल पहले की तुलना में कीमतों में 14% से ज्यादा की वृद्धि हुई। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक दिसंबर में खाद्य पदार्थों की कीमतों का इंडेक्स 132.4 और नवंबर में 135 पर था। पूरे 2022 के लिए बेंचमार्क इंडेक्स का औसत 143.7 रहा। यह 2021 के मुकाबले 18 अंक अथवा 14.3% ज्यादा है। यह 1990 के बाद सबसे अधिक है। दिसंबर में इंडेक्स में गिरावट की मुख्य वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में वनस्पति तेल के साथ कुछ अनाज और मीट के दाम में गिरावट रही। हालांकि एफएओ के मुताबिक इस गिरावट के असर को चीनी और डेयरी के दामों में बढ़ोतरी ने काफी हद तक बेअसर कर दिया।
पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद काला सागर में व्यापार बाधित होने की आशंका में खाद्य पदार्थों के दाम बढ़े थे। हालांकि बाद में संयुक्त राष्ट्र की पहल से काला सागर के रास्ते यूक्रेन से काफी मात्रा में अनाज का निर्यात हुआ। एफएओ ने कहा था कि 2022 में खाद्य आयात की लागत सबसे गरीब देशों को प्रभावित करेगी और वह कम मात्रा में आयात करेंगे। एफएओ के फूड प्राइस इंडेक्स में मांस, डेयरी, अनाज, वनस्पति तेल और चीनी की कीमतों के इंडेक्स शामिल होते हैं। इनका वेटेज 2014 से 2016 के दौरान औसत निर्यात पर निर्भर है।
दूध की खरीद और इसके बाजार का ट्रेंड
दूध के दामों में बढ़ोतरी की एक प्रमुख वजह इसकी खरीद और इसके बाजार में असमानता है। जुलाई 2022 से नवंबर 2022 में पशुपालन और डेयरी विभाग ने अपनी समीक्षा में इसकी बात कही थी। सितंबर 2021 की तुलना में सितंबर 2022 में दूध की खरीद 3.27% घट गई जबकि बिक्री 10% बढ़ी है। स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी), व्हाइट बटर और घी के स्टॉक क्रमशः 55%, 76% और 87% कम हो गए। ज्यादातर डेयरी कॉपरेटिव ने दूध खरीद में 10% तक गिरावट की सूचना दी। दूसरी तरफ उन्होंने यह भी बताया कि दूध और इसके उत्पादों की मांग बढ़ रही है। उदाहरण के लिए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ने कहा कि उनके घी की बिक्री 2021-22 में प्रतिमाह 2000 टन थी जो घटकर 1700 टन रह गई। इसी तरह बटर का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 150 टन प्रति माह कम हो गया। क्षीर भाग्य स्कीम के तहत फेडरेशन को सरकारी स्कूलों में दूध पाउडर की सप्लाई कम करनी पड़ी।
दूध और इसके उत्पादों की कीमतों में लगातार तेज बढ़ोतरी का असर देखने के लिए एक सर्वे किया गया। सर्वे में पता चला कि प्रत्येक 10 में से 6 परिवार अधिक कीमत देखकर अपने पुराने ब्रांड से उतना ही दूध खरीद रहे हैं जितना पहले खरीद रहे थे। लेकिन 19% लोगों ने कहा कि उन्होंने दूध खरीदने की मात्रा कम कर दी है। 16% ने कहा कि वे उसी ब्रांड के सस्ते विकल्प खरीद रहे हैं। 3% ने यह भी कहा कि वे सस्ते ब्रांड या स्थानीय सप्लाई का सहारा ले रहे हैं और 3% ने तो दूध खरीदना ही बंद कर दिया।
लंपी स्किन रोग ने दूध की उत्पादकता घटाई
ज्यादातर राज्यों में दूध खरीद में गिरावट के लिए लंपी स्किन रोग (एलएसडी), मुंह पका खुर पका रोग, बाढ़ और खराब क्वालिटी का चारा, महंगा चारा तथा महंगी बिजली को कारण बताया गया। गर्मियों में हरा चारा कम मिलता है इसलिए दूध उत्पादन में और गिरावट की आशंका है। सप्लाई में कमी ने दूध और इसके उत्पादों के दाम बढ़ा दिए हैं।
सबसे नया कारण लंपी स्किन रोग है। लोकसभा में सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 29.4 लाख मवेशी इससे प्रभावित हुए। इनमें से 1.5 लाख की मौत हो गई। मौत वाले राज्यों में राजस्थान सबसे ऊपर है जहां 75000 मवेशियों की इस रोग से जान गई। उसके बाद महाराष्ट्र में 24430, पंजाब में 17932, कर्नाटक में 12244 और हिमाचल प्रदेश में 10661 की जान गई। कुछ मवेशी गुजरात में भी मारे गए। मवेशियों को गोट पॉक्स वैक्सीन लगाकर इस बीमारी को फैलने से रोकने वाला गुजरात पहला राज्य था। बाद में यह वैक्सीन अन्य जगहों पर भी उपलब्ध कराई गई और 6 करोड़ से अधिक मवेशियों को वैक्सीन लगाई गई। इससे हर्ड इम्यूनिटी बनाने और बीमारी को फैलने से रोकने में मदद मिली। लेकिन इस बीमारी ने दूध के उत्पादन पर बड़ा असर डाला है। जिन गायों को यह बीमारी हुई व अब पहले की तुलना में आधा दूध दे रही हैं। बीमारी खत्म होने के बाद भी गायें पहले जितना दूध नहीं दे रही हैं। इस बात का अध्ययन किया जाना चाहिए कि अगली बार बच्चा देने के बाद एलएसडी से प्रभावित गाय पहले जितना दूध दे सकेंगी अथवा नहीं।
फीड और चारे के दाम में बढ़ोतरी
आसान शब्दों में कहा जाए तो दूध उत्पादन की आधी लागत पशुओं के फीड, सूखे और हरे चारे तथा फीड इनग्रेडिएंट से तय होता है। राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड के चेयरमैन के अनुसार बीते 1 साल में चारे और फीड के दाम 25% बढ़ गए हैं। तमिलनाडु डेयरी फेडरेशन के मुताबिक चारा 2019 की तुलना में 50% महंगा हो चुका है। उडुपी जिला सहकार भारती के डेयरी किसानों ने 19 जनवरी 2023 को उडुपी के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय के सामने धरना दिया। उनकी मांग थी कि पशुओं के फीड पर ₹5 प्रति किलो की सब्सिडी दी जाए।
केंद्रीय फिशरीज, पशुपालन और डेयरी राज्यमंत्री संजीव कुमार बालियान ने संसद में एक सवाल के जवाब में बहुत अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि डेयरी कोऑपरेटिव यह सुनिश्चित करती हैं कि उपभोक्ता द्वारा दिया गया 75% पैसा दुग्ध किसानों को मिले। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच संतुलन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि किसानों को डेयरी फार्मिंग अपनाने के लिए दूध की अधिक कीमत मिलनी चाहिए। हाल के समय में फीड और चारे के दाम बढ़ने से दूध भी महंगा हुआ है। अगर चारा सस्ता हो तो दूध के दाम अपने आप कम हो जाएंगे।
दूध और इसके उत्पादों की प्रोसेसिंग का खर्च भी बढ़ा है। डेयरी सेक्टर की कंपनियां इसे भी दाम बढ़ाने का प्रमुख कारण बताती हैं। ऑपरेशन और लॉजिस्टिक्स दोनों के लिए ऊर्जा की कीमतें बढ़ी हैं, पैकेजिंग महंगा हुआ है और श्रमिकों की लागत जैसे मदों में खर्चे भी बढ़े हैं।
दुग्ध उत्पादों का निर्यात
बीते 6 महीने के दौरान दूध और दुग्ध उत्पादों का आयात और निर्यात कम हुआ है। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से दूध, चीज, बटर, मिल्क पाउडर, अंडे, बीफ के साथ गेहूं और फलोत्पादन का यूरोप को निर्यात प्रभावित हुआ है। इससे पहले भारत से डेयरी प्रोडक्ट का निर्यात 2021 के 2400 करोड़ की तुलना में 2022 में लगभग 2 गुना होकर 4700 करोड़ रुपए पहुंच गया है। 2015 के 1200 करोड़ से तुलना करें तो यह वृद्धि लगभग 4 गुना है।
आंकड़े बताते हैं कि निर्यात बढ़ाने में स्किम्ड मिल्क पाउडर का बड़ा योगदान रहा है। अनेक डेयरी कंपनियां ताजा दूध और विभिन्न तरह के डेयरी प्रोडक्ट के निर्यात की संभावनाएं तलाश रही हैं। ताजे दूध का निर्यात अभी कम है क्योंकि आयातक बेहतर क्वालिटी और हाइजीन की मांग करते हैं। अमूल ने निर्यात बढ़ाने पर पहले ही विचार करना शुरू कर दिया है। हाल के महीनों में कर्नाटक की हासन मिल्क यूनियन ने ट्रायल के तौर पर मालदीव को 1.5 लाख लीटर टेट्रा पैक दूध भेजा है। यूनियन को पश्चिमी एशियाई देशों को 2 लाख लीटर दूध और 20 टन बटर निर्यात करने की उम्मीद है। अरब देशों के प्रतिनिधिमंडल ने अपनी संतुष्टि के लिए हासन यूनियन की फैसिलिटी की जांच भी की। वे देखना चाहते थे कि जो दूध पैक किया जा रहा है उसकी क्वालिटी कैसी है। कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को दूध निर्यात से सालाना 500 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिलने की उम्मीद है। दूध उत्पादन बढ़ने का वैश्विक औसत 2% सालाना है जबकि भारत में हर साल 6% उत्पादन बढ़ रहा है।
देश में मांग और आपूर्ति का मौजूदा अंतर खत्म होने पर डेयरी प्रोडक्ट का निर्यात फिर बढ़ने की उम्मीद है। सरकार की नई पहल से इसे और बल मिलेगा। केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा है कि सरकार ने अगले 3 वर्षों में हर पंचायत में 1 प्राथमिक डेयरी खोलने का निर्णय लिया है। इसके लिए मंत्रालय ने 3 साल का एक्शन प्लान भी बनाया है। उन्होंने कहा, "हम 3 वर्षों के दौरान पूरे देश में ग्राम स्तर पर 2 लाख प्राथमिक डेयरी की स्थापना करेंगे। इसके माध्यम से हम देश भर के किसानों को जोड़ेंगे और इस तरह भारत दुग्ध क्षेत्र में एक बड़ा निर्यातक बन कर उभरेगा।" शाह ने बताया कि वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में 2 लाख से ज्यादा बहुद्देशीय प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसायटी (पैक्स) के रजिस्ट्रेशन के लिए पर्याप्त फंड आवंटित किया गया है। उन्होंने कहा कि पैक्स के गठन का उद्देश्य यह है कि कोई भी पंचायत डेयरी अथवा फिशरीज कोऑपरेटिव सोसाइटी से वंचित ना हो। कोऑपरेटिव पर पहले 26% की दर से इनकम टैक्स लगता था जिसे घटाकर 15% कर दिया गया है।
अधिकारों का ढांचा
कृषि उत्पादों के दाम नियंत्रण अथवा नियमन करने वाली संस्था के अधिकारों से भी तय होते हैं। उपभोक्ता सस्ती सब्जियां खरीद कर खुश है जबकि किसान कम दाम में बेच कर परेशान है। सब्जियों के मौजूदा बाजार भाव पर गौर कीजिए। उपभोक्ता 1 किलो आलू 7 रुपये, गोभी 10 रुपये, टमाटर और मटर 20 रुपये में खरीद रहा है। अब दूसरी तरफ किसान पर भी नजर डालिए। वह अपने घर से ट्रैक्टर ट्रॉली, बैलगाड़ी अथवा ट्रक पर सब्जियां लादकर 20-30 किलोमीटर दूर मंडी में आता है। उसके सामान की नीलामी होती है जहां खरीदार भी गिने-चुने रहते हैं। उसे जो भी भाव मिले उसे स्वीकार करने को बाध्य होता है। वह घर से जितनी सब्जियां तौल कर लाता है मंडी में वजन उससे कम निकलता है। उसे वजन कराने, सब्जियां उतारने के पैसे के साथ मंडी टैक्स भी चुकाना पड़ता है। आखिरकार सिर्फ उत्पादन लागत लेकर वह घर लौटता है। मुनाफा और मजदूरी का खर्च उसे नसीब ही नहीं होता।
अब इसकी तुलना उस किसान से कीजिए जो प्रतिदिन कुछ लीटर दूध पैदा करता है। उसके गांव में कोऑपरेटिव है। वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ कतार में खड़ा है। अपनी बारी आने से पहले वह उनके साथ खेती किसानी के बारे में बात करता है। नंबर आने पर वह अपने बर्तन का ढक्कन खोलता है, क्वालिटी और दाम तय करने के लिए सैंपल देता है और कंप्यूटर नियंत्रित भार तोलने वाली मशीन पर एक बर्तन में दूध उड़ेल देता है। पूरी प्रक्रिया उसकी आंखों के सामने होती है। सैंपल देते समय जिस भाव पर उसने सहमति जताई होती है उस भाव पर उसे पैसे मिल जाते हैं। किसान यह भी खुद तय कर सकता है कि उसे नकद पैसा तत्काल चाहिए अथवा कुछ दिनों के बाद। वह यह भी तय कर सकता है कि वह उसे पूरी रकम चाहिए अथवा अपनी गाय अथवा भैंस के लिए उसमें से कुछ फीड भी खरीदना है।
जाहिर है कि शक्ति का यह ढांचा किसानों की किस्मत तय करता है। सब्जी उगाने वाले किसान को यह नहीं मालूम होता कि उसे कौन सा भाव मिलेगा। वह जो कुछ उगाता है उसकी कीमत कोई और तय करता है। वह दिग्भ्रमित, असंतुष्ट, नाराज और यहां तक कि कई बार निराश होकर घर लौटता है। उसकी नाखुशी और निराशा साझा करने वाला कोई नहीं होता। लेकिन वही किसान जब दूध, अंडे या संतरे बेचकर घर लौटता है तो उसके चेहरे पर खुशी होती है। वह जानता है कि उसके पास कुछ अधिकार है। उसके मिल्क कोऑपरेटिव के अधिकार, उसे अंडा समन्वय समिति का समर्थन है, अथवा एसोसिएशन उसके साथ है। वह जानता है कि इन कोऑपरेटिव अथवा यूनियन के कारण उसे उपभोक्ता की चुकाई गई कीमत का उचित हिस्सा मिलेगा। उसे संभवतः यह भी मालूम होता है कि उसका कोऑपरेटिव अथवा संगठन उपभोक्ताओं से इतनी अधिक कीमत नहीं लेगा कि भविष्य चौपट हो जाए।
सभी कृषि उत्पादों के किसान कोऑपरेटिव किसानों को उत्पादकता, उपभोक्ताओं को संतुष्टि तथा राष्ट्रीय संपन्नता में दीर्घकालिक समाधान दे सकते हैं। इसलिए आइए हम हाथ मिलाएं।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय डेयरी कंसलटेंट हैं)