भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के गेहूं की नई किस्मों के डिमांस्ट्रेशन फील्ड में 19 फरवरी, 2023 को एक बातचीत के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इस लेखक से कहा था कि इस साल गेहूं की फसल के हालात बहुत अच्छे हैं। लेकिन यह इतनी संवेदनशील फसल है कि जब तक इसकी कटाई नहीं हो जाए तो अनिश्चितता बनी रहती है। अभी तक की स्थितियों को देखकर लगता है कि इस साल गेहूं की फसल बेहतर उत्पादन की ओर बढ़ रही है। पिछले साल मार्च के तीसरे सप्ताह से अचानक तापमान में बढ़ोतरी ने गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था। इस साल भी फरवरी में तापमान के सामान्य से अधिक होने के चलते उत्पादन प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई थी। वहीं 13 और 14 मार्च के लिए 36 डिग्री सेल्सियस तापमान के पूर्वानुमान ने इस आशंका को कुछ बढ़ा दिया था लेकिन जहां भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस पूर्वानुमान को रिवाइज कर दिया, वहीं दो दिन के बाद से अप्रैल के पहले सप्ताह तक तापमान के सामान्य से कम रहने का अनुमान जारी किया है। जो गेहूं की फसल के लिए बेहतर है। ऐसे में उत्पादन अगर 11.21 करोड़ टन के अनुमान को हासिल कर सकता है।
आईएआरआई के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. राजबीर यादव ने रूरल वॉयस को बताया कि इस समय गेहूं के बड़े उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश वाले देश के पश्चिमोत्तर हिस्सों में फसल ग्रेन फिलिंग स्टेज में है और मार्च के अंत तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। उसके बाद ग्रेन ड्राइंग की प्रक्रिया शुरू होगी जिसमें दाने में नमी का स्तर कम होने लगता है और नमी का स्तर 10 से 12 फीसदी के बीच रह जाता है। सरकारी खरीद मानकों में गेहूं के दाने में नमी का अधिकतम स्तर 12 फीसदी रखा गया गया है।
डॉ. यादव के मुताबिक गेहूं की फसल के लिए कोई भी नकारात्मक कारक इस बार नहीं है। फसल गिरने की समस्या नहीं है, फसल में कोई बीमारी नहीं है और फसल में जल भराव की भी समस्या इस बार नहीं है। इन प्रतिकूल कारकों के नहीं होने का फायदा बेहतर उत्पादन के रूप मे मिलेगा।
डॉ. यादव कहते हैं कि आईएमडी के मुताबिक अप्रैल के पहले सप्ताह तक तापमान 29 से 30 डिग्री के बीच रहने का अनुमान जारी किया गया है। न्यूनतम और अधिकतम दोनों तरह के तापमान का स्तर औसत से एक से दो फीसदी तक कम रहेगा। वहीं इस साल गेहूं का रकबा औसत रकबे और पिछले साल से अधिक है। यह 3.43 करोड़ हैक्टेयर से अधिक है। ऐसे में एक बेहतर फसल उत्पादन की संभावना काफी अधिक है।
वह कहते हैं कि अचानक तापमान वृद्धि से अगर फसल ड्राइ होना शुरू हो जाए तो उससे उत्पादन प्रभावित होता है। लेकिन अगर वह ग्रीन रहती है तो एक दो दिन अगर तापमान 35 डिग्री भी हो जाता है तो उसका प्रतिकूल असर फसल पर नहीं पड़ता है। इस समय फसल अभी तक ग्रीन है। जो इस बात का संकेत है कि फसल सामान्य स्थिति में है।
गेहूं की फसल की यह स्थिति सरकार के लिए बड़ी राहत लेकर आ रही है क्योंकि पिछले साल वैश्विक बाजार में ऊंची कीमतों के चलते निर्यात की बेहतर संभावनाओं और अधिक तापमान के चलते फसल उत्पादन में गिरावट ने कीमतों में बढ़ोतरी का रुख ला दिया था। सरकार ने 2021-22 सीजन की गेहूं की फसल के उत्पादन के अनुमान को उसके पहले साल के मुकाबले में मामूली कमी कर इसे 10.77 करोड़ टन पर ही रखा था। वहीं कुछ स्वतंत्र अनुमानों में उत्पादन के करीब 9.50 से दस करोड़ टन बीच रहने का अनुमान लगाया गया। जिस तरह से गेहूं की कीमतें बढ़ीं और निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद गेहूं की सरकारी खऱीद 187.9 लाख टन पर अटक गई वह उत्पादन के सरकारी अनुमान से कम रहने का संकेत देने के लिए काफी थे। निर्यात पर पाबंदी के बावजूद 444 लाख टन के सरकारी खरीद लक्ष्य के मुकाबले सरकारी खरीद में केवल 187.9 लाख टन गेहूं ही मिला था। जबकि इसके पहले साल में 10.95 करोड़ टन उत्पादन में गेहूं की सरकारी खरीद 433.4 लाख टन रही थी। नतीजतन पूरे साल गेहूं की कीमतें तेज बनी रही और दिसंबर 2022 में तीन हजार रुपये प्रति क्विटंल को पार कर गई थी। जिसके बाद सरकार ने 30 लाख टन गेहूं की ओएमएसएस के तहत बिक्री की घोषणा की जिसे बाद में बढ़ा दिया गया। इस योजना के तहत 31 मार्च तक गेहूं की बिक्री जारी रहेगी। जिसके चलते गेहूं के दाम चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2023-24) के लिए तय 2125 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के करीब आ गये। मध्य प्रदेश की कुछ मंडियों में गेहूं के दाम एमएसपी से नीचे आ गये हैं।
सरकार के लिए राहत की खबर केवल घरेलू मोर्चे पर ही नहीं बल्कि वैश्विक बाजार से भी आ रही है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 250 डॉलर प्रति टन से नीचे आ गई हैं। रूस, कजाखिस्तान और आस्ट्रेलिया से करीब 8.40 करोड़ टन गेहूं जून के अंत तक वैश्विक बाजार में उपलब्ध होगा। इसके अलावा कनाडा, यूक्रेन और अर्जेंटीना का गेहूं बाजार में उपलब्ध होगा। इसके चलते वैश्विक कीमतों के लगातार कमजोर बने रहने की संभावना बन रही है। यानी यूक्रेन और रूस युद्ध के चलते विश्व ने खाद्य उत्पादों की कीमतों में महंगाई का जो दौर देखा था वह समाप्त हो गया है। इस समय खाद्य तेलों से लेकर खाद्यान्नों तक की कीमतों में भारी गिरावट आई है जो इस बात का संकेत है कि यूक्रेन युद्ध का असर खाद्य उत्पादों की कीमतों और उपलब्धता के मामले में समाप्त हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का फूड इंडेक्स मार्च, 2022 के रिकॉर्ड 159.7 अंकों के स्तर के मुकाबले फरवरी 2023 में घटकर 129.8 अंकों पर आ गया है।
गेहूं का बंपर उत्पादन घरेलू किसानों के बहुत अच्छी खबर नहीं है। मध्य प्रदेश की कुछ मंडियों में गेहूं के दाम चालू रबी सीजन की फसल के लिए तय एमएसपी से नीचे आ गये हैं। खाद्य तेलों की वैश्विक कीमतों में भारी गिरावट और देश में रिकॉर्ड आयात के चलते सरसों के किसानों को पहले ही एमएसपी से नीचे की कीमत की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। चालू सीजन के लिए 5450 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी के मुकाबले मंडियों में सरसों की कीमत 4800 रुपये से 5200 रुपये के बीच चल रही है। गेहूं की सरकारी खऱीद का मार्केटिंग सीजन एक अप्रैल से शुरू होगा। प्याज, टमाटर और आलू जैसी खाद्य फसलों की कीमतों में भारी गिरावट के बाद अब सरसों की गिरती कीमत और गेहूं की नई फसल के बंपर उत्पादन की संभावना में दाम के एमएसपी के करीब रहने की मजबूत होती संभावना भारतीय रिजर्व बैंक की महंगाई पर काबू पाने की चिंता को तो कम कर सकती है लेकिन फसलों की कीमतों के मोर्चे पर मुश्किलें झेल रहे किसानों के लिए यह बहुत राहत देने की वाली स्थिति नहीं है।