गेहूं के उत्पादन में गिरावट और सरकारी खरीद के कम रहने की बात सरकार ने स्वीकार कर ली है। हालांकि अभी भी यह दोनों आंकड़े ऊपर की ओर ही हैं और हो सकता है कि वास्तविक आंकड़े इससे कम रहें। सरकार के मुताबिक चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2022-23) में गेहूं की सरकारी खरीद 195 लाख टन रह सकती है वहीं उत्पादन में पांच फीसदी से अधिक की गिरावट की बात सरकार ने कही है। इन आंकड़ों के आधार पर गेहूं की सरकारी खरीद रबी मार्केटिंग सीजन 2010-11 से लेकर अभी तक के तेरह साल में सबसे कम रहने वाली है। अगर खरीद 190 लाख टन से नीचे आ जाती है तो ऐसा पहली बार होगा जब केंद्रीय पूल में गेहूं का एक अप्रैल तक का पुराना स्टॉक नई सरकारी खऱीद से अधिक रह सकता है। एक अप्रैल, 2022 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 189.90 लाख टन था। सरकार ने उत्पादन में गिरावट का जो अनुमान लगया है वास्तविक गिरावट उससे कहीं अधिक रह सकती है।
बुधवार को केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने बताया कि चालू रबी मार्केटिंग सीजन में सरकारी खरीद 195 लाख टन पर सिमट जाएगी। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के अनुसार यह 2010-11 के बाद सबसे कम रहेगा। 2010-11 के रबी मार्केटिंग सीजन में 225.13 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी।
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खाद्य सचिव के अनुसार इस वर्ष अभी तक 175 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। अभी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से 20 लाख टन गेहूं की और खरीद होने की उम्मीद है। इस तरह पूरी खरीद 195 लाख टन के आसपास ही रहने के आसार हैं। लेकिन जिस तरह से मार्केट में गेहूं की आवक गिरी है उसके चलते यह आंकड़ा काफी चुनौती भरा लग रहा है। पिछले वर्ष 433.44 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। इसे देखते हुए इस वर्ष सरकार ने 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था।
रबी मार्केटिंग सीजन में केंद्रीय पूल के लिए गेहूं की खरीद
2010-11 – 225.13
2011-12 – 283.34
2012-13 – 382.15
2013-14 – 250.72
2014-15 – 281.31
2015-16 – 280.88
2016-17 – 229.61
2017-18 – 308.24
2018-19 – 357.95
2019-20 – 341.32
2020-21 – 389.92
2021-22 – 433.44
2022-23 – 156.92*
(स्रोतः एफसीआई, आंकड़े लाख टन में, *28 अप्रैल तक)
दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा गेहूं की सरकारी खरीद 5 मई से चरणबद्ध तरीके से बंद करने के फैसले के बाद ही केंद्र ने कुल खरीद के अनुमान में कटौती की है। पंजाब के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री लाल चंद कटारुचक ने मंगलवार को कहा था कि राज्य की मंडियों में चरणबद्ध तरीके से 5 मई से गेहूं की खरीद बंद की जाएगी। राज्य में पहले 132 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन खाद्य मंत्री के अनुसार मंगलवार तक 93 लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई थी।
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यह स्थिति सिर्फ पंजाब की नहीं, बल्कि सभी राज्यों की है। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान केंद्रीय पूल में सबसे अधिक योगदान करते हैं। एफसीआई के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में 2021-22 के 132.22 लाख टन की तुलना में इस वर्ष 28 अप्रैल तक 85.69 लाख टन, मध्य प्रदेश में 128.16 लाख टन की तुलना में 32.96 लाख टन, हरियाणा में 84.93 लाख टन के मुकाबले 36.96 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 56.41 लाख टन की तुलना में सिर्फ 1.23 लाख टन और राजस्थान में 2021-22 के 23.40 लाख टन के मुकाबले इस वर्ष 28 अप्रैल तक सिर्फ एक हजार टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है।
अप्रैल में गेहूं का ओपनिंग स्टॉक
2016 – 145.38
2017 – 80.59
2018 – 132.31
2019 – 169.92
2020 – 247.00
2021 – 273.04
2022 – 189.90
(स्रोतः एफसीआई, आंकड़े लाख टन में)
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सरकारी खरीद कम होने की बड़ी वजह गेहूं की निर्यात मांग में बढ़ोतरी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल मार्केट में गेहूं की सप्लाई कम हो गई है। ऐसे में भारतीय गेहूं की मांग बढ़ी है। जैसा कि खाद्य सचिव पांडे ने बताया, मिस्र, तुर्की और यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों में भारतीय गेहूं की मांग है। पांडे के मुताबिक निजी ट्रेडर्स ने मौजूदा तिमाही के लिए 40 लाख टन निर्यात के सौदे किए हैं और इसमें से 10 लाख टन गेहूं का निर्यात किया जा चुका है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया। मध्य प्रदेश और राजस्थान में सरकारी खरीद में बड़ी गिरावट का प्रमुख कारण यह है कि वहां से कांडला बंदरगाह नजदीक होने की वजह से निर्यात करने वाले ट्रेडर ज्यादा गेहूं खरीद रहे हैं।
सरकारी खरीद कम होने की दूसरी वजह गेहूं उत्पादन में गिरावट है। मार्च और अप्रैल में अचानक तापमान बढ़ने से खासकर उत्तरी राज्यों में गेहूं के दाने सिकुड़ गए। देश के अधिकांश हिस्सों के किसानों का कहना है कि उनका उत्पादन 15 से 25 फीसदी तक गिर गया। हालांकि सरकार ने गेहूं उत्पादन के अनुमान में सिर्फ 5.7 फ़ीसदी कटौती की है। पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था, जिसे घटाकर 10.5 करोड़ टन कर दिया गया है। 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।
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असल में निर्यात के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से गेहूं की निजी क्षेत्र द्वारा खरीद का सरकारी खरीद पर सीधा असर पड़ा है। लेकिन उत्पादन में कमी भी इसकी बड़ी वजह है। मध्य प्रदेश में फसल जल्दी आती है इसलिए वहां उत्पादन पर ज्यादा प्रतिकूल असर नहीं पड़ने की संभावना है। लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले उत्पादन 15 से 20 फीसदी तक कम रहा है। बाजार में गेहूं की कम आवक इसकी पुष्टि भी करती है। असल में मौसम की मार के कारण 2004 और 2009 के बाद गेहूं का उत्पादन इस साल गिरा है। पहले दो साल में सूखे का असर फसल उत्पादन में गिरावट के रूप में सामने आया था। लेकिन इस साल मार्च और अप्रैल में अचानक तापमान बढ़ने का असर फसल पर पड़ा है। कृषि वैज्ञानि रबी सीजन के शुरू में गेहूं की बुआई के समय डीएपी की उपलब्धता की कमी को भी उत्पादन में गिरावट से जोड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में उत्पादन के अनुमान में और अधिक कमी किये जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
साल 2004 में फसल उत्पादन में गिरावट के असर की वजह से सरकार ने अगले तीन साल गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोतरी की थी और इस दौरान यह 600 रुपये प्रति क्विटंल से बढ़कर 2007-08 में 1000 रुपये प्रति क्विटंल पर पहुंच गया था। हालांकि 2007-08 में उत्पादन बेहतर हुआ था और उसका फायदा किसानों के अधिक निजी खरीद के रूप में मिला था। लेकिन इस साल किसानों के लिए स्थिति उतनी बेहतर नहीं है। किसानों को निजी खरीददारों ने 2050 से लेकर 2300 प्रति क्विटंल के दाम तो दिये लेकिन उत्पादन में गिरावट के चलते किसानों को हुआ नुकसान इस अधिक कीमत के मुकाबले कहीं अधिक है।
वहीं बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 0.40 फीसदी की जो बढ़ोतरी की है उसे कहीं न कहीं गेहूं समेत दूसरे उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी से जोड़कर देखा जा रहा है। आशंका है कि आने वाले दिनों में खुदरा महंगाई दर रिजर्व की लक्षित दर से काफी अधिक रह सकती है।