गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन अनुमान और निर्यात पर पाबंदी के बावजूद घरेलू कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2125 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चल रही हैं। आने वाले महीनों में दाम और बढ़ने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि सरकार ने एहतियाती कदम उठाते हुए गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने और खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत ई-नीलामी के जरिये 15 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया है। इस समय मंडियों में गेहूं की थोक कीमत 2200-2400 रुपये प्रति क्विंटल तक है, जबकि कुछ जगहों पर खुदरा कीमत 2900-3000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है।
गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की ज्यादातर मंडियों में इस समय भाव 2125 रुपये के एमएसपी से ज्यादा औसतन 2200 रुपये के करीब चल रहा है। यही वजह है कि यहां गेहूं की सरकारी खरीद बहुत कम हो पाई है। खुले बाजार में भाव ज्यादा होने की वजह से किसानों ने सरकारी खरीद केंद्रों की बजाय निजी व्यापारियों का रुख किया। खासकर, उन किसानों ने जिनके गेहूं की गुणवत्ता बेमौसम बारिश से कम या नहीं प्रभावित हुई है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सिर्फ 2.17 लाख टन गेहूं की ही सरकारी खरीद हो पाई है, जबकि लक्ष्य 35 लाख टन का रखा गया है।
मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी का कहना है, “अभी हम लोग (एफपीओ) मध्य प्रदेश में गुणवत्ता के हिसाब से 2400-2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं की खरीद किसानों से कर रहे हैं। इस साल गुणवत्ता प्रमुख समस्या बनी हुई है क्योंकि फरवरी के अंत में और फिर मार्च में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की गुणवत्ता काफी प्रभावित हुई है। साथ ही उत्पादकता पर भी असर पड़ा है।”
गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने के सरकार के फैसले पर उनका कहना है कि यह विरोधाभासी फैसला है क्योंकि एक तरफ सरकार रिकॉर्ड उत्पादन के दावे कर रही है और दूसरी तरफ स्टॉक लिमिट लगा रही है। इसका मतलब यह है कि सरकार उत्पादन का जो दावा कर रही है वह पूरी तरह से सही नहीं है। किसान भी हमें बता रहे हैं कि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से उत्पादकता प्रभावित हुई है। मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में तो पैदावार 30-40 फीसदी तक कम हुई है।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के ज्यादातर गेहूं उत्पादक राज्य प्रभावित हुए हैं। ऐसे में सरकार कैसे रिकॉर्ड उत्पादन का दावा कर रही है यह समझना मुश्किल है। स्टॉक लिमिट लगाने के फैसले से यह बात साबित हो रही है कि उत्पादन के सरकारी आंकड़े सही नहीं हैं। सरकार ने फसल वर्ष 2022-2023 (जुलाई-जून) के तीसरे अग्रिम अनुमान में रिकॉर्ड 11.27 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है।
गेहूं की बढ़ती घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने स्टॉक लिमिट लगाने के अलावा ई-नीलामी के जरिये थोक व्यापारियों, आटा मिलों और गेहूं उत्पाद निर्माताओं को 15 लाख टन गेहूं बेचने का भी फैसला किया है। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केंद्रीय पूल से यह बिक्री की जाएगी। ई-नीलामी की तारीख अभी घोषित नहीं की गई है लेकिन इच्छुक खरीदार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पोर्टल पर इसके लिए रजिस्ट्रेशन अभी से करा सकते हैं।
महंगाई को काबू में रखने के लिए सरकार ने ओएमएसएस के तहत चावल को भी बेचने का भी फैसला किया है। हालांकि, इसके लिए ई-नीलामी की मात्रा और तारीख की घोषणा अभी नहीं की गई है। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग कीमतों को नियंत्रित करने और देश में आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं और चावल के भंडारण की स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहा है।