छपरौली, बागपत
पिछले दो सप्ताह उत्तरी भारत और खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन और यहां की राजनीति में बदलाव के संकेत देने वाले रहे हैं। पांच सिंतबर की मुजफ्फरनगर की संयुक्त किसान मोर्चा की पंचायत की कामयाबी और उसके दो सप्ताह बाद 19 सितंबर को छपरौली में राष्ट्रीय लोकदल के पूर्व अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह की श्रद्धांजलि सभा और उनकी जगह अध्यक्ष का पद संभालने वाले उनके बेटे जयंत चौधरी की रस्म पगड़ी के कार्यक्रम में लाखों के जनसमूह की उपस्थिति को इस संभावित बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा सकता है। यह दोनों घटनाएं 1989 के दौर को दोहराती दिख रही हैं। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि 1989 का लोक सभा और उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव भारतीय किसान यूनियन के राजनीतिक असर के चलते तत्कालीन जनता दल के लिए बेहतर चुनावी नतीजे लाने वाला रहा था। तब अजित सिंह जनता दल के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक थे। वहीं भारतीय किसान यूनियन के उस सबसे मजबूत दौर में महेंद्र सिंह टिकैत यूनियन के अध्यक्ष थे।
अब अजित सिंह की विरासत जयंत चौधरी के पास है। चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद पहली बार जयंत चौधरी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक दल 2022 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में उतरेगी। वहीं भारतीय किसान यूनियन की अध्यक्षता महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे और बालियान खाप के चौधरी, नरेश टिकैत के पास है। वहीं यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत मौजूदा किसान आंदोलन के एक बड़े नेतृत्व के रूप में अपनी जगह बना चुके हैं। पांच सितंबर, 2021 की मुजफ्फरनगर की संयुक्त किसान मोर्चा की पंचायत लाखों किसानों की उपस्थिति के चलते कामयाब रही थी। यह भारतीय किसान यूनियन की अभी तक की सबसे बड़ी किसान पंचायतों में से एक रही है। वहीं यह हाल के बरसों में उत्तर प्रदेश की अधिकांश बड़ी राजनीतिक रैलियां भी इसकी बराबरी करने में सक्षम नहीं हैं। इसके चलते संयुक्त किसान मोर्चा में राकेश टिकैत का कद बहुत मजबूत हुआ है। एक तरह से 28 जनवरी, 2021 के दिन जिस तरह से गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन को नया जीवन दिया उसी तरह मुजफ्फरनगर की किसान पंचायत ने आंदोलन को एक नये चरण में पहुंचा दिया है जो आंदोलनकारी किसान संगठनों और उनके नेतृत्व को इसके मजबूती के साथ जारी रहने के प्रति आश्वस्त कर गया।
केंद्र सरकार द्वारा लाये गये तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसानों का आंदोलन दस माह पूरे करने के करीब है। सरकार और किसान संगठनों के बीच 22 जनवरी, 2021 से बातचीत भी बंद है। इसके चलते यह आंदोलन भाजपा के विरोध में किसानों और मतदाताओं को एकजुट करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस आंदोलन में राजनीति को लेकर कोई भ्रम नहीं है। भले ही यह पूरी तरह के अराजनैतिक है लेकिन इसके विरोध के केंद्र में भाजपा है। अब किसान संगठनों के नेता साफतौर पर कह रहे हैं कि आगामी पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में किसान भाजपा को राजनीतिक नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। यह बात मुजफ्फरनगर की किसान पंचायत में बहुत साफ कर दी गई।
यहां मैं एक बार फिर 1989 की समानता देख रहा हूं। साल 1988 के अक्तूबर के भारतीय किसान यूनियन के दिल्ली में वोट क्लब के धरने और 31 अक्तूबर, 1988 की रैली के साथ इसके समापन में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ किसानों के गुस्से को वोट में बदलने का संदेश लोगों में चला गया था। कुछ इसी तरह की नाराजगी पांच सितंबर की मुजफ्फरनगर की पंचायत में दिखी और उत्तर प्रदेश के चुनावों में किसानों के मतों पर इसका सीधा असर पड़ने वाला है। उत्तर प्रदेश में किसानों के वोट निर्णायक हैं और कोई भी राजनीतिक दल इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है।
इस गुस्से का फायदा किसे मिलेगा इसको लेकर बहुत कुछ छिपा नहीं है। जहां 1989 में फायदा जनता दल को मिला था वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल को किसानों की पार्टी माना जाता है और उसे ही यह फायदा मिलने की संभावना है। वहीं 19 सितंबर के रस्म पगड़ी कार्यक्रम में सभी सर्व खाप चौधरियों द्वारा जयंत चौधरी को पगड़ी पहनाने के फैसले और उसमें भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत समेत सभी खाप प्रमुखों की उपस्थिति इस गणित को समझने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती है। राकेश टिकैत लगातार भाजपा के खिलाफ किसानों को वोट की चोट करने के बयान दे रहे हैं। नरेश टिकैत लगातार भाजपा को किसान विरोधी पार्टी बता रहे हैं। ऐसे में इन वोटों की स्वाभाविक दावेदार राष्ट्रीय लोक दल ही है।
दूसरे पंचायतों के सिलसिले ने उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ की वापसी का माहौल बना दिया है। जो 2013 के मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के चलते जाट और मुस्लिमों में पैदा हुई खाई को भर रहा है। वहीं अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली समाजवादी पार्टी का लोक दल के साथ गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है। दोनों दलों के उच्च सूत्रों का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल को अधिक सीटें मिलेंगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश विधान सभा की 100 से अधिक सीटें हैं और इनमें से आधे से अधिक में जाट वोट निर्णायक हैं। मुस्लिम वोटों के साथ मिलकर यह काफी हद तक जीत का गणित बनाते हैं।
छपरौली में चौधरी अजित सिंह की श्रद्धांजली सभा और जयंत चौधरी के रस्म पगड़ी कार्यक्रम में जुटी भीड़
हालांकि भाजपा नेतृत्व लगातार राज्य में विकास के बड़े दावे कर रहा है। लेकिन इस लेखक के साथ एक बातचीत में छपरौली के ही एक बड़े भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि पश्चिम में भाजपा को नुकसान हो रहा है। इसकी वजह गिनाते हुए उन्होंने गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में चार साल से वृद्धि न करना, समय पर गन्ने का भुगतान न होना, अवारा पशुओं की समस्या, बेरोजगारी और महंगाई को बताया। उक्त नेता ने साफ किया ही हमारी सरकार इन मुद्दों पर नाकाम रही है। वैसे एक तथ्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों में भुगतान के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन वाली चीनी मिल के रूप में छपरौली के पास की मलकपुर चीनी मिल शुमार हैं। वहीं गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा के गृह जिले शामली की चीनी मिलें भुगतान के मामले में सबसे खराब स्थिति में हैं।
आज इस लेखक ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजादी के पहले से एक अहम सीट छपरौली में आज सात आठ साल के छोटे बच्चों से लेकर 80 साल से अधिक की उम्र के बुजुर्गों में जयंत चौधरी के प्रति जो भावनात्मक जुड़ाव देखा वह साफ कर रहा है कि 1937 में चौधरी चरण सिंह द्वारा इस सीट से उत्तर प्रदेश की विधान सभा में पहुंचने से लेकर अभी तक यह सीट उनकी पार्टी और उनके बाद अजित सिंह की पार्टी के अलावा कोई दूसरा दल क्यों नहीं जीत सका। यह समझने के लिए आज का छपरौली का माहौल काफी है और दूसरी कोई मशक्कत करने की जरूरत नहीं है। 19 सितंबर की इस श्रद्धांजली सभा ने यह संकेत दे दिये हैं कि जयंत के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक दल एक बार फिर किसानों की एक पार्टी के रूप में अपनी ताकत हासिल करने की संभावनाएं मजबूत कर रहा है। इसके लिए केंद्रीय कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन और उत्तर प्रदेश में बिजली और डीजल की बढ़ती कीमतों से लेकर अवारा पशुओं की समस्या और गन्ने के दाम का मुद्दा इसके लिए जमीन तैयार कर रहा है।