पिछले साल खाद्य तेलों की बढ़ी कीमतों के कारण किसानों ने इस बार ज्यादा इलाके में सरसों की खेती की है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार रबी सीजन में तिलहनी फसलों का रकबा 18.30 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। किसानों का यह कदम सरकार के प्रयासों की दिशा में ही है। इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को भी कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि तिलहन की खेती में किसानों की दिलचस्पी कम न हो। भारत अपनी घरेलू खाद्य तेल जरूरतों का लगभग 60 प्रतिशत आयात से पूरा करता है। मौजूदा वर्ष के पहले नौ महीनों में खाद्य तेलों के आयात का खर्च 75 फीसदी तक बढ़ गया है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि रबी सीजन 2021-22 में तिलहनी फसलों का रकबा 18.30 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। बीते साल समान अवधि में 82.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तिलहन की खेती हुई थी, जो इस बार बढ़कर 101.16 लाख हेक्टेयर हो गई है। सबसे अधिक रकबा सरसों और रेपसीड का बढ़ा है। इनका रकबा बीते साल के 73.1 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 91 लाख हेक्टेयर हो गया है। यानी यानी कुल 17.9 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। सूरजमुखी और तिल के रकबे में नाम मात्र की कमी को छोड़ दें, तो बाकी सभी तिलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। सरसों के रकबे में पिछले वर्ष की तुलना में 24.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
बेहतर मूल्य की उम्मीद में बढ़ा सरसों का रकबा
रूरल वॉयस की टीम ने कई क्षेत्रों के किसानों से संपर्क कर सरसों के रकबे में वृद्धि का कारण जानने कोशिश की। उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के जंधारी गांव के किसान अमरनाथ खटाना ने बताया कि उन्होंने पिछले साल ढाई एकड़ में सरसों की फसल लगाई थी। उन्हें 8000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत मिली। आमतौर पर गन्ने की खेती करने वाले अमरनाथ ने अतिरिक्त आय के लिए पिछले साल कुछ ही इलाके में सरसों की बुवाई की थी। अच्छी कीमत मिलने पर उनका मनोबल बढ़ा और इस साल उन्होंने छह एकड़ में सरसों की खेती की है। उन्होंने बताया कि आसपास के गांवों के किसानों ने भी ज्यादा इलाके में सरसों की खेती की है।
राजस्थान की रैनवाल तहसील के देवा गांव के किसान लक्ष्मी नारायण यादव ने इस साल पांच एकड़ में सरसों की फसल लगाई है। पिछले साल उन्होंने एक एकड़ में सरसों की खेती की थी। बाकी खेत में चना लगाया था। चने की उपज तीन क्विंटल प्रति एकड़ थी, जो 4500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव बिकी। लेकिन एक एकड़ में साढ़े चार क्विंटल सरसों की उपज हुई, जिसे उन्होंने पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से बेचा था। उन्होंने कहा कि अगर थोड़ा इंतजार करते तो सात हजार रुपये का भाव मिल जाता। पिछले साल उन्होंने सरसों तेल 200 रूपया लीटर खरीदा था। इसी उम्मीद में इस साल सरसों का रकबा बढ़ाया है।
मध्य प्रदेश के दतिया जिले के गांव कामत के किसान शैलेंद्र सिंह डांगी ने पांच एकड़ खेत में सरसों की फसल बोई है। उन्होंने कहा कि सरसों का भाव स्थिर रहे तो किसान सरसों की खेती पर ज्यादा जोर देंगे। सरकार केवल रकबा और उत्पादन बढ़ाने पर जोर देती है, लेकिन किसान किसी भी फसल की अधिक बुवाई तभी करेंगे जब उन्हें लाभ होगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार हर जिले में उचित मूल्य पर ही सरसों की खरीदारी की व्यवस्था करे तो किसानों को लाभ होगा और वे अधिक क्षेत्र में सरसों की खेती करेंगे।
अधिक उपज और देर वाली किस्में विकसित करना जरूरी
दतिया कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख और सरसों की फसल के विशेषज्ञ डॉ. आरकेएस तोमर ने रूरल वॉयस को बताया कि सरसों की खेती के लिए सबसे पहले किसानों को समय पर इनपुट उपलब्ध कराना आवश्यक है, ताकि किसान समय पर सरसों की बुवाई कर सकें। डॉ. तोमर का कहना है कि सरसों की प्रजातियों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार विकसित किया जाना चाहिए, क्योंकि तापमान में उतार-चढ़ाव सरसों की उपज को प्रभावित करता है जिससे किसान कम उपज के कारण सरसों की खेती में अधिक रुचि नहीं लेते हैं। सरसों की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों के विकास पर ध्यान देना जरूरी है। भारतीय सरसों की अधिकांश किस्मों में तेल की मात्रा कम होती है। इसलिए नई किस्में विकसित की जानी चाहिए। सरसों की अच्छी पैदावार और तेल के प्रतिशत के लिए ग्राउंड में सल्फर की आवश्यकता होती है। लेकिन आजकल ग्राउंड में सल्फर की कमी हो गई है जिससे सरसों की पैदावार प्रभावित होती है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। किसानों को समय पर बुवाई के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि देर से बुवाई करने से कीट और तापमान के कारण सरसों की उपज में अधिक नुकसान होता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरसों की देर से बोई जाने वाली किस्मों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। डॉ. तोमर का कहना है कि सरसों की कीमत इतनी हो कि किसानों को लाभ मिले, तभी वे रुचि दिखाएंगे।
उत्पादन के लिए समर्पित योजना की जरूरत
सेंटर फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओआईटी) ने कहा है कि इस साल सरसों की बुआई का रकबा 25 फीसदी बढ़ने और सरसों का उत्पादन भी 110 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। सीओआईटी ने कहा कि अगर सरकार चाहती है कि किसानों की रुचि तिलहन और दलहन की तरफ हो, तो सरकार को भी कुछ कदम उठाने होंगे।
सीओआईटी का सुझाव है कि सरकार सरसों और दाल के बीज का बफर स्टॉक तैयार करे। यह स्टॉक कम से कम 25 लाख टन के लिए तैयार किया जाना चाहिए। इससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और आयात कम होगा। सीओआईटी का कहना है कि बफर स्टॉक के प्रस्तावित निर्माण की खरीद फसल के मौसम की शुरुआत में बाजार मूल्य पर की जानी चाहिए।
सीओआईटी चाहती है कि सरकार कच्चे खाद्य तेलों और रिफाइंड खाद्य तेलों पर आयात शुल्क के बीच अंतर हटा दे। पहले यह अंतर 11 फीसदी था, अब 5.5 फीसदी है। दुनिया भर में कीमतों में वृद्धि के कारण अक्टूबर में समाप्त होने वाले तेल विपणन वर्ष 2020-21 के दौरान भारत ने अब तक का सबसे अधिक 1.17 लाख करोड़ खाद्य तेलों का आयात किया था। सीओआईटी के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों के लिए तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने का समय आ गया है।
सीओआईटी के अध्यक्ष सुरेश नागपाल ने कहा, हम चाहते हैं कि सरकार आगामी बजट में एक समर्पित योजना लेकर आए, जिससे किसानों को सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे विभिन्न तिलहनों की बुवाई के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। अगस्त 2021 में सरकार ने खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की, जिसके तहत पाम तेल के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 11,040 करोड़ रुपये का प्रावधन किया गया था। सरसों का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी इसी तरह की पहल की जानी चाहिए।
अनुकूल माहौल विकसित करना जरूरी
भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में खाद्य तेल के आयात पर देश का खर्च 75 फीसदी तक बढ़ गया है। भारत अपनी घरेलू खाद्य तेल जरूरतों का लगभग 60 प्रतिशत आयात से पूरा करता है। केंद्र सरकार ने खाद्य तेल उत्पादन को आत्मनिर्भर बनाने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की थी। खाद्य तेलों और पाम तेल का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के अनुकूल माहौल विकसित करने के लिए इस मिशन के तहत 11,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया जाएगा।