क्या आप हीटवेव या जून से सितंबर तक मानसून के महीनों में होने वाली बारिश में कमी को लेकर चिंतित हैं? अगर ऐसा है तो आप निश्चिंत होकर बैठ जाइए। किसानों को भी कम बारिश को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम रविचंद्रन ने ‘सब चंगा है’ का संदेश दिया है। ऐसा लगता है कि वह बहुत बड़े आशावादी हैं और फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ में अभिनेता आमिर खान के किरदार ‘रैंचो’ के ‘ऑल इज वेल’ से प्रभावित हैं। सरकार की तरफ से ‘ऑल इज वेल’ का संदेश 11 अप्रैल को आया जब पावर पॉइंट ग्राफिक्स में दक्षिण-पश्चिम मानसून के बारे में बताया गया। यह मानसून ईश्वर के अपने देश केरल के रास्ते भारत में प्रवेश करता है।
बेहद जटिल आईएमडी (मौसम विभाग) की भाषा में जो आधिकारिक अनुमान जारी किया गया है, उसके मुताबिक मात्रा के लिहाज से मानसून सीजन में बारिश लॉन्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) के 96% रहने की संभावना है। इसमें 5% की कमी-बेशी हो सकती है। एलपीए के 95% से कम होने को सामान्य से कम तथा इससे अधिक को सामान्य कहा जाता है। अब मौसम विभाग ने 5% कमी-बेशी की संभावना जताई है तो हमें भगवान इन्द्र से प्रार्थना करनी होगी ताकि आईएमडी के अनुमान से 5% कम बारिश न हो। ऐसा हुआ तो बारिश एलपीए के 91% तक रह जाएगी। बादल बनने की प्रक्रिया पर अल नीनो जैसे समुद्री प्रभाव का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में औसत से 5% अधिक बारिश की संभावना बहुत कम है। मौसम विभाग के ग्राफिक के अनुसार सामान्य बारिश की संभावना 35% है। सामान्य से कम बारिश की संभावना 69% और कम बारिश की संभावना 22% है। इस तरह सामान्य से कम तथा कम, दोनों मिलाकर 51% बनते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस बार बारिश कम रहने के ही आसार हैं।
यह आलेख लिखने का मकसद विमल राय की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ का रिप्ले दिखाना नहीं है। उस फिल्म में सूखा की कहानी बताई गई थी जिसमें अभिनेता बलराज साहनी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। फिल्म में दिखाया गया था कि अगर इंद्र देवता हमारी प्रार्थना नहीं सुनते हैं तो हमारे पास प्लान बी भी होना चाहिए। (वैसे बलराज साहनी स्क्रीन भूमिका के विपरीत व्यक्तिगत रूप से काफी ऐशो-आराम भरा जीवन बिताते थे। दो बीघा जमीन के बाद भारत ने बड़ी लंबी यात्रा पूरी की है। हरित क्रांति ने हमें न सिर्फ अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि आज हम सरप्लस की स्थिति में हैं। वही स्थिति ऑपरेशन फ्लड से दूध के मामले में हुई। लेकिन आज भी हमारी 60 प्रतिशत सिंचाई की भूमि बारिश पर निर्भर करती है। इसलिए हर साल नई चुनौतियां उभर कर सामने आती रहती हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण ग्लोबल खाद्य आपूर्ति बाधित होने से स्थिति और विकट हो गई है। मौसम के सालाना असर के अलावा गेहूं, चीनी, तिलहन आदि को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल हो गया है।
इस वर्ष मौसम को लेकर चिंता क्यों करनी चाहिए? चिंता कई मामलों को लेकर है जिन पर न सिर्फ विचार करने बल्कि अमल करने की भी आवश्यकता है ताकि मौसम के असर का पहले अनुमान लगाया जा सके। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं की कटाई से पहले मार्च में बारिश और ओले पड़ने के कारण फसल को काफी नुकसान होने की खबर है। इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 11.1 करोड़ टन पर स्थिर रहने या इससे कम होने की आशंका है। अगर मानसून की बारिश कम हुई तो खरीफ की प्रमुख फसल धान पर भी असर होगा। हालांकि सरकारी अधिकारी ऐसा नहीं मानते। उन्हें लगता है कि मानसून सीजन के पहले चरण में अच्छी बारिश होगी और धान की बुआई के लिए परिस्थितियां अनुकूल रहेंगी। लेकिन बुवाई के बाद पौधों की सिंचाई के लिए पानी कहां से आएगा? ऐसा लगता है कि कृषि मंत्रालय ने भूजल से उम्मीदें लगा रखी हैं, मानो उसकी प्राकृतिक रिचार्जिंग की जरूरत नहीं पड़ती है
उपभोक्ताओं के लिए इसका असर अनाज की अधिक कीमत के रूप में होगा। खुदरा महंगाई में 1% गिरावट की बड़ी-बड़ी हेडलाइंस के बावजूद पिछले साल की तुलना में इस वर्ष मार्च में अनाज के दाम 15.27% बढ़ गए। इसी तरह दूध और इसके उत्पादों की सालाना महंगाई 9.31% और मसालों की 18.21% बढ़ गई। थोक में देखें तो मंडियों में गेहूं के दाम मार्च में 10% अधिक रहे। गेहूं के दाम नीचे लाने के लिए सरकार को अपने स्टॉक से खुले बाजार में इसे जारी करना पड़ा।
एलपीए के 96% बारिश के अनुमान को देखते हुए हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाना महंगा पड़ेगा। कुछ ही महीनों में इसका पता चल जाएगा। दरअसल मानसून का यह पूरा डाटा देश के विभिन्न क्षेत्रों के औसत का खेल है। जरूरी यह है कि सभी क्षेत्रों में समान रूप से बारिश हो ताकि सबको उसका फायदा मिल सके। भगवान इंद्र को हम सब पर मेहरबान होना चाहिए, किसी एक पर उन्हें अधिक मेहरबानी नहीं दिखानी चाहिए।
मानसून के अप्रैल के अनुमान का नक्शा देखें तो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे अनाज उपजाने वाले प्रमुख राज्य में बारिश कम होती नजर आ रही है। इस मामले में केरल, कर्नाटक और पूर्वी भारत के कुछ हिस्से सौभाग्यशाली हो सकते हैं। मौसम विभाग के पूर्वानुमान में कहा गया है कि प्रायद्वीपीय भारत, पूर्वी मध्य भारत, उत्तर पूर्व भारत तथा उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य तथा सामान्य से अधिक बारिश होगी। उत्तर पश्चिम भारत, पश्चिमी मध्य भारत और उत्तर पूर्व भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य तथा सामान्य से कम बारिश के आसार हैं।
ऐसे में प्लान बी की जरूरत महसूस होती है। किसानों को खरीफ या गर्मियों की फसल के विविधीकरण के बारे में बताया जाना चाहिए। मानसून के पहले चरण में जो बारिश होगी, उसे जमा करने की सलाह उन्हें दी जानी चाहिए। दो बीघा जमीन से लेकर थ्री इडियट्स के बीच नीति निर्माताओं को शाहरुख खान की अभिनीत फिल्म ‘परदेस’ भी देखनी चाहिए। परदेस की स्टोरीलाइन क्या है? यह 2004 की फिल्म है। इसे आप यूट्यूब पर मुफ्त में देख सकते हैं।
(प्रकाश चावला सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट है और आर्थिक नीतियों पर लिखते हैं)