गेहूं की सरकारी खरीद चालू मार्केटिंग सीजन 2023-24 में 259 लाख टन को पार कर गई है। इसमें करीब 46 फीसदी योगदान पंजाब का है जहां 120 लाख टन गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियों की ओर से की गई है। हालांकि, यह 341.5 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले अभी भी काफी पीछे है। गेहूं खरीद का अब अंतिम चरण चल रहा है। ऐसे में इस बात की संभावना ज्यादा है कि पिछले साल की तरह इस बार भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, 15 मई तक 259.01 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। इसमें राज्यों की एजेंसियों द्वारा 248.87 लाख टन की और एफसीआई द्वारा 10.14 लाख टन की सीधी खरीद की गई है। हालांकि, राज्यों की एजेंसियां एफसीआई के लिए ही खरीद करती हैं। यह खरीद गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,125 रुपये प्रति क्विंटल पर की गई है।
आंकड़ों के मुताबिक, केंद्रीय पूल के लिए गेहूं खरीद मुख्य रूप से पांच राज्यों में की जा रही है। गेहूं खरीद में सबसे पहले नंबर पर पंजाब है जहां 15 मई तक 120.50 लाख टन की खरीद हुई है, जबकि लक्ष्य 132 लाख टन का रखा गया था। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है जहां 69.83 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। यहां खरीद का लक्ष्य इस बार 80 लाख टन रखा गया था। इसी तरह, हरियाणा में 75 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले 62.91 लाख की खरीद हो पाई है।
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गेहूं खरीद के मामले में राजस्थान चौथे नंबर पर रहा है जहां 3.67 लाख टन की खरीद हुई है। सबसे बुरा हाल उत्तर प्रदेश का है। उत्तर प्रदेश गेहूं उत्पादन के मामले में नंबर एक है लेकिन खरीद के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है। इस साल एफसीआई ने राज्य में 35 लाख टन खरीद का लक्ष्य रखा था लेकिन इसके मुकाबले 15 मई तक सिर्फ 1.97 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में एमएसपी पर खरीद का हाल क्या है।
बाजार के जानकार बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में गेहूं का बाजार भाव एमएसपी से 100-200 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा है, इसलिए किसान सरकारी खरीद केंद्रों की बजाय निजी व्यापारियों को अपना गेहूं बेच रहे हैं।
पिछले साल भी सरकार गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई थी। 444 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले केवल 187.92 लाख टन गेहूं ही सरकार खरीद पाई थी। पिछले साल मार्च में तापमान में अचानक बढ़ोतरी होने से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ था जिसकी वजह से गेहूं का बाजार भाव ज्यादा था। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी दाम ज्यादा था जिसका असर घरेलू बाजार पर पड़ा था और किसानों को बेहतर दाम मिल रहा था। इस वजह से किसानों ने निजी व्यापारियों को फसल बेचने को तवज्जो दी थी।