केंद्र सरकार किसानों को फसलों की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने का दावा कर रही है जबकि किसान संगठनों की ओर से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने में व्यापक लागत (सी2) को आधार बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से एक श्वेत पत्र जारी कर किसानों को सी2 और ए2+एफएल लागत के आधार पर एमएसपी के अंतर को समझाने की मांग की है। कई दूसरे किसान संगठन भी कमतर लागत (ए2+एफएल) की बजाय व्यापक लागत (सी2) के आधार पर एमएसपी घोषित करने की मांग उठा रहे हैं।
पिछले दिनों नई दिल्ली में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने रबी फसलों के एमएसपी निर्धारण से पहले किसान संगठनों के साथ बैठक की। इस बैठक में किसान संगठनों ने उपज की लागत गणना का मुद्दा उठाया। बैठक में भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के प्रतिनिधियों ने एमएसपी का कानून बनाने तथा फसलों के दाम सी2 लागत के आधार पर तय करने की वकालत करते हुए एमएसपी को प्रभावी बनाने पर जोर दिया।
भाकियू (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने रूरल वॉयस को बताया कि एमएसपी की व्यवस्था और फसल लागत की गणना में सुधार के लिए कई सुझाव दिए गये हैं। एमएसपी की गणना में सी2 लागत को भी शामिल किया जाये। क्योंकि सी2 एक अधिक व्यापक लागत है, जिसमें खेती के खर्च (ए2) + पारिवारिक श्रम के मूल्य (एफएल) के साथ भूमि का किराया और बाकी खर्चों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है। इसलिए सी2 लागत के ऊपर 50 फीसदी जोड़कर एमएसपी तय किया जाना चाहिए। धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि हर सीजन में पारिवारिक श्रम (एफएल) के तहत केवल आठ दिनों के काम को गिना जाता है। कई वर्षों से सरकारी गणना में किसानों की उत्पादन लागत में मामूली बढ़ोतरी दर्शायी जा रही है, जिसके कारण किसानों को फसलों का सही दाम नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि जो एमएसपी तय किया जाता है, वह दाम किसानों को मिले, इसके लिए भी एक सिस्टम विकसित करना चाहिए।
भाकियू (अराजनैतिक) ने सभी फसलों के एमएसपी तय करने, बागवानी फसलों और डेयरी उत्पादों को एमएसपी के दायरे में लाने तथा जलवायु परिवर्तन के कारण खेती के नुकसान को उत्पादन लागत की गणना में शामिल करने का सुझाव दिया है। साथ ही उत्पादन के आंकड़ों में पारदर्शिता और क्रॉप कटिंग डेटा के पैरामीटर तय करने की मांग की है।
ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) ने खरीफ फसलों पर उत्पादन लागत से डेढ़ गुना एमएसपी देने के सरकार के दावे पर आपत्ति जताते हुए इसे गलत करार दिया है। किसान सभा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भाजपा ने 2014 में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करने का वादा किया था। लेकिन 10 साल बाद भी ए2+एफएल के आधार पर एमएसपी तय किए जा रहे हैं जो सी2+50% से बहुत कम है। सी2 के आधार पर एमएसपी निर्धारित नहीं होने से किसानों को धान पर 712 रुपये प्रति कुंतल का नुकसान हो रहा है। एआईकेएस ने कहा कि 10 फीसदी से भी कम किसान सीएसीपी द्वारा घोषित एमएसपी से लाभान्वित होते हैं, क्योंकि एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की व्यवस्था नहीं है। एआईकेएस ने अपनी मांगों के संबंध में सीएसीपी के अध्यक्ष प्रोफेसर विजय पाल शर्मा को इस संबंध में एक पत्र सौंपा।