स्वदेशी जागरण मंच ने एफएसएसएआई से अनुवांशिक रूप से संशोधित (जेनेटिकली मोडिफाइड) खाद्य पर जारी ड्राफ्ट नियमों को वापस लेने का आग्रह किया है। मंच का कहना है कि खाद्य नियामक के प्रस्ताव सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं और इन पर अमल से कोविड-19 महामारी के दौर में संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था, स्वदेशी जागरण मंच ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की आलोचना भी की है।
मंच के सह-संयोजक अश्वनी महाजन के अनुसार, “एफएसएसएआई के ड्राफ्ट का डिजाइन वैश्विक जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज्म (जीएमओ) और प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के लिए बाजार तैयार करने वाला है। यह सब हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य, हमारी सार्वभौमिकता और सुरक्षा की कीमत पर होगा। प्राधिकरण को हमारी सेहत और आजादी से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। इसलिए हम उससे ड्राफ्ट नोटिफिकेशन वापस लेने का आग्रह करते हैं।”
मंच का कहना है, यह स्थापित हो चुका है और इस बात से हम सभी अवगत हैं कि संशोधित और अति प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ गैर संचारी पुरानी बीमारी या महामारी का मूल कारण है। जीएमओ औद्योगिक खाद्य को बढ़ावा देकर एफएसएसएआई सार्वजनिक स्वास्थ्य को दोहरा नुकसान पहुंचा रहा है। वह हमारे भोजन में जीएमओ को अनुमति देकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से औद्योगिक प्रसंस्करण को भी बढ़ावा दे रहा है।
यह साफ दिखाई दे रहा है कि इन मसौदा विनियम के जरिए कहीं और के प्रस्ताव को स्वीकार करने की योजना है। इसीलिए देश से बाहर का डाटा भी स्वीकार किया जा रहा है। यह स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य है। एफएसएसएआई ने अपने मसौदा प्रस्ताव में शिशु खाद्य पदार्थों में कोई जीएमओ नहीं होने की बात कही है। यानी कि एफएसएसएआई स्वीकार करता है कि जीएम खाद्य पदार्थ जोखिम भरे हैं, खासकर बच्चों के लिए। आज पूरी दुनिया में लोग जीएमओ के बजाय गैर जीएम खाद्य पसंद करते हैं। भारत के नागरिक और राज्य सरकारें भी जीएम खाद्य नहीं चाहती हैं। ऐसे में एफएसएसएआई नागरिकों की पसंद, स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव और पर्यावरणीय खतरों को कैसे नजरअंदाज कर सकता है?
मंच ने रेगुलेटर पर कई और आरोप भी लगाए हैं। उसका कहना है कि अधिनियम की धारा 5 के मुताबिक प्राधिकरण के अंदर एक अंतर मंत्रालयीय निकाय है जिसमें कुछ बाहर के विशेषज्ञ प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। इस निकाय में कुल 23 सदस्य होते रहे हैं लेकिन आज यह नौकरशाहों के केवल 8 सदस्यों के निकाय के रूप में कार्य कर रहा है। ऐसे में सवाल है कि जो भी आवेदन एफएसएसएआई के पास आएंगे उस पर विचार करने के लिए इस निकाय के पास क्या विशेषज्ञता है?
मंच का आरोप है कि एफएसएसएआई किसी भी खाद्य पदार्थ में लेबलिंग थ्रेसोल्ड को व्यक्तिगत जीएम घटक का 1% होने का प्रस्ताव कर रहा है, जबकि परीक्षण क्षमता 0.01% पर पता लगाने के लिए है। लेवलिंग सीमा 0.01% से बढ़ाकर 1% करके उपभोक्ताओं के जानने के अधिकार और उनके पसंद के अधिकार से समझौता क्यों किया जाना चाहिए? यह तो एक दुस्साहसिक कदम भी लगता है। इसके विपरीत एफएसएसएआई के पास जीएम खाद्य पदार्थों को पकड़ने के लिए, बाजारों में निगरानी के लिए, मसौदा नियमों में कोई प्रस्ताव नहीं है और ना ही अनुमोदन के बाद बाजार निगरानी के लिए कोई ठोस प्रस्ताव है।
मंच का कहना है, “आज हम एक बड़ी महामारी के बीच में हैं। अब यह बात मानी जा रही है कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर, हाइपरटेंशन जैसी अनेकों बीमारियों के कारण कोविड-19 से ज्यादा मौतें हुईं। इन बीमारियों का संबंध हमारे हानिकारक भोजन और खासकर प्रसंस्कृत भोजन में मौजूद विषाक्त पदार्थों से है। इस प्रकार आपका गैर जिम्मेदार मसौदा विनियमन कोविड को बढ़ाने का एक नुस्खा है। ऐसा करके आप एक सार्वजनिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं।”