कपास भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में कपड़ा उद्योग के लिए सबसे उम्दा और सबसे पसंदीदा फाइबर बना हुआ है। यह भारतीय किसान को स्थायी रूप से आजीविका देने वाली एक बेहद महत्वपूर्ण फसल है। वर्तमान में भारत के अंदर 5 से 6 करोड़ लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए कपास की खेती, इसकी मार्केटिंग, प्रसंस्करण और इसके निर्यात के कार्यो पर निर्भर हैं। पिछले कुछ वर्षों से कपास की खेती में वैश्विक स्तर पर लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है और कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुए दबाव के कारण 2020/21 के दौरान विश्व भर में कपास की खेती ने नाटकीय बदलाव झेले हैं।
भारत दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादक देशों में गिना जाता है, लेकिन अधिक पानी चाहने वाली इस फसल के लिए गैर-टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने औऱ रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करने के साथ-साथ आनुवंशिक संशोधन ने एक ऐसी अर्थपूर्ण चुनौती पेश कर दी है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारत के कपास के पैदावार के औसत में अभी भी एक बड़ा अंतर है, क्योकि अपने देश में इसकी खेती के लिए अधिक भूमि का इस्तेमाल करने के बावजूद किसानों की आमदनी कम है । आज 10 फीसदी से भी कम उस हिसाब से कपास उगाया जाता है जो सही रूप से किसान को आर्थिक विकास और पर्यावरण को सुरक्षा दे सके ।
नवीनतम ट्रेंड से पता चलता है कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद से कपड़ा उद्योग अपनी कपड़ा सप्लाई चैन को आगे बढ़ाने के लिए टिकाऊ फाइबर चुनने के मामले में बड़ा संवेदनशील हो गया है। इस प्रकार भारतीय कपास की खेती को पुनर्जीवन और इसको टिकाऊ खेती के लिए किसानों को प्रेरित करेगा।
कपास उत्पादन और खपत का वैश्विक परिदृश्य
कपास उत्पादन और खपत का वैश्विक परिदृश्य यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020/21 में कपास की वैश्विक खेती पिछले वर्ष हुई 11.41 करोड़ गांठों की तुलना में 6.5 प्रतिशत घट गई है । प्रमुख कपास उत्पादक देशों (भारत, चीन,यूनाइटेड स्टेट्स, ब्राजील और पाकिस्तान) के किसानों को प्रति हेक्टेयर लाभ के साथ-साथ प्रति हेक्टेयर पैदावार के मामले में भी अपने समकक्ष देशों के किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। क्योकि प्रतिकूल मौसम, कपास की फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप, घटती कीमतें, मजदूरी की बढ़तीलागत और नीतिगत अनिश्चितता ने एक साथ मिलकर इस गिरावट को तेज किया है। इसके अलावा तेल की बेहद सस्ती कीमतों के चलते सिंथेटिक फाइबर की घटती कीमतों ने विश्व कपास बाजारों पर भारी प्रतिस्पर्धात्मक दबाव डाला। भारत ~3.5 करोड़ गांठ कपास का उत्पादन करता है, जबकि चीन ~3.25 करोड़ गांठ, यूएसए 2.5 करोड़ गांठ का उत्पादन करता है, इसके बाद ब्राजील और पाकिस्तान क्रमशः~1.5 और 0.65 करोड़ गांठ कपास का उत्पादन करते हैं। हालांकि अमेरिका और ब्राजील कपास के प्रमुख निर्यातक हैं, लेकिन दोनों देशों के कपास उत्पादन में दो वर्षों से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक आयात की मांग को पूरा करने और कपास की ऊंची कीमत बरकरार रखने में समस्या उत्पन्न हो गई है।
कपास की खपत के मामले में एशियाई देश ग्लोबल मार्केट में अपना दबदबा रखते हैं। चीन में कपास की खपत लगभग 4.75 से 5 करोड़ गांठ तक की है, जो दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है। जबकि पाकिस्तान में मात्र1.35 करोड़ गांठ कपास की खपत होती है। हाल के वर्षों में कताई और कपड़ा उद्योग की मजबूत तरक्की के चलते बांग्लादेश और वियतनाम में कपास की खपत तेजी से बढ़ी है।अब बांग्लादेश को 90 लाख से 1 करोड़ गांठ कपास और वियतनाम को 75 से 80 लाख गांठ की जरूरत पड़ रही है। अपनी निकटता के कारण ये सभी एशियाई देश भारत से पर्याप्त मात्रा में कपास का आयात करते हैं। अगर हम भारत के हालातकी बात करें तो यहां भी कपास की खपत बढ़ रही है। पिछले दो दशकों में भारतीय कताई उद्योग के साथ-साथ घरेलू कपड़ा उद्योग की अभूतपूर्व तरक्की के कारण भारत कपास के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में शामिल हो गया है,अर्थात् पूरी दुनिया की खपत का लगभग 23% कपास हमारे देश में खप जाता है।
वैश्विक स्तर पर कपास किसानों के लिए उज्जवल बिंदु
पिछले कुछ वर्षों से कपास की खेती का दुनिया में रकबा स्थिर बना हुआ है। साल 2020 की भयंकर मंदी से विश्व अर्थव्यवस्था के गिरावट बावजूद अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार वैश्विक कपास की खपत 2021-22 के सीजन में 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो कि 1.7 प्रतिशत की दीर्घकालिक औसत दर से काफी अधिक है। विश्व कपास उत्पादन 1.5 फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है जो 2029 में लगभग 30 मिलियन टन हो जाएगा। ओईसीडी-एफएओ एग्रीकल्चरल आउटलुक 2020-2029 ने संकेत दिया है कि यह कामयाबी कपास उगाने के रकबे का विस्तार (0.5 फीसदी प्रति वर्ष) करने के साथ-साथ औसत वैश्विक पैदावार(1 फीसदी प्रति वर्ष) बढ़ाने से हासिल होगी।
भारतीय कपास की खेती, एक नजर में
भारत दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादक देशों में गिना जाता है, जो पूरे दुनिया के कपास का लगभग 26% हिस्सा उत्पादित करता है। देश में कपास की खेती के हिस्से सबसे बड़ा रकबा आता है जो 12.5 मिलियन हेक्टेयर से लेकर 13.0 मिलियन हेक्टेयर के बीच बैठता है। यह कपास की वैश्विक खेती का लगभग 41 फीसदी रकबा है। कपास का उत्पादन मुख्य रूप से देश के गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश,कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु और ओडिशा राज्य में किया जाता है। भारत में कपास उत्पादन केआधुनिकीकरण (बीटी किस्मों को अपनाने सहित) ने भारत को कपास उत्पादक देशों के शीर्ष पर पहुंचा दिया।
कपास के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर अधिक जोर देने जैसी सरकारी नीतियों ने ऐसे इनपुट और मूल्य समर्थन उपायों के लिए सब्सिडी प्रदान करके किसानों को गुणवत्ता वाले बीजों और कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे भारत में कपास के परिदृश्य को बदलने में योगदान दिया है।
भारतीय कपास की खेती के असरदार आंकड़ों के बावजूद प्रति हेक्टेयर उत्पादकता जो होनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है । इस फसल में पानी की अधिक खपत और गैर-टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बिना सोचे समझे अपनाने और उर्वरकों व कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करने के साथ-साथ आनुवंशिक संशोधन ने एक ऐसी अर्थपूर्ण चुनौती पेश कर दी है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
मौजूदा परिदृश्य को बदलने के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि किसानों को कपास-कृषि की गुणकारी पद्धतियों एवं वैज्ञानिक खेती की तकनीकों को अपनाने के बारे में जागरूक किया जाए। सिंचाई के पानी का उचित इस्तेमाल, संतुलित खाद उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रभावी इस्तेमाल के साथ -साथ इसकी खेती के लिए ऐसी पद्धतियों को बढ़ावा देना जिससे नकदी फसल के रूप में पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ बन सके, भारतीय किसान कपास की खेती में टिकाऊ विकास हासिल कर पाएंगे।
अध्ययनों से साबित हो चुका है कि कपास की खेती में माइक्रो-इरिगेशन जैसी उपयुक्त तकनीक को अपनाने से इनपुट लागत कम करने में मदद मिलती है और किसानों के द्वारा उगाई जाने वाली फसलों की संख्या बढ़ने से उनकी आय में वृद्धि होती है।
इन लाभों में- पानी की जरूरत घटने से पानी के उपयोग दक्षता में 80-90 फीसदी तक की वृद्धि, प्रति हेक्टेयर बिजली की लगभग 20 फीसदी कम खपत और उर्वरक उपयोग दक्षता में 70- 80 फीसदी तक की वृद्धि शामिल है, जो एक बहुत बड़ी लागत बचत में तब्दील हो जाती है। पानी और उर्वरक के नियंत्रित उपयोग से फसलों की उत्पादकता में 50 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई है। यह सभी मिलकर किसान की आय के स्तर को असाधारण रूप से बढ़ा देते हैं।
तकनीक आर्थिक लाभों के अलावा कई सामाजिक और पर्यावरण-संबंधी लाभ भी प्रदान करती है। चूंकि भारतीय किसान किसी भी ऐसी तकनीक को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं, जो उनके जीवन में निश्चितता लाए और उनकी आय बढ़ाए, इसलिए कपास की खेती में ड्रिप इरिगेशन का व्यापक प्रसार करने की आवश्यकता है। कपास की खेती में माइक्रो-इरिगेशन के क्रियान्वयन की सफलता जागरूकता अभियानों और किसानों केप्रभावी प्रशिक्षण पर निर्भर करती है।
( सी.के. पटेल ,नेटाफिम इंडिया के एजीएम (एग्रोनॉमीएंड मार्केटिंग) हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।)