रबी सीजन की बुवाई शुरू होने के साथ ही प्रमुख उर्वरक डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) की किल्लत ने किसानों की नींद उठा दी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब और यूपी समेत कई राज्यों में डीएपी के लिए किसान लाइनों में लगने को मजबूर हैं, फिर भी जरूरत के मुताबिक डीएपी नहीं मिल पा रहा है। रबी सीजन में गेहूं, सरसों, चना और आलू की बुवाई के लिए किसानों को डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह तो डीएपी के लिए मारामारी की स्थिति पैदा हो गई है और किसान धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर हैं।
उर्वरक के रूप में यूरिया के बाद देश में सबसे अधिक खपत डीएपी की होती है। डीएपी का प्रयोग मुख्यत: फसल की बुवाई के समय किया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल सितंबर में डीएपी की बिक्री पिछले साल के 15.7 लाख टन के मुकाबले 51 फीसदी घटकर 7.76 लाख टन रह गई है। जबकि इस साल अच्छे मानसून के कारण उर्वरकों की मांग बढ़ी है। इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी के बढ़ते दाम, उर्वरक सब्सिडी को लेकर अनिश्चितता और डीएपी के आयात में आई कमी मुख्य वजह हैं।
असल में डीएपी का मौजूदा संकट खरीफ सीजन के दौरान ही शुरू हो गया था जो अब सामने दिख रहा है। इस साल खरीफ सीजन में अनुमानित आवश्यकता के मुकाबले डीएपी की बिक्री में काफी गिरावट दर्ज की गई थी।
क्रॉप वेदर वाच रिपोर्ट के अनुसार, खरीफ सीजन (अप्रैल-सितंबर) 2024 में डीएपी की कुल अनुमानित आवश्यकता 59.87 लाख टन आंकी गई थी। लेकिन 1 अप्रैल से 30 सितंबर तक देश में 46.12 लाख टन डीएपी की बिक्री हुई जो खरीफ सीजन 2023 में हुई 63.95 लाख टन डीएपी बिक्री के मुकाबले करीब 28 फीसदी कम है। जबकि इस सीजन में खरीफ की बुवाई लगभग दो फीसदी बढ़ी है। बुवाई का रकबा बढ़ने के बावजूद डीएपी की बिक्री में आई गिरावट खरीफ सीजन में डीएपी की कमी को दर्शाता है। जबकि इस दौरान यूरिया, एनपीके और एमओपी उर्वरकों की बिक्री बढ़ी है।
खरीफ सीजन से आगे बढ़ते हुए अब रबी सीजन में डीएपी संकट गंभीर रूप ले रहा है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अप्रैल में डीएपी की कीमत 430 डॉलर प्रति टन के आसपास थी जो सितंबर में बढ़कर 630-640 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उर्वरक कंपनियों ने डीएपी का कम आयात किया।
इस साल अप्रैल से अगस्त 2024 तक भारत में 15.9 लाख टन डीएपी का आयात हुआ, जो पिछले साल इसी अवधि में हुए 32.5 लाख टन डीएपी आयात से 51 फीसदी कम है। पिछले दिनों चीन की सरकार ने डीएपी के निर्यात पर सितंबर के अंत तक रोक लगा दी थी। इन कारण भी डीएपी की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी हुई। भारत चीन से हर साल लगभग 15 से 20 लाख टन डीएपी का आयात करता है। भारत में सालाना करीब 110 लाख टन डीएपी की खपत होती है जिसमें से लगभग 70 लाख टन का आयात होता है।
डीएपी का आयात घटने के पीछे उर्वरक सब्सिडी में हुई कम बढ़ोतरी भी एक बड़ी वजह है। सरकार द्वारा किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी दी जाती है। लेकिन न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत सरकार द्वारा तय दरों पर डीएपी का आयात उर्वरक कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन गया है।
इस साल रबी सीजन के लिए केंद्र सरकार ने 18 सितंबर को डीएपी और अन्य कॉम्पलेक्स उर्वरकों (पी एंड के) पर 24,475 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी थी। लेकिन पिछले खरीफ सीजन के मुकाबले सरकार ने डीएपी पर सब्सिडी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं है, जिससे उर्वरक कंपनियों डीएपी आयात को लेकर हतोत्साहित हो रही हैं।
केंद्र सरकार की ओर से 20 सितंबर को जारी अधिसूचना के अनुसार, चालू रबी सीजन के लिए 21,911 रुपये प्रति टन तय की गई है। यह दर 1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक के लिए हैं। इस सब्सिडी के बावजूद उर्वरक कंपनियों को डीएपी की बिक्री पर प्रति टन करीब सात हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहीं, खरीफ सीजन (1 अप्रैल, 2024 से 30 सितंबर, 2024) में डीएपी पर सब्सिडी की दर 21,676 रुपये प्रति टन थी। उद्योग सूत्रों का कहना है कि हमें उम्मीद थी कि सरकार सब्सिडी में अधिक बढ़ोतरी करेगी, लेकिन सरकार ने मामूली ही बढ़ोतरी की है।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि कंपनियों और सरकार की कोशिश है कि फिलहाल लिक्विड और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की खपत बढ़ाकर डीएपी पर निर्भरता कम की जाए। इसके लिए किसानों को डीएपी की बजाय वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है। क्योंकि रबी सीजन में डीएपी की किल्लत बनी रहने की आशंका है।