केंद्र सरकार का ड्राफ्ट शुगर (कंट्रोल) आर्डर 2024 चीनी उद्योग के गले नहीं उतर रहा है। उद्योग का कहना है कि शुगर (कंट्रोल) आर्डर 1966 और शुगर प्राइस (कंट्रोल) आर्डर 2018 की जगह नया आर्डर लाने की कोई जरूरत ही नहीं थी और न उद्योग ने इसकी कोई मांग की। दूसरे, इस आर्डर में कई ऐसे प्रावधान हैं जो चीनी उद्योग के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। उद्योग का कहना है कि चीनी की परिभाषा समेत कई दूसरे प्रावधानों को बदलने की जरूरत है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने 24 अगस्त को एक ड्राफ्ट शुगर कंट्रोल आर्डर जारी किया है, जिस पर संबंधित पक्षों को 23 सितंबर तक राय देनी है। इस आदेश पर राय बनाने के लिए 14 सितंबर को पुणे में चीनी उद्योग के विभिन्न संगठनों, चीनी कारोबारियों व निजी चीनी मिलों के करीब 50 प्रतिनिधियों की बैठक में यह बातें सामने आई हैं। सूत्रों के मुताबिक उद्योग अपने सुझाव जल्दी ही केंद्र सरकार को सौंप देगा।
रूरल वॉयस को प्राप्त जानकारी के मुताबिक चीनी मिलों को सबसे बड़ी आपत्ति चीनी की परिभाषा पर है। ड्राफ्ट शुगर कंट्रोल आर्डर में बीआईएस की परिभाषा ली गई है। चीनी उद्योग का कहना है कि वैधानिक संस्था और नियामक फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की पहले से ही परिभाषा है और खाद्य नियामक होने के नाते उद्योग को उसका पालन करना ही है। ऐसे में दूसरी परिभाषा की कोई जरूरत नहीं है।
चीनी उत्पादक की परिभाषा को लेकर भी उद्योग को आपत्ति है। परिभाषा में चीनी और उसके सह-उत्पाद (बाई प्रोडक्ट्स) बनाने वाली इकाइयों को शुगर प्रोड्यूसर माना गया है। उद्योग का कहना है कि चीनी का उत्पादन करने वाली मिलें तो सह-उत्पाद बनाती ही हैं क्योंकि चीनी उत्पादन में सह-उत्पाद निकलते ही हैं। इसलिए चीनी उत्पादक की परिभाषा में अलग से बाई प्रोडक्ट जोड़ने की जरूरत नहीं है।
आर्डर में चीनी की पैकेजिंग को भी शामिल किया गया है। उसमें चीनी की पैकेजिंग जूट बैग में करने का प्रावधान किया गया है। उद्योग का कहना है कि यह प्रावधान हमें स्वीकार्य नहीं है। पहले से ही उद्योग जूट कंट्रोल आर्डर के तहत आता है। ऐसे में एक ही उत्पाद के लिए दो-दो आर्डर का कोई औचित्य नहीं है।
नये प्रस्तावित आर्डर में चीनी की कीमतों को भी शामिल किया जाएगा। सरकार फिलहाल चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत (एमएसपी) को शुगर प्राइस कंट्रोल आर्डर, 2018 के तहत निर्धारित करती है। उद्योग का कहना है कि चीनी की न्यूनतम कीमत का ही प्रावधान आर्डर में होना चाहिए। उम्मीद है कि उद्योग जल्दी ही ड्राफ्ट शुगर कंट्रोल आर्डर, 2024 पर अपनी राय सरकार को सौंप देगा। अब यह देखना है कि सरकार चीनी उद्योग के सुझावों को कितना समायोजित करती है।
शुगर कंट्रोल आर्डर में पहली बार खांडसारी उद्योग को भी शामिल किया गया है। इसके लिए चीनी की परिभाषा के तहत ओपन पैन की प्रक्रिया के जरिये बनने वाली खांडसारी शुगर, बूरा और सल्फर खांडसारी को भी शामिल किया गया है। ड्राफ्ट आर्डर में 500 टन प्रतिदिन या उससे अधिक गन्ना पेराई क्षमता (टीसीडी) वाली खांडसारी इकाइयों को इसके तहत लाने का प्रस्ताव है। इससे सरकार के पास अधिकार होगा कि जो नियंत्रण चीनी मिलों पर लागू हैं वह इन इकाइयों पर भी लागू किए जा सकें। इसमें खांडसारी का भंडारण, परिवहन, बिक्री और मूल्य निर्धारण शामिल हो सकता है। खांडसारी इकाइयों के संगठनों ने रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि वह इसके पक्ष में नहीं है और वह भी इस बारे में अपना पक्ष सरकार के सामने रखने वाले हैं।
दरअसल, शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 के जरिए केंद्र सरकार चीनी उद्योग पर नियंत्रण और रेगुलेशन का दायरा बढ़ाने का प्रयास कर रही है। यह आदेश चीनी के अलावा इसके सह-उत्पादों जैसे शीरा, एथेनॉल और बायोगैस आदि के उत्पादन के साथ इनकी बिक्री, भंडारण, पैकेजिंग और परिवहन पर भी लागू होगा। इसे लेकर चीनी उद्योग की भी अपनी चिंताएं हैं। ड्राफ्ट में कहा गया है कि कोई भी उत्पादक या डीलर केंद्र के लिखित निर्देश के बिना चीनी और इसके सह-उत्पादों की बिक्री या डिलीवरी नहीं कर सकेगा। किसी को भी परमिट के बिना चीनी और इसके सह-उत्पादों के ट्रांसपोर्ट की अनुमति नहीं होगी।
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उदारीकरण से यू-टर्न
करीब तीन दशक तक उदारीकरण की नीति पर चलने के बाद अब लग रहा है कि केंद्र सरकार चीनी उद्योग पर नियंत्रण बढ़ाने की तरफ जा रही है। दूसरी तरफ सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा देने और इज ऑफ डूइंग बिजनेस का दावा करती है। ऐसे में शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 एक विरोधाभासी कदम साबित हो सकता है। प्रस्तावित आदेश एक दशक पहले रंगराजन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर शुरू हुए चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के सिलसिले के भी खिलाफ है।