बीज और कृषि विशेषज्ञों ने कृषि अनुसंधान में परिणाम-उन्मुख सहयोग बढ़ाने, तिलहन, कपास और मक्का में आत्मनिर्भरता हासिल करने और अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ावा देने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने एक गतिशील और भविष्य के लिए तैयार कृषि क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिए प्रगतिशील व्यापार नीतियों की जरूरत भी बताई। भारत के बीज उद्योग के शीर्ष संगठन, फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) की तरफ से शुक्रवार को आयोजित सम्मेलन उन्होंने अपने ये विचार रखे। यह सम्मेलन फेडरेशन की 8वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) का हिस्सा था।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने प्रगतिशील व्यापार नीतियों और आधुनिक कृषि तकनीक के माध्यम से कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “तकनीक का हस्तक्षेप हमारे किसानों के लिए समृद्धि लाने की कुंजी है। उत्तर प्रदेश देश के गेहूं उत्पादन में एक तिहाई योगदान देता है, इसलिए हम बीज उद्योग में राज्य की विशाल संभावनाओं को पहचानते हैं। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार उत्तर प्रदेश में एक बीज पार्क और उन्नत शोध के लिए एक कॉमन रिसोर्स सेंटर स्थापित करने की योजना बना रही है। इसमें निजी बीज उद्योग का सहयोग अपेक्षित है।”
शाही ने उत्तर प्रदेश में निवेश के लिए बीज उद्योग को आमंत्रित करते हुए कहा, “हम लखनऊ में 200 एकड़ में अत्याधुनिक बीज पार्क की स्थापना करने जा रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य किसानों को उच्च गुणवत्ता, अधिक उपज और जलवायु के प्रति सहनशील बीज किस्में प्रदान करना है, जो उत्पादकता और समृद्धि को बढ़ावा देगा। हम सभी हितधारकों के दृष्टिकोण और सहयोग का स्वागत करते हैं और बीज उद्योग को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए आमंत्रित करते हैं। हम मिलकर भारत को उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएंगे और एक मजबूत और समृद्ध कृषि भविष्य में योगदान देंगे।”
भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने भारतीय कृषि की चुनौतियों का समाधान करने के लिए आधुनिक विज्ञान और तकनीक के उपयोग की वकालत की। उन्होंने कहा, “कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश सुनिश्चित करना और राज्य तथा केंद्र सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करना आवश्यक है ताकि किसानों के लाभ के लिए नई टेक्नोलॉजी का प्रभावी उपयोग किया जा सके। इसके अलावा, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए एक्सटेंशन सिस्टम को मजबूत करना जरूरी है जिससे अच्छे कृषि तरीकों को बढ़ावा मिले। सतत विकास के लिए जलवायु सहनशील फसलें विकसित करना भी महत्वपूर्ण है।”
भारत सरकार के कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के अध्यक्ष प्रो. विजय पाल शर्मा ने कहा, “कृषि को जीवन-यापन मॉडल से एक व्यावसायिक और उद्योग-उन्मुख मॉडल में बदलना चाहिए। हमें दालों और खाद्य तेलों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने, अनुसंधान में निवेश करने और जलवायु-सहनीय फसल किस्में विकसित करने की आवश्यकता है। हमारी रणनीति में तकनीक का उपयोग, संस्थागत तंत्र, बुनियादी ढांचे का विकास और किसानों को लाभकारी कीमतें सुनिश्चित करना शामिल हैं। निजी क्षेत्र को बाजार के विकास में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए, जिससे किसानों और उपभोक्ताओं के लिए बेहतर कीमतें सुनिश्चित हों।”
एफएसआईआई के चेयरमैन और सवाना सीड्स के प्रबंध निदेशक तथा सीईओ, अजय राणा ने कहा, “एक सक्षम वातावरण बनाने के लिए उपयुक्त नीतियों और संस्थानों का विकास, प्रोत्साहित करने वाला नियामक वातावरण और कृषि व्यवसाय में पर्याप्त सार्वजनिक और निजी निवेश आवश्यक हैं। बौद्धिक संपदा अधिकारों की व्यवस्था मजबूत करना इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।”
एफएसआईआई के वाइस चेयरमैन और बायर क्रॉपसाइंस लिमिटेड के कृषि मामले एवं नीति निदेशक - आईबीएसएल और ट्रेट्स लाइसेंसिंग बिजनेस के प्रमुख राजवीर राठी ने कहा, "उत्तर प्रदेश में एक बीज पार्क की स्थापना भारतीय कृषि के लिए एक गेम-चेंजर है। उन्नत बीज प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर और मजबूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर, हम भारत की विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप उच्च प्रदर्शन वाले, जलवायु-लचीले बीजों के विकास की गति को तेज कर सकते हैं। यह पहल न केवल हमारे बीज उद्योग को मजबूत करती है, बल्कि भारत के लाखों छोटे किसानों की आजीविका में सुधार लाने पर ध्यान देने के साथ देश के कृषि आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक स्थिरता के लक्ष्य के साथ भी संरेखित होती है। भारत के पास अपने कृषि जलवायु क्षेत्र विविधता का अनूठा लाभ है और इसे दुनिया के लिए बीज उत्पादन और आपूर्तिकर्ता के वैश्विक केंद्र के रूप में सेवा करने के लिए अपनी क्षमता का दोहन करना चाहिए।"
इस मौके पर एक्सपर्ट्स ने सुझाव दिया कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और भारत की कृषि को उसके अनुकूल ढालने के लिए कृषि अनुसंधान को मजबूत करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को अपनाना आवश्यक है। उन्नत अनुसंधान में निवेश करने से बेहतर सूखा को सहन करने, बाढ़ प्रतिरोध और बेहतर पोषक दक्षता वाली फसल किस्में विकसित होंगी, जिससे उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी। साथ ही, प्रभावी पीपीपी, संसाधनों और विशेषज्ञता को एक साथ लाते हैं, नवाचार को बढ़ावा देते हैं और कृषि उन्नति के लिए एक सहायक वातावरण बनाते हैं। यह सहयोग अनुसंधान के बीच की दूरी को पाटता है, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुव्यवस्थित करता है और क्षमता का निर्माण करता है, जिससे भारत के महत्वाकांक्षी कृषि लक्ष्यों को प्राप्त करने और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। विशेषज्ञों ने मजबूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की आवश्यकता व्यक्त की। सरकारी एजेंसियों, अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र के हितधारकों के बीच सहयोगात्मक प्रयास नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास और अनुप्रयोग में तेजी लाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत के अमृत काल के दौरान एक वैश्विक कृषि महाशक्ति बनने की दिशा में अपना रास्ता बना सकता है। विशेषज्ञों ने कृषि मूल्य श्रृंखला में सभी हितधारकों द्वारा ठोस प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।