फरवरी में औसत तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहने को देखते हुए रिसर्च एजेंसी क्रिसिल ने चेतावनी दी है कि यदि तापमान में वृद्धि मार्च के मध्य तक जारी रहती है तो गेहूं की फसल पर असर पड़ेगा। इससे गेहूं की पैदावार पिछले रबी सीजन के स्तर पर या इससे भी कम रह सकती है। हालांकि, सरकारी शोध संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने कहा है कि अभी स्थिति चिंताजनक नहीं है।
क्रिसिल ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में समय पर बुवाई होने के कारण अपेक्षाकृत गेहूं की अच्छी पैदावार होने की उम्मीद है। अगर मार्च में ज्यादा गर्मी बनी रही तो देर से बुवाई के कारण पश्चिमी यूपी में पैदावार में मामूली गिरावट देखी जा सकती है। देश के कुल गेहूं उत्पादन में लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। वहीं पंजाब और हरियाणा की संयुक्त हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है, जबकि मध्य प्रदेश में कुल उत्पादन का 20 फीसदी गेहूं पैदा होता है। क्रिसिल ने कहा है कि पंजाब और हरियाणा में देर से बोया गया गेहूं फूल आने की अवस्था में है, जबकि अगैती गेहूं दूधिया अवस्था में हैं। दोनों ही अवस्था में ज्यादा गर्मी होना पैदावार के लिए नुकसानदेह है। वहीं मध्य प्रदेश में देर से बोया गया गेहूं दूधिया अवस्था में आ चुका है। जबकि बिहार में अगैती बुवाई के चलते गेहूं दाने की अवस्था में है और फसल पकने की कगार पर है। इसका मतलब यह है कि पैदावार पर अपेक्षाकृत कम असर पड़ सकता है।
क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि इस तरह के हालात को बहुत प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना मुश्किल है लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में किसान पहले से ही बायो-स्टिमुलेन्ट्स (जैव-उत्तेजक) और विशेष उर्वरक जैसे पोषक तत्वों का छिड़काव कर रहे हैं। इससे कुछ हद तक गेहूं को गर्मी से बचाने में मदद मिलनी चाहिए। महालनोबिस नेशनल क्रॉप फोरकास्ट सेंटर (MNCFC) के मुताबिक, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में गेहूं का पौधा विकसित होने के अंतिम चरण में है। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में बुवाई में देरी के कारण गेहूं अभी इस स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। आमतौर पर मार्च में गेहूं में दाने आ जाते है। उस समय तापमान में वृद्धि से पैदावार प्रभावित होती है।
बढ़ते तापमान के चलते गेहूं की पैदावार पर असर पड़ने की चिंता के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के निदेशक एके सिंह ने कहा कि अभी स्थिति चिंताजनक नहीं है। हालांकि, उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि मध्य मार्च में अगर तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है तो गेहूं की हल्की सिंचाई जैसे आकस्मिक उपाय फायदेमंद रहेगा। उन्होंने कहा, "मौसम विभाग ने मध्य मार्च तक औसत तापमान सामान्य से 2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहने का पूर्वानुमान लगाया है लेकिन कहा है कि यह 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहेगा। 35 डिग्री से कम तापमान गेहूं की फसल के लिए चिंता का विषय नहीं है।"
आईएआरआई के कृषि और मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, मध्य मार्च में फसल पकने के दौरान गर्मी एक प्रमुख चिंता का विषय है। चार दिन तक लगातार तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहने पर ही फसल पर असर पड़ने की संभावना है। मान लें कि उस समय तापमान सामान्य से 2 डिग्री ज्यादा रहता है और अगले दिन तापमान घट जाता है तो उसका बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि गेहूं के पौधों में तापमान सहने की क्षमता होती है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि यदि मध्य मार्च में तापमान 31-32 डिग्री सेल्सियस रहता है तो किसान अपने नियमित कृषि कार्यों को जारी रख सकते हैं। यदि कहीं तापमान 35 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो एहतियात के तौर पर दो दिन पहले फसल की सिंचाई कर दें। उनका कहना है कि किसानों को फसल पर निगरानी रखनी चाहिए और हल्की सिंचाई और दोपहर में स्प्रिंकलर जैसे आकस्मिक उपायों के साथ तैयार रहना चाहिए। मौसम का अगला अपडेट 24 फरवरी को आएगा जिससे अगले महीने की साफ तस्वीर मिल सकती है।
पंजाब और हरियाणा में न्यूनतम तापमान सामान्य से ज्यादा रहने को देखते हुए करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ शोध संस्थान (IIWBR) ने गेहूं उत्पादकों को सलाह दी है कि वे फसल में आवश्यकता अनुसार हल्की सिंचाई करते रहें। संस्थान की ओर से जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि अगर हवा तेज चलने लगे तो पौधों को गिरने से बचाने के लिए सिंचाई बंद कर देनी चाहिए नहीं तो पैदावार में कमी आ सकती है। जिन किसानों के पास स्प्रिंकलर सिंचाई की सुविधा है वे तापमान बढ़ने की स्थिति में दोपहर के समय स्प्रिंकलर से 30 मिनट तक खेत की सिंचाई कर सकते हैं। ड्रिप सिंचाई की सुविधा वाले किसानों को फसल में उचित नमी बनाए रखने की आवश्यकता है। एडवाइजरी में कहा गया है कि तापमान में अचानक वृद्धि होने की स्थिति में पोटेशियम क्लोराइड के 0.2 फीसदी के दो छिड़काव से नुकसान को कम किया जा सकता है। किसानों को यह भी सलाह दी गई कि वे अपने गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग की नियमित निगरानी करें। पीला रतुआ रोग होने पर नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र, अनुसंधान संस्थान या राज्य कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें।
बढ़ते तापमान को देखते हुए केंद्र सरकार ने गेहूं की फसल पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन करने और किसानों को आवश्यक सलाह देने के लिए केंद्रीय कृषि आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान में फसल वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 11.21 करोड़ टन गेहूं पैदावार का अनुमान लगाया गया है। 2021-22 में मार्च में ज्यादा गर्मी की वजह से गेहूं की पैदावार घटकर 10.68 करोड़ टन रह गई थी।