चालू रबी सीजन में गेहूं की फसल के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीदों पर बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने पानी फेर दिया है। नुकसान के सरकारी अनुमान आने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन जो आकलन हुए हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि इस साल गेहूं का उत्पादन पिछले साल के स्तर पर ही अटक जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के दो संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम ने हरियाणा और पंजाब में नुकसान का जमीनी आकलन किया है। इसके मुताबिक करीब 30 फीसदी फसल बारिश और आंधी में गिर गई है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस गिरी हुई फसल में 10 से 30 फीसदी का नुकसान हो सकता है। मध्य प्रदेश में भी बड़े स्तर पर गेहूं कटाई के बाद पानी में भीगा है और उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इन परिस्थितियों में चालू साल के लिए तय 11.2 करोड़ टन गेहूं उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं है।
आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल देश में 3.43 करोड़ हेक्टेयर में गेहूं की फसल बोई गई है। तीन टन प्रति हैक्टेयर के औसत उत्पादन के आधार पर गेहूं का उत्पादन 10.2 करोड़ टन बैठता है। पंजाब और हरियाणा में किसान सात टन प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन लेते हैं। मार्च के मध्य तक अनुकूल मौसम और फसल की बेहतर स्थिति को देखते हुए यह संभावना काफी मजबूत थी कि सरकार द्वारा तय 11.2 करोड़ टन से अधिक गेहूं उत्पादन होगा। लेकिन उसके बाद बेमौसम की बारिश, आंधी और ओलावृष्टि ने स्थिति को उलट दिया। उक्त वैज्ञानिक के मुताबिक ऐसा पहली बार हो रहा है कि कई राज्यों में इतने व्यापक स्तर पर बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि हुई है जिससे फसल पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
एक अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि सोनीपत से संगरूर तक वैज्ञानिकों की टीम ने फसल का मुआयना किया, जिसमें करीब 30 फीसदी फसल गिरी हुई पाई गई। यह आकलन 29 मार्च से पहले का है, जबकि 29 से 31 मार्च तक गेहूं उत्पादक राज्यों में फिर बड़े पैमाने पर बारिश हुई है। उक्त वैज्ञानिक का कहना है कि जो फसल 60 डिग्री पर खड़ी है उसमें नुकसान की संभावना न के बराबर है क्योंकि यह खड़ी हो जाएगी। लेकिन जो फसल पूरी तरह से जमीन पर बिछ गई है उसमें नुकसान काफी अधिक हो सकता है। बारिश के समय पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं के पौधों में दाना बनने और उसके सूखने की प्रक्रिया थी। ऐसे में जो पौधे नीचे गिर गए हैं उनके तने से बाली तक भोजन की आपूर्ति प्रभावित होगी। नीचे गिरे पौधों में फोटो सिंथेसिस से मिलने वाले भोजन तत्व भी प्रभावित होते हैं। जो फसल 15 नवंबर के पहले बोई गई थी उनमें दाना बन गया था और वह सूखने के स्तर पर था। लेकिन उसके बाद बोई गयी फसल मिल्किंग स्टेज में थी। ऐसी फसल के गिरने पर नुकसान अधिक होने की आशंका है। राजस्थान के कोटा बूंदी इलाके में जहां तैयार फसल की स्टेज पर ओलावृष्टि हुई है वहां नुकसान काफी अधिक हुआ है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक गेहूं की फसल उन क्षेत्रों में अधिक गिरी है जहां किसानों ने अधिक नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया है। पंजाब में किसान अधिक उत्पादन के लिए 150 किलो नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं। ऐसे में पौधे का टॉप हैवी होने के चलते गिरने की आशंका बढ़ जाती है। पंजाब और हरियाणा में किसान सात टन प्रति हैक्टेयर तक का उत्पादन लेने के लिए अधिक नाइट्रोजन उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। उनके मुताबिक सात टन से अधिक उत्पादन लेने के लिए रिस्क तो उठाना पड़ता है। ऐसे क्षेत्रों में गेहूं की अधिक फसल गिरी है। यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के डिमांस्ट्रेशन फील्ड के जरिये भी साबित हुई है। जिस खेत की उत्पादकता करीब पांच टन रहने का अनुमान है और उसमें कम नाइट्रोजन का इस्तेमाल है उनमें फसल नहीं गिरी है जबकि वहीं अधिक नाइट्रोजन के इस्तेमाल वाले फील्ड में फसल गिरी है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक एक बड़ा संकट गिरे हुए गेहूं की कटाई का है। उनके मुताबिक, कंबाइन से कटाई में स्पटरिंग (छिटकने) के चलते गेहूं का 10 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो जाता है। ऐसे में हाथ से कटाई का विकल्प इस नुकसान को कम कर सकता है। लेकिन हाथ से कटाई करने पर लागत कम से कम एक हजार रुपये प्रति एकड़ बढ़ जाएगी। उनके मुताबिक, सामान्य कंबाइन की बजाय सक्सन कंबाइन से कटाई करके भी स्पटरिंग से होने वाले नुकसान में कमी लाई जा सकती है। मगर इस तरह के कंबाइन की संख्या अधिक नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, आईसीएआर (ICAR) के करनाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बारले रिसर्च (आईआईडब्ल्यूबीआर) को फसल नुकसान का आकलन करने के लिए कहा गया है। जल्दी ही वह अपनी रिपोर्ट सौंप देगा जिसे आईसीएआर कृषि मंत्रालय को देगा। कृषि वैज्ञानिकों ने जिस तरह के आकलन की जानकारी रूरल वॉयस को दी है, इस रिपोर्ट के उसी के करीब रहने की संभावना है।
पिछले साल भी प्रभावित हुई थी फसल
पिछले साल 15 मार्च के बाद अचानक तापमान में बढ़ोतरी ने गेहूं की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया था। इसके चलते उत्पादन में 10 से 25 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई थी। सरकार ने पिछले साल 11.10 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया था। तापमान में भारी बदलाव के चलते सरकार ने 2021-22 में गेहूं उत्पादन का लक्ष्य घटाकर 10.77 करोड़ टन कर दिया था। मगर स्वतंत्र अनुमानों में गेहूं उत्पादन के करीब 9.5 करोड़ टन रहने की बात कही गई।
सरकार ने पिछले साल 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था लेकिन उत्पादन में कमी और सीजन के शुरू से ही दाम 2015 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक रहने के चलते सरकारी खरीद 187.92 लाख टन पर अटक गई थी। वह भी तब जब सरकार ने 13 मई को गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित कर दिया था और खरीद मानकों में ढील दी गई थी। सरकारी खरीद का यह स्तर 15 साल में सबसे कम था। उस समय वैश्विक बाजार में कीमतें 500 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थीं, जो अब घटकर 250 डॉलर प्रति टन से भी नीचे आ गई हैं। घरेलू बाजार में दिसंबर, 2022 में पहली बार गेहूं की कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई थी।
इस साल 1 फरवरी, 2023 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 154.44 लाख टन रह गया जो छह साल का सबसे कम स्तर था। गेहूं के दाम नीचे लाने के लिए सरकार को खुले बाजार में 50 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला लेना पड़ा। ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएमएस) के तहत आरक्षित मूल्य को घटाकर 2140.46 रुपये प्रति क्विटंल तक किया गया। चालू मार्केटिंग सीजन (2023-24) के लिए सरकार ने गेहूं का एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। चालू रबी मार्केटिंग सीजन में सरकार ने 341.50 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है।
इस साल वैश्विक बाजार में कीमतें गिर गई हैं और किसानों ने गेहूं की फसल का क्षेत्रफल भी बढ़ाया है। पिछले साल जहां 15 मार्च के बाद तापमान में अचानक बढ़ोतरी ने उत्पादन को प्रभावित किया, वहीं इस साल करीब उसी समय बेमौसम की बारिश, तेज हवा और ओलावृष्टि ने गेहूं की फसल को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में इस साल भी उत्पादन लक्ष्य से कम रहने की स्थिति बन गई है।
उत्पादन को लेकर एक्सपर्ट और वैज्ञानिक सीधे तो कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसके पिछले साल के स्तर पर ही अटकने की बात होने लगी है। अब यह देखना महत्पूर्ण होगा कि सरकार उत्पादन को लेकर क्या आंकड़े जारी कर करती है। पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने नुकसान के आकलन के लिए गिरदावरी करानी शुरू कर दी है। उसके जिस तरह के आंकड़े आ रहे हैं, वह उत्पदान में बड़े गिरावट का संकेत दे रहे हैं।