भारत को खाद्य और पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थायी जल प्रबंधन करना जरूरी है। अगर इस समस्या का समाधान समय पर नहीं किया गया तो बहुत देर हो जाएगी। नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष (आईएफएडी) और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) द्वारा विश्व खाद्य दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में यह बात कही। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र के इन संगठनों ने स्थायी जल प्रबंधन का आह्वान किया।
भारत में दुनिया की 18 फीसदी आबादी रहती है मगर उसके पास केवल 4 फीसदी जल संसाधन हैं। यह इसे दुनिया के सबसे अधिक जल-तनाव वाले देशों में से एक बनाता है। भारत की पानी की जरूरतों का 40 फीसदी हिस्सा भूजल है और यह अस्थिर दर से घट रहा है। दरअसल, भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल निकालने वाला देश है जो वैश्विक दोहन का 12 फीसदी है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शमन उपायों के बिना भारत को 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद में 6 फीसदी की हानि का सामना करना पड़ेगा। तब तक पानी की मांग आपूर्ति से अधिक हो जाएगी। इसे ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसियों (एफएओ, आईएफएडी, और डब्ल्यूएफपी) ने भारत को एक ऐसी कृषि-खाद्य प्रणाली की ओर बदलाव में तेजी लाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया जो अधिक टिकाऊ, लचीली और अधिक कुशलता से पानी का उपयोग करने वाली हो।
नीति आयोग के सदस्य और आर्थिक विकास संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष रमेश चंद ने भारत में खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने की चुनौतियों और संभावित समाधानों पर एक पैनल चर्चा की अध्यक्षता की।
प्रोफेसर चंद ने सभी के लिए खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहा, “किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए पहली बात हितधारकों को संवेदनशील बनाना और समाज को संवेदनशील बनाना है। अभी कार्रवाई का समय है। यदि हम कार्रवाई करें, तो हम इस जल समस्या का समाधान कर सकते हैं। अगर हम इस स्तर पर कार्रवाई नहीं करते हैं, तो बहुत देर हो जाएगी।”
इस पैनल में जल शक्ति मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव और राष्ट्रीय जल मिशन की निदेशकर अर्चना वर्मा, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव फ्रैंकलिन एल खोबुंग और अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन में भारत के प्रतिनिधि आलोक सिक्का शामिल थे। पैनल में जल संसाधनों और पर्यावरण को संरक्षित करते हुए भारत में भोजन और पोषण के लिए एक स्थायी और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने की रणनीतियों पर चर्चा की गई।
भारत में एफएओ के प्रतिनिधि ताकायुकी हागिवार ने कहा, “चरम जलवायु पैटर्न और घटते भूजल संसाधनों के साथ कृषि के लिए पानी की सुरक्षा, संरक्षण और सोच-समझकर उपयोग पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है। भारत सरकार पानी से संबंधित मुद्दों को समझती है और कृषि और खाद्य सुरक्षा में इसका अत्यधिक महत्व है। एफएओ का ध्यान भारत में जल दक्षता में सुधार के लिए कृषि-खाद्य प्रणालियों और जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं के स्थायी परिवर्तन की वकालत और समर्थन करना है।”
आईएफएडी के भारत के निदेशक और प्रतिनिधि उलैक डेमिराग ने कहा, “चरम मौसम की घटनाओं और पानी की उपलब्धता में परिवर्तनशीलता कृषि उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, कृषि-पारिस्थितिकी स्थितियों को बदल रही है और मौसम को बदल रही है। वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन और उच्च तापमान भी फसल उत्पादकता को प्रभावित करते हैं जिससे भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है। आईएफएडी खाद्य प्रणालियों को अधिक टिकाऊ और चरम मौसम की स्थिति के प्रति लचीला बनाने के लिए सरकार का समर्थन कर रहा है, छोटे किसानों की आजीविका में सुधार पर जोर दे रहा है ताकि भोजन पूरे साल खेत से थाली तक निर्बाध रूप से पहुंच सके।”
डब्ल्यूएफपी इंडिया के प्रतिनिधि और कंट्री डायरेक्टर एलिज़ाबेथ फॉरे ने कहा, "खाद्य सुरक्षा सुर्खियों में रही है, लेकिन अक्सर हम भूल जाते हैं कि जल सुरक्षा के बिना कोई खाद्य सुरक्षा नहीं है। डब्ल्यूएफपी अपने साझेदारों के साथ मिलकर सौर प्रौद्योगिकियों के माध्यम से लचीलापन बढ़ाने, जलवायु प्रभावों को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए समुदाय-आधारित जलवायु सलाहकार सेवाओं की स्थापना और मोटा अनाज मूल्य श्रृंखला को बढ़ावा देने के लिए नवीन दृष्टिकोण पर काम कर रहा है जो पानी के उपयोग को कम करता है और पोषण में सुधार करता है।"
इस कार्यक्रम में वीडियो स्टोरीटेलिंग के जरिये जल सहेलियों नीलम देवी और मंजू लता कुरील के साथ एक विशेष सत्र के माध्यम से सामुदायिक आवाज़ों को भी बढ़ाया गया। ये दोनों उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की जल योद्धा हैं जो अपने समुदायों में जल सुरक्षा को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। ये महिलाएं जल संसाधन योजना, प्रबंधन और संरक्षण के माध्यम से पानी की उपलब्धता को सुलभ बनाती हैं।
इन जल सहेलियों ने हैंडपंपों की मरम्मत की है, सरकारी आवंटन से चेक डैम बनाए हैं और गांवों में पारंपरिक तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए समुदाय द्वारा 'श्रमदान' या स्वैच्छिक योगदान का आयोजन किया है। जल संसाधनों को बहाल करके, सिंचाई के नहरों को खोदकर और जलवायु चरम सीमाओं के खिलाफ प्राकृतिक बाधाओं का पुनर्निर्माण करके समुदायों और स्थानीय खाद्य प्रणालियों की रक्षा की जा सकती है।