उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का किसानों के बारे में दिया भाषण खूब चर्चाओं में है। मुंबई स्थित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरसीओटी) के शताब्दी दिवस समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रति धनखड़ ने किसानों के मुद्दे पर खरी-खरी सुनाते हुए किसानों से किए वादे की तरफ सरकार का ध्यान दिलाया। अहम बात है कि उस समय केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मंच पर मौजूद थे।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है। मेरा आप से आग्रह है कि कृपया कर बताइये, क्या किसान से वादा किया गया था? किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया? वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई भी सरकार वादा करती है और वह वादा किसान से जुड़ा हुआ है तब हमें कभी कोई कसर नहीं रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का दुनिया को संदेश है, जटिल समस्याओं का निराकरण वार्ता से होता है। किसान से वार्ता अविलंब होनी चाहिए और हमें जानकारी होनी चाहिए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था? माननीय कृषि मंत्री जी, आपसे पहले जो कृषि मंत्री जी थे, क्या उन्होंने लिखित में कोई वादा किया था? यदि वादा किया था तो उसका क्या हुआ?
एमएसपी गारंटी के मुद्दे पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसान को एमएसपी गारंटी कानून चाहिए। खुले मन से देखो खुले मन से सोचो, आंकलन करो। देने के क्या फायदे हैं, नहीं देने का क्या नुकसान हैं। आप तुरंत पाओगे इसमें नुकसान ही नुकसान है। किसान यदि आज के दिन आंदोलित हैं, उस आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना बहुत बड़ी गलतफहमी और भूल होगी। जो किसान सड़क पर नहीं है, वह भी आज के दिन चिंतित हैं। उन्होंने आगे कहा कि हम अपनों से नहीं लड़ सकते। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका पड़ाव सीमित रहेगा, अपने आप थक जाएंगे। अरे भारत की आत्मा को परेशान थोड़ी ना करना है। विकसित भारत का रास्ता किसान के दिल से निकलता है, यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।
आईसीएआर और इससे जुड़े शोध संस्थानों के बारे में धनखड़ ने कहा कि इस देश में 75 साल के बाद इतनी बड़ी-बड़ी संस्थाएं हमने खड़ी कर दी हैं और किसान आज भी अपने उत्पाद की कीमत के लिए तरस रहा है। कृषि उत्पादों का कितना बड़ा व्यापार है। आपकी संस्थाओं ने किसान को उसमें जोड़ने के लिए क्या किया। किसान को मार्केटिंग से जोड़ते, एक बदलाव आता, क्यों ऐसा नहीं हुआ। सोचने का प्रश्न है। हम उसको देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, जो वादा किया गया है। यदि संस्थाएं जीवंत होती, योगदान करती तो यह हालात कभी नहीं आते।