भारतीय पॉल्ट्री उद्योग की कमाई 8-10 प्रतिशत बढ़ सकती है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाला साल पॉल्ट्री उद्योग के लिए अच्छा रहेगा। रेटिंग एजेंसी इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में घरेलू पॉल्ट्री उद्योग की राजस्व वृद्धि 8-10 प्रतिशत रहने की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल की पहली छमाही में प्राप्तियां मजबूत थीं, लेकिन बाद में अतिरिक्त आपूर्ति के कारण उनमें कमी आनी शुरू हो गई। इसके बाद चालू वित्त वर्ष में मांग में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में औसत कमाई बढ़कर 107 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 101 रुपये प्रति किलोग्राम थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि त्योहारी सीजन और ठंड का मौसम मांग का समर्थन करेगा और शेष वित्तीय वर्ष में कमाई बढ़ने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में प्राप्तियों में सुधार हुआ है। फीड की लागत में कमी, नियंत्रित आपूर्ति और मांग बढ़ने से पॉल्ट्री उद्योग बढ़ाने में मदद मिली है। मक्का, जो फीड लागत का 60-65 प्रतिशत है, की कीमतों में वित्त वर्ष 2013 की पहली छमाही में 9 प्रतिशत की गिरावट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में देश भर में एवियन इन्फ्लूएंजा या बर्ड फ्लू की सीमित घटनाएं हुई हैं।
इक्रा के उपाध्यक्ष और सेक्टर प्रमुख शीतल शरद ने कहा कि सोयाबीन (फीड लागत का 30-35 प्रतिशत) में वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में 21 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने कहा, कच्चे माल की कीमत अब तक अनुकूल रही है, लेकिन खरीफ सीजन के दौरान सोयाबीन की फसल में काफी कमी और मक्के की बुआई में देरी से फीड लागत बढ़ने की चिंता पैदा हो गई है। इससे पॉल्ट्री कंपनियों के मार्जिन पर दबाव पड़ने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में केरल और झारखंड में बर्ड फ्लू की स्थानीय घटनाएं दर्ज की गईं, जो आगे नहीं फैलीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी बड़े स्थानीय प्रकोप से प्रभावित और आस-पास के क्षेत्रों में मांग और कमाई पर प्रभाव पड़ सकता है। लंबी अवधि में भारतीय पॉल्ट्री कंपनियों को वैश्विक बाजार में नए अवसर मिलने की उम्मीद है। सितंबर 2023 में भारत और अमेरिका ने लंबे समय से चले आ रहे पॉल्ट्री विवाद के समाधान की घोषणा की। इससे भारतीय बाजार अमेरिकी पॉल्ट्री उत्पादों के लिए खुल सकते हैं। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कमाई पर दबाव बढ़ेगा।
मध्यम से लंबी अवधि में, घरेलू मांग अनुकूल रहेगी, जिसे बढ़ती शहरी आबादी और खान-पान की बदलती आदतों का समर्थन मिलेगा। उच्च मार्जिन मूल्य वर्धित उत्पादों में परिवर्तन का समर्थन करने के लिए पॉल्ट्री कंपनियों को फीड मिलों की क्षमता बढ़ाने में निवेश करना पड़ेगा। लागत में वृद्धि के बीच फीडस्टॉक के लिए कार्यशील पूंजी की बढ़ती आवश्यकताएं कर्ज को उच्च स्तर पर रख सकती हैं।