केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने कहा है कि खाद्य पदार्थों के नुकसान और बर्बादी को रोकना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। दुनिया में लगभग 3 अरब टन खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से विकसित और विकासशील देश इस बर्बादी को रोकने के उपाय कर सकते हैं। उन्होंने कि सामाजिक संगठनों को भी विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है और भोजन की बर्बादी को कम करने के तरीकों को अपनाना चाहिए। भारत में सालाना 7.4 करोड़ टन खाद्य पदार्थों का नुकसान होता है।
नई दिल्ली में 'साउथ एशियन रीजन में फूड लॉस एंड वेस्ट प्रीवेंशन' विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए उन्होंने यह बात कही। इस कार्यशाला का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और जर्मनी के थुनेन संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस कार्यक्रम में भारत, बांग्लादेश, भूटान, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, नेपाल और श्रीलंका के लगभग 120 प्रतिनिधि मौजूद रहे।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए शोभा करंदलाजे ने कहा कि दुनिया भर में लगभग 3 अरब टन खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है। विकसित और विकासशील देशों की उपयुक्त प्रौद्योगिकियों और कार्यप्रणालियों को आगे लाया जाना चाहिए ताकि समाज स्वीकार्य तरीकों का उपयोग करके दुनिया भर में हो रही खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी को कम किया जा सके। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सामाजिक संगठनों को विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है और खाद्य-पदार्थों की बर्बादी को कम करने के तौर-तरीकों को अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी न केवल उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदेह है, बल्कि इसका पर्यावरण एवं पूरक अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर पड़ता है। दक्षिण एशिया खाद्यान्न का एक प्रमुख उत्पादक होने के साथ-साथ उपभोक्ता भी है और खाद्य-पदार्थों की हानि और बर्बादी को कम करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी के साथ-साथ आर्थिक जरूरत भी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि खाद्य-पदार्थों की बर्बादी करना एक अपराध है और सभी को अपने बच्चों को खाद्य-पदार्थों को बर्बाद नहीं करने के महत्व के बारे में बताने के लिए प्रेरित किया।
जर्मनी के थुनेन इंस्टीट्यूट के अनुसंधान निदेशक डॉ. स्टीफन लैंग कहा कि खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी को कम करने एवं रोकने से ही जरूरतमंदों तक खाद्य पदार्थों का पहुंचना सुनिश्चित होगा। उन्होंने बताया कि “खाद्य-पदार्थों की हानि और बर्बादी पर एक सहयोगात्मक पहल” खाद्य-पदार्थों की हानि और बर्बादी की समस्या से निपटने में अनुसंधान परिणामों और व्यावहारिक अनुभव के वैश्विक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। भारत सरकार खाद्य-पदार्थों की हानि और बर्बादी को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर और सहयोगी प्रयासों को शुरू करने में सभी पड़ोसी देशों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, फ्रांस की क्लेमेंटाइन ओकॉनर ने कहा कि महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्धों का भी खाद्य-पदार्थों की हानि और बर्बादी पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने याद दिलाया कि 2030 तक खाद्य पदार्थों की हानि को कम करके आधा करने के लक्ष्य 12.3 के सतत विकास को हासिल करने के लिए केवल कुछ ही साल बचे हैं।
फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान और खाद्य पदार्थों की बर्बादी दुनिया के भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग होती हैं। यह काफी हद तक फसलों और वस्तुओं, भंडारण की अवधि, जलवायु, तकनीकी उपाय, मानव व्यवहार, परंपराओं आदि पर निर्भर करता है। भारत में हर साल लगभग 7.4 करोड़ टन खाद्य-पदार्थों का नुकसान होता है। अगर इसे रोका जाए, तो इससे काफी लोग लाभान्वित होंगे।