केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत डायरेक्टर जनरल ऑफ फारेन ट्रेड (डीजीएफटी) ने 12 लाख टन जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सोयाबीन से तैयार सोयामील के आयात की अनुमति की अधिसूचना जारी कर दी है। इसके लिए आयात नीति 2017 के उस प्रावधान में रियायत दी गई है जिसके तहत जीएम सोयामील के आयात के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी की अनिवार्यता है। इस फैसले के बाद जीएम फसलों का मुद्दा चर्चा में आ गया है। वहीं कुछ लोग इस बात को लेकर सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार का यह फैसला देश में जीएम फसलों की मंजूरी का रास्ता खोल सकता है। देश में कई फसलों की जीएम किस्मों पर शोध विभिन्न चरणों में है लेकिन सरकार ने अभी इन फसलों के फील्ड ट्रायल की अनुमति नहीं दी है।
जीएम सोयामील के इस आयात के लिए 31 अक्तूबर,2021 की अंतिम तिथि निर्धारित की गई है। साथ ही इसके आयात के लिए नावा शेवा (सी पोर्ट) और पेट्रापोल (लैंड पोर्ट) बंदरगाहों को निर्धारित किया गया है। इस आयात के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री की अनुमति मिलने का हवाला भी दिया गया है। साथ ही बताया गया है कि इस आयात के लिए प्रस्ताव मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा की तरफ से आया था।
सरकार के इस फैसले के साथ देश में जीएम फसलों का मुद्दा चर्चा में आ गया है। पशुपालन मंत्रालय द्वारा सोयामील के आयात के लिए 11 अगस्त, 2021 को सहमति के बाद भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने इसका विरोध करते हुए पशुपालन सचिव को पत्र लिखकर इस तरह की अनुमति को वापस लेने की मांग की थी और इस फैसले को अतार्किक बताया था। उसके बाद इस मुद्दे पर संबंधित मंत्रालयों के बीच पत्र व्यवहार होता रहा और 17 अगस्त को वित्त मंत्रालय ने एक आफिस मेमोरेंडम में कहा कि भले ही जीएम सोयामील में लिविंग आर्गनिज्म नहीं है लेकिन निर्धारित आयात नीति प्रावधानों के तहत इसके लिए जीईएसी की मंजूरी जरूरी है। लेकिन उसके कुछ दिन बाद डीजीएफटी की अधिसूचना में जीईएसी की मंजूरी के प्रावधान से छूट देने की बात कही गई है।
साथ ही कहा गया है कि इस आयात की निगरानी सख्ती से की जाएगी और इसे केवल दो बंदरगाहों के जरिये ही किया जाएगा। वहीं आयात की समयसीमा 31 अक्ततूबर, 2021 निर्धारित की है।
सरकार के इस फैसले को लेकर जीएम मुद्दे पर अब सवाल उठ रहे है। देश में जीएम फसलों पर शोध करने वाले के बावजूद इनके फील्ड ट्रायल की अनुमति नहीं है। इस मसले पर कई कृषि वैज्ञानिकों ने रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा है कि जब देश में जीएम सोयाबीन से तैयार सोयामील की अनुमति दी गई है तो देश में जीएम फसलों के शोध को आगे बढ़ाने में कोई परहेज क्यों बरता जा रहा है। इसमें बड़ा मसला जीएम सरसों का है, जिस पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वायस चांसलर दीपक पेंटल ने शोध किया है। भारत खाद्य तेलों के मामले में आयात पर निर्भर है और खपत का करीब दो तिहाई खाद्य तेल आयात किया जाता है। जिसके आयात पर चालू तेल साल में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा । ऐसे में जीएम सरसों किस्म जो सामान्य सरसों की प्रजातियों के मुकाबले अधिक उत्पादकता देती है, उस पर काम आगे क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा है। इस तरह के सवाल उठना स्वाभाविक है।
वहीं देश में जीएम फसलों और उत्पादों का विरोध करने वाले किसान संगठनों और दूसरे संगठनों का विरोध इस मुद्दे पर तेज हो सकता है। इसलिए आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर विवाद बढ़ सकता है।
डीजीएफटी का कहना है कि 12 लाख टन जीएम सोयामील आय़ात की मंजूरी कुछ शर्तों के साथ दी गई है। सोयामील का आयात 31 अक्टूबर,2021 के पहले होना चाहिए अगर इसके पहले नहीं होता है तो दूसरी मंजूरी लेना होगा । वन औऱ पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि सोया डिऑयल्ड केक में कोई लिविंग आर्गनिज्म नहीं है इसलिए मंत्रालय को पर्यावरण दृष्टिकोण से इसके आयात पर कोई आपत्ति नहीं हैं।
डीजीएफटी ने कहा है कि जो 12 लाख सोयामील आयात होगा उसकी केन्द्रीय उत्पाद औऱ सीमाशुल्क बोर्ड द्वारा बंदरगाह पर कड़ाई से निगरानी औऱ निऱीक्षण किया जाएगा जिससे किसी प्रकार के नियम का उल्लघंन न हो ।
इस साल दुनिया भर में उत्पादन में भारी गिरावट के चलते सोयाबीन की कीमतों में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। इसके चलते सोयामील की कीमतें कुछ माह के भीतर ही करीब दो गुना बढ़ चुकी हैं। इसके चलते पॉल्ट्री उद्योग के लिए फीड के दाम बहुत तेजी से बढ़े हैं। इस संकट को हल करने के लिए पॉल्ट्री उद्योग लगातार सोयामील के आयात की मांग सरकार से कर रहा है। फिलहाल पॉल्ट्री फीड बनाने वाली कंपनियां अपनी क्षमता के काफी कम स्तर पर काम कर रही हैं।