बलरामपुर शुगर मिल्स और धामपुर शुगर मिल्स सहित भारत की कई शुगर मिल्स कंपनिया नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (एनएसआई ) कानपुर के कैंपस से कैंपल हायरिंग के बेहतर आंकड़े सामने आ रहे हैं। बढ़ते पर्यावरण मुद्दों और गुणवत्ता नियंत्रण के अलावा देश में तेजी से बढ़ते चीनी और इथेनॉल क्षेत्रों की वजह से चीनी प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के लिए मांग और तेज हो रही है ।
एनएसआई के मुताबिक,मौजूदा बैच के करीब 50 फीसदी छात्रों को कैंपस हायरिंग के तहत पहले ही रखा जा चुका है। छात्रों को भर्ती कराने में मुख्य रूप से बलरामपुर चीनी मिल्स, धामपुर शुगर मिल्स, रेणुका शुगर्स, त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज, आईएसजीईसी हेवी इंजीनियरिंग और वीआरएल ऑटोमेशन शामिल हैं।
एनएसआई प्लेसमेंट अधिकारी डी. स्वैन ने कहा, “हम पहले चरण के दौरान शुगर टेक्नोलॉजी, शुगर इंजीनियरिंग और एल्कोहल टेक्नोलॉजी पाठ्यक्रमों के तहत 78 छात्रों को प्लेसमेंट देने में सक्षम हैं, जो कि कोराना महामारी के दौर मे औद्योगिक नजरिये से खुशी की बात है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कैंपस भर्ती का दूसरा चरण भी शुरू किया जाएगा।
एनएसआई के निदेशक नरेंद्र मोहन ने कहा कि बड़ी संख्या में इथेनॉल इकाइयों की स्थापना हो रही है। इसके मद्देनजर, चीनी प्रसंस्करण के दौरान पर्यावरणीय मुद्दों पर चिंता और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए अब एल्कोहल टेक्नोलॉजिस्ट, शुगर टेक्नोलॉजिस्ट,, क्वालिटी कंटोल केमिस्ट और इंवायरनमेंट केमिस्टों की अधिक डिमांड है।
नरेंद्र मोहन ने कहा कि चीनी कंपनियां महिला टेक्नोलॉजिस्ट और इंजीनियरों की भी भर्ती कर रही हैं। पहले चरण के दौरान, आईएसजीईसी हेवी इंजीनियरिंग द्वारा शुगर टेक्नोलॉजी के अंतिम वर्ष की छात्रा को 5,50,000 रुपये प्रति वर्ष के अधिकतम पैकेज भर्ती के लिए पेशकश की गई है। उन्होंने कहा, कुछ कंपनियों ने कोविड संकट को ध्यान में रखते हुए पारिश्रमिक पैकेज के हिस्से के रूप में मुफ्त भोजन की भी पेशकश की है। चीनी कंपनियों के अलावा, प्रतिष्ठित मशीनरी और रासायनिक निर्माताओं कंपनियो के प्रतिनिधि ने भी भर्ती के लिए एन एस आई परिसर का दौरा किया, जो कि एक उत्साहजनक संकेत है।
हाल ही में एनएसआई ने प्रिजर्वेटिव के उपयोग के बिना शुद्ध गन्ने के पैकेज्ड रस की एक तकनीक विकसित करने के लिए औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) प्रयोगशाला, केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे उत्तर प्रदेश में एग्रीकल्चर वैल्यू चेन को बढ़ाने के लिए एक और राजस्व स्रोत प्रदान करने की उम्मीद है।