भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने एरोपोनिक तकनीक से आलू के बीज उत्पादन की अनूठी तकनीक विकसित की है। एरोपोनिक पद्धति में किसानों को आलू की फसल के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होगी। एरोपॉनिक विधि में पोषक तत्वों का छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व प्रकाश में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, मिट्टी उपयोग नहीं होती तो मिट्टी से जुड़े रोग नहीं होते।
इसकी खेती पॉली हाउस में की जाती है। इसमें आलू के पौधे ऊपर की तरफ होते हैं और उनकी जड़ें नीचे अंधेरे में टंगी रहती हैं। नीचे की तरफ पानी के फव्वारे लगे होते हैं, जिससे पौधे को पानी दिया जाता है और फव्वारे के पानी में न्यूट्रिएटंस मिलाए जाते हैं।
एरोपोनिक तकनीक की यूनिट के लिए मध्य प्रदेश सरकार के उद्यानिकी विभाग और इसे तैयार करने वाली एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड के बीच दिल्ली के कृषि भवन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व मध्य प्रदेश के उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह की मौजूदगी में करार हुआ। इस अवसर पर तोमर ने कहा कि किसानों को फसलों के प्रमाणित बीज समय पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है। इसी कड़ी में आईसीएआर के संस्थान अपने-अपने क्षेत्र में नई तकनीक का विकास कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश की पहली यूनिट ग्वालियर में स्थापित की जाएगी। प्रदेशभर के किसानों को यहां से विभिन्न किस्म के आलू बीज तथा एरोपोनिक तकनीक साझा की जाएगी। मध्य प्रदेश के उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह ने बताया कि एरोपोनिक तकनीक का उपयोग आलू बीज ट्यूबर के उत्पादन के लिए होगा। उनसे मिलने वाले पौधों को किसान बिना मिट्टी के भी फसल में उपयोग कर सकेंगे और इस तकनीक से फसल का उत्पादन भी 10 से 12 प्रतिशत बढ़ेगा। इस मौके पर आईसीएआर के डीजी डा. त्रिलोचन महापात्र और एग्रीनोवेट इंडिया की सीईओ डा. सुधा मैसूर ने भी विचार रखें।