सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाज से जुड़े भ्रामक विज्ञापनों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कंपनी को ऐसी बीमारियों के इलाज के दावे वाले विज्ञापन देने पर रोक लगाने को कहा जो ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आब्जेक्शनेबल एडवरटाइजमेंट) एक्ट, 1954 के दायरे में आती हैं। साथ ही सरकार से भी पूछा है कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
पिछले साल सितंबर में पतजंलि आयुर्वेद ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि बीमारियों के उपचार से जुड़े भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगी। लेकिन प्रथम दृष्टया यह देखते हुए कि कंपनी ने अपने वचन का उल्लंघन किया है, अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि के प्रबंध निदेशक) को नोटिस जारी कर यह बताने को कहा कि अदालत की अवमानना के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमएस) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पतंजलि पर भ्रामक विज्ञापनों और इलाज से जुड़े झूठे दावे करने का आरोप लगाया गया है।
सुनवाई के दौरान बेंच ने टिप्पणी की, "पूरे देश को धोखा दिया गया है! दो साल से आप इंतजार कर रहे हैं कि ड्रग्स एक्ट कब इसे प्रतिबंधित करेगा।” कोर्ट ने उसके आदेशों की अवहेलना के लिए कंपनी को फटकार लगाई। साथ ही भ्रामक विज्ञापनों पर रोकथाम को लेकर सरकार के सुस्त रवैये की भी आलोचना की।
अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके अधिकारियों को प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में किसी भी दवा प्रणाली के खिलाफ कोई भी बयान देने से आगाह किया है। कंपनी को निर्देश दिया है कि वो भ्रामक जानकारी देने वाले अपनी दवाओं के सभी इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट विज्ञापनों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दे। शीर्ष अदालत ने इससे पहले भी पतंजलि आयुर्वेद को कई बीमारियों के इलाज के बारे में विज्ञापनों में "झूठे" और "भ्रामक" दावे ना करने की चेतावनी दी थी।