आवश्यक वस्तु अधिनियम समेत केंद्र सरकार ने पिछले साल जून, 2020 में अध्यादेशों के जरिये तीन नये कृषि कानून लागू किये थे। बाद में संसद ने सितंबर, 2020 में इन कानूनों से संबंधित विधेयकों को पारित कर दिया था। लेकिन इन कानूनों का किसानों द्वारा विरोध करने के साथ ही मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चला गया और सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को अगले आदेश तक इन कानूनों के अमल पर रोक लगा रखी है। लेकिन सरकार के हाल के कुछ फैसले इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि वह इन कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई रोक का फायदा ले रही है। इसी के चलते ही सरकार पिछले शुक्रवार 2 जुलाई,2021 को दालों पर स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला लागू कर पाई। अगर आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधित), 2020 लागू होता तो सरकार महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए दालों की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए स्टाक लिमिट लगाने का फैसला नहीं ले पाती। इस कानून के लागू होने की स्थिति में जल्दी खराब नहीं होने वाले उत्पादों (नॉन पेरिशेबल) की कीमतों में एक साल के भीतर 50 फीसदी बढ़ोतरी होने पर स्टाक लिमिट लगाने का प्रावधान है। लेकिन सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक दालों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले करीब 23 फीसदी ही बढ़ी हैं।
सरकार के इस कदम के दो कयास लगाये जा रहे हैं। एक यह कि सरकार लगातार बढ़ रही महंगाई से बहुत अधिक चिंतित है। वहीं दूसरी ओर सरकार का यह कदम खुद इन कानूनों को सुधारवादी बताने के सरकार के तर्क के खिलाफ जाता है। इसके साथ ही तीन नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों समेत इन का विरोध कर रहे लोगों का तर्क इस कदम से मजबूत होगा। वैसे किसान संगठनों का विरोध आवश्यक वस्तु अधिनियम के मुकाबले कांट्रेक्ट फार्मिंग और कृषि उत्पादों के ट्रेड को लेकर बने का कानून के खिलाफ ज्यादा है जिसे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और मंडयों पर खतरे के रूप में देख रहे हैं।
केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा 2 जुलाई को जारी एक आदेश के तहत मूंग को छोड़ कर बाकी सभी दालों पर 31 अक्तूबर, 2021 तक के लिए स्टाक लिमिट लगा दी है। थोक ट्रेडर्स के लिए 200 टन और खुदरा बिक्रेताओं के लिए पांच टन की स्टाक लिमिट लगाई गई है। वहीं प्रसंस्करण इकाइयों के लिए पिछले तीन माह के उत्पादन के बराबर या स्थापित क्षमता के 25 फीसदी के बराबर स्टाक लिमिट लगाई गई है। नये आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अकाल या प्राकृतिक आपदा के समय या जल्दी खराब नहीं होने वाले वाले कृषि उत्पादों की कीमतों में एक साल पहले चल रही कीमतों के मुकाबले 50 फीसदी बढ़ोतरी होने पर ही स्टाक लिमिट लागू करने का प्रावधान है।
उपभोक्ता मामले विभाग के आधिकारिक आल इंडिया एवरेज कीमतों के आंकड़ों में चना दाल की कीमत एक साल में 65 रुपये किलो से बढ़कर 75 रुपये किलो ही हुई है। वहीं अरहर की कीमत 90 रुपये से बढ़कर 110 रुपये, उड़द दाल की कीमत 100 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 110 रुपये किलो और मसूर दाल की कीमत 77.50 रुपये से बढ़कर 85 रुपये किलो हुई है। यह बढ़ोतरी करीब 22 से 23 फीसदी के बीच है। जाहिर सी बात है कि यह बढ़ोतरी किसी भी तरह से नये कानून के तहत स्टॉक लिमिट लगाने के लिए तय 50 फीसदी कीमत बढ़ोतरी के मानक से आधी भी नहीं है।
खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 12 जनवरी, 2021 को तीन नये कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाये जाने के आदेश के बाद अभी तक कोई नया आदेश नहीं आया है। न ही सरकार ने इस संबंध में न्यायालय में आदेश में बदलाव के लिए कोई प्रयास किया है। इसका मतलब यह है कि तकनीकी स्तर पर इन कानूनों पर अमल नहीं किया जा सकता है। इसी का फायदा केंद्र सरकार को दालों पर स्टाक लिमिट लगाने का आदेश जारी करने की सहूलियत के रूप में मिला है। सरकार ने दालों पर स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला चार साल बाद लिया है। इसे 17 मई, 2017 में समाप्त कर दिया गया था। इसके साथ ही दालों के आयात की भी सरकार ने अनुमति भी पिछले दिनों दी गई है।
हालांकि खाद्य महंगाई दर में सबसे अधिक इजाफा खाद्य तेलों की वजह से हुआ है और इनकी कीमतें पिछले एक साल में दोगुना तक हो चुकी हैं। इनकी कीमतों पर नियंत्रण लिए सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क में पिछले दिनों कटौती की है। लेकिन कोई स्टाक लिमिट लागू नहीं की है। असल में दालों को लेकर न किसानों की कोई बड़ी लॉबी है और न ही उद्योग की। जबकि खाद्य तेलों में उद्योग की लॉबी काफी मजबूत है और इसके ब्रांडेड उत्पादों के कारोबार में बड़ी कंपनियां शामिल हैं।
चिंताजनक बात यह है कि सरकार ने दालों पर जब स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला किया है उस समय खरीफ फसलों की बुआई हो रही है। खरीफ में दालों का उत्पादन काफी अधिक होता है। इस स्थिति में सरकार का यह कदम किसानों के लिए सही संदेश लेकर नहीं जाएगा। चालू खरीफ सीजन में फसलों की बुआई के जो आंकड़े अभी तक आये हैं उनमें दालों का क्षेत्रफल पिछले साल से कम चल रहा है। वहीं पिछले करीब दो सप्ताह में मानसून की गतिविधियां अटकने से 2 जुलाई तक बारिश का स्तर पिछले साल के 11.3 फीसदी कम बनी हुई है। ऐसे में अगर मानसून सामान्य नहीं रहता तो इसका भी दालों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वहीं अक्तूबर तक लगाई गई स्टॉक लिमिट के चलते खरीफ की फसल बाजार में आने के समय भी कीमतों में गिरावट का रुख रह सकता है जो किसानों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।