मवेशियों में फैल रहे लंपी त्वचा रोग (लंपी स्किन डिजीज) से दूध उत्पादक काफी चिंतित हैं, क्योंकि उनमें से ज्यादातर के लिए यह एक नई बीमारी है। जिन राज्यों में यह बीमारी फैल रही है वहां के ज्यादातर पशु चिकित्सक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या करें। क्योंकि उन्हें भी इस बीमारी के लक्षणों या इसके इलाज का कोई इल्म न था। मवेशियों की अचानक मृत्यु होने और दूध उत्पादन में अचानक आई गिरावट से पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन विभागों में चिंता व्याप्त हो गई है। अनेक विभाग यह मान रहे हैं कि उत्तर और पश्चिमी भारत में, जहां यह बीमारी देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक फैली है, दूध के उत्पादन में काफी गिरावट आ सकती है।
यह बीमारी शुरुआत में ज्यादातर अफ्रीकी देशों में ही पाई जाती थी, लेकिन 2012 से यह मध्य पूर्व के देशों, दक्षिण पूर्व यूरोप और पश्चिमी तथा मध्य एशिया में तेजी से फैल रही है। वर्ष 2019 से एशिया में अनेक स्थानों पर इस बीमारी के फैलने की खबरें आई हैं।
ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्यूनाइजेशन (जीएवीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार लंपी त्वचा रोग ‘कैपरीपॉक्सवायरस’ नाम के एक वायरस की वजह से होता है। यह पूरी दुनिया के मवेशियों के लिए एक बड़े जानलेवा खतरे के रूप में उभर रहा है। जेनेटिक लिहाज से यह वायरस गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस से जुड़ा हुआ है।
लंपी त्वचा रोग और उसके लक्षण
लंपी त्वचा रोग मवेशियों में मुख्य रूप से रक्त चूसने वाले कीटों की वजह से फैलता है। संक्रमण से पशु के शरीर पर गांठें उभरने लगती हैं। पशु के त्वचा पर उभरने वाली ये गांठें ‘लंप’ की तरह होती है। संक्रमण के बाद पशु के वजन में तेजी से गिरावट आने लगती है। उसे बुखार हो सकता है और मुंह में घाव निकलने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा भी कम हो जाती है। अत्यधिक लार निकलना भी इसका लक्षण है। गर्भवती गायों और भैंसों का गर्भपात हो सकता है और कई बार संक्रमित पशु की मौत भी हो जाती है।
भारत में लंपी त्वचा रोग
भारत में इस बीमारी का पहली बार 2019 में ओडिशा में पता चला। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की हिसार स्थित संस्था नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वीन्स (घोड़ा) ने 2019 में ही इस वायरस की पहचान की और इस बीमारी के खिलाफ वैक्सीन विकसित करने में सफलता पाई।
अगस्त की शुरुआत से उत्तर और पश्चिम के राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में इस बीमारी के फैलने की खबरें आ रही हैं। ऐसी रिपोर्ट आई है कि अगस्त के पहले सप्ताह में राजस्थान में 25000 गाएं इस वायरस से संक्रमित हो गई थीं। राज्य के पशुपालकों को इससे काफी नुकसान हुआ और 12 सौ से अधिक पशुओं की मौत हुई है। राज्य सरकार ने तत्काल जयपुर में एक कंट्रोल रूम स्थापित किया। साथ ही इस बीमारी की लगातार मॉनिटरिंग के लिए प्रभावित जिलों में भी केंद्र बनाए गए।
पशु चिकित्सकों की कई टीमें प्रभावित इलाकों में भेजी गईं ताकि वे तत्काल इलाज मुहैया करा सकें और आवश्यक दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें। पशु चिकित्सकों ने डेयरी किसानों को संक्रमित मवेशी से दूसरे मवेशियों को दूर रखने की सलाह दी ताकि संक्रमण न फैले। शुरू में जैसलमेर और बाड़मेर जैसे सीमाई जिलों में ही इस वायरस का संक्रमण पाया गया था, लेकिन उसके बाद जोधपुर, जालौर, सिरोही, नागौर और बीकानेर में भी पशुओं में इससे संक्रमण हुआ है।
इस बीमारी ने खासतौर से देसी गायों को संक्रमित किया है। कम प्रतिरोधी क्षमता वाली गायों में यह अधिक तेजी से फैला है। बीमारी का ज्यादा असर जोधपुर डिवीजन में देखने को मिला। हालांकि सिर्फ एक से डेढ़ फ़ीसदी संक्रमित गायों की ही मौत हुई है, वह भी जो कमजोर थीं और जिनमें प्रतिरोधी क्षमता कम थी।
गुजरात में भी स्थिति गंभीर है। वहां कच्छ जिले में 5000 से अधिक गाय, बछड़े और बैल की बीते एक महीने में इस बीमारी से मौत हो चुकी है। पशुपालकों को मवेशियों की मौत से काफी आर्थिक नुकसान हुआ है। सरकार ने बीमारी की रोकथाम के लिए कदम उठाए हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों की कमी है। कच्छ में 900 से अधिक गांव हैं लेकिन पूरे जिले में सिर्फ 14 पशु चिकित्सक हैं।
गुजरात सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार राज्य में लंपी त्वचा रोग से 1431 मवेशियों की मौत हुई है। अगस्त में यह बीमारी प्रदेश के 20 जिलों में फैल चुकी है। हालांकि दूसरे स्रोतों का मानना है कि दूरदराज के गांवों में भी बीमारी फैल जाने से मृतक पशुओं की संख्या काफी अधिक हो सकती है।
केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और फिशरीज विभाग के अनुसार अगस्त के पहले सप्ताह तक लंपी त्वचा रोग 6 राज्यों में फैल चुका था। 8 अगस्त तक राजस्थान ने 2111 पशुओं की मौत की सूचना दी है। उसके बाद गुजरात में 1679, पंजाब में 672, हिमाचल प्रदेश में 38, अंडमान और निकोबार में 29 और उत्तराखंड में 26 मौतें हुई हैं।
लंपी त्वचा रोग का इलाज और रोकथाम
पशु स्वास्थ्य विश्व संगठन (डब्ल्यूओएएच) के अनुसार एक से पांच फीसद मृत्यु दर सामान्य है। यह रोग पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलता, यानी मनुष्य इससे संक्रमित नहीं हो सकते हैं। हालांकि डब्ल्यूोएएच ने चेतावनी दी है कि संक्रमित पशु के दूध को उबालने या पाश्चराइजेशन के बाद ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इससे दूध में मौजूद वायरस नष्ट हो जाएंगे।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुछ उपाय हैंः-
-जहां पर मवेशियों को रखा गया है उस स्थान को कीटनाशकों और रसायनों से सैनिटाइज किया जाए ताकि वायरस नष्ट हो जाएं।
-संक्रमित पशु को तत्काल स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
-तत्काल करीबी पशु चिकित्सक से संपर्क करके पशु का इलाज शुरू किया जाना चाहिए।
-बीमारी के बारे में राज्य सरकार को सूचित करना चाहिए।
-स्वस्थ पशुओं को एलएसडी पॉक्स वैक्सीन या गोट पॉक्स वैक्सीन लगाया जाना चाहिए।
-मृत पशु के शव का सावधानीपूर्वक अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए क्योंकि उनसे भी बीमारी फैलने का खतरा रहेगा। बेहतर हो कि ऐसे शवों को जला दिया जाए।
लंपी त्वचा रोग वैक्सीन लंपी-प्रोवैक
केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और फिशरीज विभाग ने 10 अगस्त 2022 को देश में बनी वैक्सीन लंपी-प्रोवैक जारी की है। इस वैक्सीन को आईसीएआर-एनआरसीई हिसार ने उत्तर प्रदेश के इज्जत नगर स्थित आईसीएआर- भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के साथ मिलकर विकसित किया है। सरकार लंपी प्रोवैक का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की योजना बना रही है ताकि इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सके।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय डेयरी सलाहकार हैं)