चीनी उत्पादन के अनुमानों पर संशय, दाम बढ़े तो आ सकती है आयात की नौबत

ऐसे समय जब देश में चीनी उत्पादन में गिरावट है तब सरकार ने 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। लेकिन जिस तरह से घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं उससे त्योहारी सीजन में चीनी आयात की नौबत आ सकती है।

चीनी उद्योग की जबरदस्त लॉबिंग के चलते केंद्र सरकार ने चालू सीजन (2024-25) में 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी। लेकिन जिस तरह से चीनी उत्पादन में गिरावट के आंकड़े आ रहे हैं, उसके चलते इस निर्णय पर सवाल उठ सकते हैं। निर्यात में तेजी और उत्पादन में गिरावट के चलते घरेलू बाजार में चीनी की एक्स फैक्टरी कीमतें 4100 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई हैं। वहीं रिटेल कीमतें 45 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई  हैं। ऐसे में अब लगातार चीनी उत्पादन और इसकी कीमतों की समीक्षा हो रही है। अगर उत्पादन में गिरावट बढ़ती है तो चीनी की कीमतों में तेजी आएगी। साथ ही सीजन के अंत में बकाया स्टॉक घटकर 50 लाख टन से नीचे रह सकता है उस स्थिति में देश में चीनी के आयात की स्थिति पैदा हो सकती है। 

चीनी उत्पादन में कमी की मुख्य वजह उत्तर प्रदेश में रोगों के चलते गन्ना उत्पादन में गिरावट आना है। वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और अन्य राज्यों में गन्ने से चीनी की रिकवरी में भी एक फीसदी तक की गिरावट आई है। गन्ने की कमी के चलते देश की करीब एक तिहाई (186) चीनी मिलें  फरवरी में ही बंद हो चुकी हैं।

उद्योग सूत्रों का कहना है कि चीनी उत्पादन के ताजा अनुमान चिंताजनक हैं और अब देश में चीनी उत्पादन 260 से 265 लाख टन के आसपास रहने की संभावना है जो पिछले साल के 319 लाख टन चीनी उत्पादन के मुकाबले 55 से 60 लाख टन कम रहेगा। देश की घरेलू चीनी खपत लगभग 285 लाख टन सालाना है। यानी उत्पादन खपत से करीब 25 लाख टन तक कम रह सकता है। पिछले सीजन के अंत में देश में चीनी का करीब 80 लाख टन का बकाया स्टॉक था। 10 लाख टन निर्यात होने और उत्पादन में गिरावट के चलते चालू चीनी सीजन के अंत में स्टॉक 50 लाख टन से नीचे आ सकता है।

उद्योग जगत के कुछ जानकर तो इस सीजन के आखिर में चीनी स्टॉक 40 लाख टन के आसपास रहने की आशंका जता रहे हैं। तय मानकों के मुताबिक तीन माह की खपत के बराबर स्टॉक होना चाहिए जो करीब 70 लाख टन बैठता है। उत्पादन में कमी का अहसास होने के चलते मार्च के लिए खुले बाजार में चीनी की कोटा भी पिछले साल से कम जारी किया गया है।

वहीं, चीनी की बेहतर कीमतों के चलते अधिकांश चीनी मिलों ने गन्ने के जूस से सीधे एथेनॉल उत्पादन को बंद कर दिया है। साथ ही बी-हैवी मोलेसेज से एथेनॉल उत्पादन को भी अधिकांश चीनी मिलों ने बहुत कम कर दिया है। इसके पीछे चीनी मिलें इन दोनों श्रेणियों के एथेनॉल की कीमतों को सरकार द्वारा नहीं बढ़ाने को वजह बता रही हैं।

इस साल दिवाली अक्टूबर में है और चीनी मिलों में नए सीजन का उत्पादन नवंबर में शुरू होता है। ऐसे में त्यौहारी सीजन में चीनी की आपूर्ति और खपत के बीच संतुलन बिगड़ सकता है। अगर कीमतें अधिक बढ़ती हैं तो त्यौहारी सीजन में चीनी के आयात की नौबत आ सकती है। यह स्थिति घरेलू उत्पादन में गिरावट के बावजूद निर्यात की अनुमति के फैसले पर सवाल खड़ा करेगी।

सूत्रों का कहना है कि चीनी निर्यात की अनुमति हासिल करने के लिए देश में चीनी उत्पादन के अनुमानों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। उद्योग के साथ ही राजनीतिक दबाव का भी सहारा लिया गया। एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष ने 20 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने के लिए दो बार खाद्य मंत्री प्रल्हाद जोशी को चिट्ठी लिखी। उद्योग लगातार 20 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति मांग रहा था हालांकि, सरकार ने 10 लाख टन निर्यात की ही अनुमति दी है।

चीनी उत्पादन में गिरावट और बढ़ती कीमतों के बावजूद इस साल प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। इसे पिछले साल के स्तर पर रखने का फैसला भी फरवरी में लिया गया, जब पेराई सीजन का अधिकांश हिस्सा बीत गया था।

28 फरवरी को उत्तर प्रदेश में चीनी (एम ग्रेड) की एक्स फैक्टरी कीमत (जीएसटी समेत) 3960 रुपये से 4130 रुपये प्रति क्विंटल रही। वहीं महाराष्ट्र में एस ग्रेड की एक्स फैक्टरी कीमत 3770 रुपये से 3830 रुपये प्रति क्विंटल, कर्नाटक में एस ग्रेड की कीमत 3800 रुपये से 3830 रुपये प्रति क्विटंल, गुजरात में एम ग्रेड की कीमत 3920 रुपये से 3950 रुपये प्रति क्विंटल और तमिलनाडु में एस ग्रेड कीमत  3980 से 4050 रुपये प्रति क्विंटल रही। उस दिन चीनी की खुदरा कीमत 45.10 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई। निर्यात के लिए लंदन (एफओबी) कीमत 540 डॉलर प्रति टन, यानी करीब 4365 रुपये प्रति क्विंटल रही। आने वाले दिनों में उत्पादन में गिरावट की तस्वीर साफ होने पर उसका असर कीमतों पर दिखेगा। 

उत्पादन में कमी की आशंका के चलते ही सरकार ने चालू माह के लिए खुले बाजार के चीनी कोटे में कमी की है। इसे पिछले साल से कम जारी किया गया है। मौजूदा स्थिति सरकार के लिए तो चुनौतीपूर्ण है ही, चीनी उद्योग की जवाबदेही बढ़ा सकती है। कम उत्पादन और बढ़ती कीमतों के कारण अगर चीनी का आयात करना पड़ा तो वह भी महंगा पड़ेगा। क्योंकि वैश्विक बाजार में इस साल चीनी का उत्पादन मांग से करीब 50 लाख टन कम है।