लक्ष्य से आधे पर तो नहीं अटक जाएगी गेहूं की सरकारी खरीद

गेहूं के उत्पादन में कमी और निजी क्षेत्र द्वारा निर्यात के लिए खरीद करने के चलते लंबे समय के बाद इस साल गेहूं की कीमतों में तेजी आना लगभग तय है। सरकार गेहूं उत्पादन का अनुमान भी कम कर सकती है क्योंकि बाजार में गेहूं की आवक घट रही है। निर्यात भी शुरुआती अनुमानों के मुकाबले काफी कम रह सकता है

गेहूं उत्पादन और इसकी सरकारी खरीद, दोनों के केंद्र सरकार के अनुमान बदलने की स्थिति बन गई है। जिस तरह मंडियों में गेहूं की आवक और सरकारी खरीद कमजोर हो रही है, वह चालू रबी सीजन में गेहूं उत्पादन में गिरावट का साफ संकेत है। हालांकि सरकार ने अभी गेहूं के उत्पादन और सरकारी खरीद के अनुमानों में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन आने वाले दिनों में सरकार इस हकीकत को स्वीकार कर उत्पादन और खरीद के अनुमान को कम कर सकती है।

भारतीय खाद्य निगम के 28 अप्रैल, 2022 के आंकड़ों के मुताबिक 156.92 लाख टन गेहूं की सरकारी खऱीद हुई है। पंजाब में 85.69 लाख टन, हरियाणा में 36.96 लाख टन और मध्य प्रदेश में 32.96 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। उत्तर प्रदेश में 1.23 लाख और राजस्थान, बिहार और उत्तराखंड में एक-एक हजार टन गेहूं की खरीद हुई है। दिलचस्प बात यह है कि चंडीगढ़ में इन तीन राज्यों के बराबर यानी तीन हजार टन गेहूं की सरकारी खऱीद हुई है। बाकी राज्यों में गेहूं की कोई सरकारी खरीद नहीं हुई है।

सरकार ने चालू रबी सीजन में 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है जबकि सरकारी खऱीद के लिए 444 लाख टन का लक्ष्य तय किया है। लेकिन मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सरकारी खऱीद लक्ष्य के आधे पर सिमट सकती है। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्र इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि उत्पादन के अनुमान को भी नीचे लाना पड़ेगा। हालांकि अभी तक कृषि मंत्रालय ने गेहूं के उत्पादन अनुमान और खाद्य मंत्रालय ने सरकारी खऱीद के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं किया है।

पंजाब मंडी बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 30 अप्रैल तक पंजाब में 92.51 लाख टन की सरकारी खरीद हुई है। वहां 2017 के बाद पहली बार 5.46 लाख टन गेहूं की खरीद प्राइवेट कंपनियों और कारोबारियों ने की है। चालू सीजन में 30 अप्रैल, 2022 तक गेहूं की कुल आवक 98.13 लाख टन रही जिसमें से सरकार और निजी क्षेत्र ने 97.97 लाख टन गेहूं खरीदा है। पिछले साल पंजाब की मंडियों में गेहूं की कुल खरीद 133.28 लाख टन रही थी, जिसमें से सरकार ने 132.14 लाख टन और निजी क्षेत्र ने 1.14 लाख टन की खरीद की थी।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि पंजाब में आने वाले दिनों में मंडियों में आवक घटेगी और कुल सरकारी खऱीद शायद ही 100 लाख टन का आंकड़ा छू पाए। हरियाणा और मध्य प्रदेश में सरकारी खरीद और उत्तर प्रदेश समेत बाकी राज्यों की खरीद की स्थिति देखने पर कुल सरकारी खऱीद के 200 लाख टन से नीचे रहने के आसार बन रहे हैं।

ऐसे में लंबे समय के बाद इस साल गेहूं की कीमतों में तेजी आना लगभग तय है। कीमतें 2500 रुपये प्रति क्विटंल को पार सकती हैं क्योंकि निजी खरीदारों की लागत ही इससे अधिक पड़ रही है। जाहिर सी बात है बाजार में वह इससे अधिक कीमत पर ही गेहूं की बिक्री करेंगे, जिसका सीधा असर आटे की कीमतों में इजाफे के रूप में उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

इस साल के आंकड़े कई पुराने रिकार्ड दोहरा सकते हैं। शायद पहली बार ऐसा होगा कि केंद्रीय पूल में एक अप्रैल को जो स्टॉक होगा करीब उतनी ही नई खरीद भी होगी। सरकार के पास केंद्रीय पूल में चालू साल में गेहूं की कुल उपलब्धता 400 लाख टन से नीचे जा सकती है। भारतीय खाद्य निगम के मुताबिक एक अप्रैल, 2022 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 189.90 लाख टन था। यह अप्रैल 2021 में 273.04 लाख टन और अप्रैल 2020 में 357.70 लाख टन था।

सरकार ने चालू रबी सीजन में 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है और अभी तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया, जबकि मार्च और अप्रैल में अचानक तापमान बढ़ने से देश के अधिकांश हिस्सों के किसानों का कहना है कि उनका उत्पादन 15 से 25 फीसदी तक गिर गया है। ऐसे में केंद्रीय पूल में सबसे अधिक गेहूं देने वाले पंजाब की मंडियों में गेहूं की आवक के आंकड़े उत्पादन में गिरावट के अंदेशे को सही साबित करते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भी उत्पादन में गिरावट की बात किसान कह रहे हैं। सहारनपुर जिले के कांसेपुर गांव के किसान राजबीर सिंह कहते हैं कि इस बार उत्पादन 20 फीसदी तक गिर गया है।

सरकार को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत वितरण के लिए हर साल करीब 260 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ती है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर माह पांच किलो मुफ्त खाद्यान्न देने के लिए चालू साल के छह माह के लिए 109.28 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है। वहीं बफर मानकों के तहत एक अप्रैल को केंद्रीय पूल में 75 लाख टन गेहूं का स्टॉक होना चाहिए। बफर मानक और टीपीडीएस के लिए 445 लाख टन गेहूं की जरूरत है। अगर इसमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की जरूरत को जोड़ दिया जाए तो सरकार के सामने एक चुनौती खड़ी होती दिख रही है क्योंकि सरकार के पास करीब 400 लाख टन का स्टॉक ही होगा। ऐसे में मुफ्त अनाज योजना का पूरे साल तक जारी रहना लगभग असंभव लग रहा है। वहीं ओपन मार्केट सेल के जरिये कीमतों को नियंत्रित करने की क्षमता भी सीमित रह जाएगी। सरकार आटा मिलों को ऑफ सीजन में करीब 40 से 50 लाख टन गेहूं की सालाना बिक्री ओपन मार्केट स्कीम के तहत करती है।

पंजाब में 2017 के बाद पहली बार निजी क्षेत्र ने पांच लाख टन से अधिक गेहूं खरीदा है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सरकारी खऱीद कम रहने की मुख्य वजह भी निजी क्षेत्र द्वारा बड़े पैमाने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर गेहूं की खरीद है।

निजी क्षेत्र द्वारा उत्तर प्रदेश में पहले गेहूं की खरीद 2100 रुपये प्रति क्विटंल तक की गई, लेकिन बाद में दाम 2200 से 2300 रुपये प्रति क्विटंल तक चले गए। एक बड़ी ग्लोबल एग्री ट्रेडिंग कंपनी के पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि हमने शुरू में 2100 रुपये प्रति क्विटंल तक गेहूं खरीदा, लेकिन बाद में यह दाम 2300 रुपये प्रति क्विटंल को भी पार कर गया। कंपनी ने यह खऱीद चंदौसी, बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बदायूं जिलों में की है। इस कंपनी द्वारा करीब 40 लाख टन गेहूं निर्यात किये जाने का अनुमान है। वहीं एक दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा भी करीब 100 लाख टन गेहूं निर्यात किये जाने की बात एग्री ट्रेड के जानकार कह रहे हैं। इस कंपनी ने मध्य प्रदेश से कांडला के लिए बड़ी संख्या में रेल रैक बुक किये हैं। पिछले दिनों रेलवे ने रैक का भाड़ा भी बढ़ाया है, जो शायद इस बात संकेत है कि सरकार गेहूं निर्यात को बहुत ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करना चाहती है।