वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई, 2019 को पेश अपने पहले बजट 2019-20 में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (जेडबीएनएफ) के जरिये किसानों की आय दो गुना करने की बात बड़े जोर-शोर से की थी। आगामी वित्त वर्ष (2022-23) के बजट में उन्होंने नेचुरल फार्मिंग पर जोर देने के लिए गंगा के किनारे केमिकल मुक्त नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती का पांच किलोमीटर का कॉरीडोर बनाने की घोषणा की है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जिस सुभाष पालेकर के फार्मूले के तहत जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की बात हुई उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया है। साथ ही कहा है कि नेचुरल फार्मिंग उनकी टेक्नोलॉजी नहीं है। ऑर्गेनिक खेती को नुकसानदेह बताते हुए उन्होंने यहां तक कहा है कि यह केमिकल फार्मिंग से भी ज्यादा खतरनाक है। हालांकि सरकार का कहना है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए देश में ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं सिक्किम जैसा राज्य तो खुद को पूरी तरह ऑर्गेनिक घोषित कर चुका है।
यह सारी बातें सुभाष पालेकर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा, नई दिल्ली के डायरेक्टर को लिखे एक पत्र में सामने आई है। पत्र में उन्होंने नेचुरल फार्मिंग पर आईएआरआई के साथ सहयोग से साफ इनकार किया है।
यह सिलसिला जनवरी के आरंभ में आईएआरआई के डायरेक्टर द्वारा सुभाष पालेकर को लिखे एक पत्र से शुरू हुआ। इसके जवाब में सुभाष पालेकर ने आईएआरआई के डायेरक्टर को एक पत्र लिखा। इसमें वह कहते हैं कि आपके पत्र के मुताबिक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) नेचुरल फार्मिंग को साइंटिफिकली वैलीडेट करेगी। मैं आपका ध्यान एक सच की ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि आप जिस नेचुरल फार्मिंग का जिक्र कर रहे हैं वह मेरी टेक्नोलॉजी नहीं है। पूरी दुनिया नेचुरल फार्मिंग को जापानी एग्री एंटोमोलॉजिस्ट साइंटिस्ट डॉ. मसानोबु फुकौआ की तकनीक के रूप में जानती है। इसलिए दुनिया में कहीं भी नेचुरल फार्मिंग एक मॉडल के रूप मौजूद नहीं है। यह शतप्रतिशत झूठ है और मैं किसी भी कीमत पर इस झूठ का समर्थन नहीं कर सकता। साल 2017 से पहले मेरी टेक्नोलॉजी का नाम जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (जेडबीएनएफ) था। लेकिन मैंने देखा कि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग सत्य नहीं है क्योंकि किसी भी टेक्नोलॉजी और किसी भी फसल में जीरो बजट संभव ही नहीं है। इसलिए मैंने 2017 में अपनी टेक्नोलॉजी का नाम बदल लिया। नया नाम सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग (एसपीएनएफ) है और दुनिया भर में मेरे लाखों अनुयायी मेरी टेक्नोलॉजी के इस नाम को स्वीकार कर चुके हैं। नाम बदलने के बाद मैंने नीति आयोग के वाइस चेयरमैन, राजीव कुमार, कृषि मंत्री और कृषि सचिव को उनके साथ मुलाकात में अपनी तकनीक का नाम बदलकर एसपीएनएफ करने की जानकारी दी। उन्होंने इस नये नाम को स्वीकृति नहीं दी है। यानी भारत सरकार ने सुभाष पालेकर को स्वीकृति नहीं दी है। ऐसे में मेरे समर्थन का कोई सवाल ही नहीं उठता है। जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग और नेचुरल फार्मिंग दोनों में कोई भी मॉडल दुनिया में मौजूद नहीं है, इसलिए इस बारे में आईसीएआर को सहयोग करना मेरे लिए संभव नहीं है।
पत्र में वह आगे सवाल करते हैं कि जो लोग ऑर्गेनिक फार्मिंग की वकालत करते हैं वे नेचुरल फार्मिंग को कैसे वैलिडेट करते हैं। पालेकर लिखते हैं कि ऑर्गेनिक फार्मिंग केमिकल फार्मिंग से भी अधिक खतरनाक, विनाशकारी, दोहन करने वाली है। यह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। साथ ही मिट्टी की उर्वर शक्ति और उत्पादकता को बरबाद कर रही है।
खास बात यह है कि वित्त मंत्री ने पांच जुलाई, 2019 को पेश बजट में कहा था कि सरकार जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देगी। यह तकनीक आजादी के 75वें साल में किसानों की आय को दो गुना करने की क्षमता रखती है। इसके बाद उन्होंने इसके अगले साल के बजट में भी इसका जिक्र किया। वहीं 1 फरवरी, 2022 को पेश आगामी वित्त वर्ष के बजट में भी उन्होंने एक बार फिर नेचुरल फार्मिंग पर जोर देते हुए गंगा नदी के किनारे पांच किलोमीटर का केमिकल मुक्त नेचुरल फार्मिंग कारीडोर घोषित किया है। ऐसे में पालेकर के इस पत्र में कही गई बातें सवाल खड़े कर रही है क्योंकि बड़े पैमाने पर नेचुरल फार्मिंग के लिए पालेकर माडल का उदाहरण दिया जाता रहा है। लेकिन जब आईसीएआर ने नेचुरल फार्मिंग के मॉडल को वैज्ञानिक स्तर पर वेलिडेट करने की बात की तो पालेकर ने खुद को इससे अलग कर लिया।
रूरल वॉयस के साथ इस मुद्दे पर बातचीत में एक प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि सुभाष पालेकर द्वारा उक्त पत्र में कही गई बातें किसी को भी उलझन में डाल सकती हैं। इसमें सबसे बड़ी उलझन सरकार के लिए खड़ी होती है जो आजकल नेचुरल फार्मिंग और ऑर्गेनिक खेती को किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में पेश कर रही है और उसकी वकालत कर रही है। लेकिन जिस व्यक्ति के फार्मूले पर बरसों से नीतियां घोषित होती रही हैं, वही इनके खिलाफ बात कर रहे हैं।