भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआऱआई) पूसा बासमती 1509 पूसा बासमती 1121 और पूसा बासमती 1401 को परिष्कृत कर इनके विकल्प के रूप में नई किस्में पूसा 1847, पूसा 1885 और पूसा 1886 किस्में तैयार की हैं। नई किस्मों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। जहां यह किस्में बैक्टीरिया ब्लाइट और बैक्टीरियल ब्लास्ट बीमारियों से सुरक्षित हैं वहीं इनकी उत्पादकता भी 30 क्विटंल प्रति एकड़ से अधिक आ रही है। आईएआरआई के डायरेक्टर डॉ. ए.के. सिंह के मुताबिक नई किस्सों का बीज पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के किसानों को दिया गया था। किसानों द्वारा उगाई गई इन प्रजातियों के प्रदर्शन के लिए आईएआरआई डायरेक्टर ने दिल्ली के दरियापुर गांव, हरियाणा में जींद जिले के गोहाना और पंजाब में संगरूर जिले में किसानों के खेतों तक एक यात्रा की थी।
पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने आईएआरआई, पूसा के धान प्रक्षेत्र का भ्रमण किया जहां पर संस्थान ने बासमती की तीन उन्नत किस्मों को आईएआरआई के फील्ड प्रक्षेत्र पर सीधी बुवाई (डीएसआर विधि) द्वारा उगाई जा रही है। कृषि मंत्री ने सीधी बवाई वाले धान की खेती के फील्ड का मुआयना करने के साथ ही इसकी तकनीक के बारे में जानकारी ली।
कृषि मंत्री ने मोटे चावल की एक एडवांस लाइन,जो पूसा 44 की सुधारी गई अधिक उपज वाली किस्म है उसका भी अवलोकन किया और आइएआरआई पूसा संस्थान द्वारा किए जा रहे जा रहे कार्यों की सरहाना की।उन्होंने बासमती चावल की झुलसा एवं झोंका रोग प्रतिरोधी तीन बासमती क़िस्मों पूसा बासमती 1847 जो पूसा बासमती 1509 का सुधार, पूसा बासमती 1885 जो पूसा बासमती 1121 का सुधार और पूसा बासमती 1886 जो पूसा 1401 का उन्नत रूप है, उसका भी जानकारी लिया
आईएआरआई के डायरेक्टर डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि इन क़िस्मों में कृषि रसायनों का छिड़काव करने की जरूरत नहीं होगी, जिससे लागत में कमी के साथ-साथ रसायनों के अवशेष से मुक्त बासमती चावल पैदा होगा जिसका अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अच्छा मूल्य मिलेगा, जिसका सीधा फ़ायदा किसानों की आय बढ़ाने में होगा। उन्होंने बताया कि बासमती इन प्रजातियों की सीधी बुवाई से धान की खेती की लागत को कम कर किसानों की आय बढ़ाने और पानी की बचत करने में मदद करेंगी।