वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गये केंद्रीय बजट को किसान संगठनों ने निराशाजनक करार देते हुए सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप लगाया है। किसान संगठनों ने बजट में एमएसपी की कानूनी गारंटी पर चुप्पी साधने, पीएम-किसान की धनराशि न बढ़ाने, कई योजनाओं के बजट में कटौती और कृषि अनुसंधान के लिए प्राइवेट सेक्टर को फंडिंग को लेकर सरकार की आलोचना की है।
भारत किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि बजट ने किसानों को "खाली हाथ" छोड़ दिया है। न एमएसपी गारंटी कानून का जिक्र है, न ही किसानों की कर्जमाफी का। कुल 48 लाख करोड रुपये के बजट में देश की अर्थव्यवस्था की धुरी किसानों के हिस्से में केवल 1.52 लाख करोड़ रुपये आए। देश की 65 प्रतिशत आबादी को सिर्फ 3 प्रतिशत बजट में सीमित कर दिया। यह ग्रामीण भारत के साथ सबसे बड़ा भेदभाव है। राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि सरकार जलवायु अनुकूल किस्मों और उत्पादकता बढ़ाने के नाम पर बड़े कॉरपोरेट्स को खेती में लेकर आना चाहती है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि किसानों की एक ही मांग है। अपनी उपज का वाजिब दाम चाहिए। एमएसपी की गारंटी चाहिए। किसानों जो चाहिए उसके लिए बजट में कुछ नहीं किया। ना ही किसान सम्मान निधि बढ़ाई। सबको उम्मीद थी कि किसानों ने चुनाव में जो नाराजगी दिखाई है तो किसानों की बात मानी जाएगी। लेकिन बजट ने किसानों को निराश किया है।
आशा-किसान स्वराज संगठन ने कृषि बजट के आवंटन में लगातार कमी को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि सरकार ने किसान आंदोलन और लोकसभा चुनाव के नतीजों से कोई सबक नहीं लिया है। आशा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बजट में ऐसे कोई ठोस कदम नहीं उठाए गये हैं जो कृषि को आर्थिक रूप से लाभकारी, पर्यावरण के दृष्टि से टिकाऊ और सामाजिक रूप से न्यायसंगत बनाने की मंशा को दर्शाता हो।
आशा के सह-संयोजक किरण विस्सा ने कहा, "बीते कई सालों में भाजपा/एनडीए सरकार एक तरफ तो बड़ी घोषणाएं करती है, वहीं दूसरी तरफ योजनाओं और किसानों के लिए वित्तीय प्रावधानों में कमी की जाती है।” आशा ने आईसीएआर के बड़े कॉरपोरेट्स के साथ एमओयू और प्राइवेट सेक्टर को भी बजटीय सहायता देने की घोषणा पर सवाल उठाया है। साथ ही कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) योजना से वास्तविक किसानों के वंचित रह जाने की आशंका जताई है।
पिछले साल की बजट घोषणाओं को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। मिसाल के तौर पर, पिछले साल बजट में प्राकृतिक खेती के लिए 459 करोड़ रुपये का बजट रखा था, जिसे संशोधित कर 100 करोड़ रुपये कर दिया। इस बार बजट में प्राकृतिक खेती के लिए 365 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। पिछले साल बजट भाषण में तीन साल में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने में मदद करने की घोषणा की गई थी जबकि इस बार अगले दो साल में एक करोड़ किसानों के प्राकृतिक खेती शुरू करने की बात कही गई है।
इसी तरह 10 हजार एफपीओ की स्थापना के लिए 2023-24 के बजट में 955 करोड़ रुपये का बजट था, जिसे घटाकर इस साल 581 करोड़ रुपये कर दिया है। अब तक कितने एफपीओ बने, एफपीओ से किसानों को कितना लाभ हुआ इसका बजट में कोई उल्लेख नहीं है।
किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के नेता सरवन सिंह पंधेर ने बजट में कृषि क्षेत्र की अनदेखी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि बजट में न तो एमएसपी को कानूनी गारंटी देने और न ही किसानों की ऋण माफी के बारे में कुछ कहा गया है। पंधेर ने बजट को दिशाहीन और निराशाजनक करार देते हुए कहा कि इसमें कृषि क्षेत्र के लिए कोई विजन नहीं है।
भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि बजट से किसानो को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में लघु सीमांत किसानों को प्रीमियम से मुक्त किए जाने, फसलों का लाभकारी मूल्य, सम्मान निधि में वृद्धि जैसे मुद्दों को छुआ तक नहीं है। मलिक ने कहा कि प्राकृतिक खेती की बात बेमानी है। इससे किसान को नहीं कंपनियों को लाभ हो रहा है।