चालू चीनी साल (2023-24) में देश में चीनी का उत्पादन 321.5 लाख टन रहा है जो पिछले साल (2022-23) के 330.90 लाख टन चीनी उत्पादन से 2.92 फीसदी कम है। उद्योग के 31 मई, 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल चीनी का उत्पादन 9.65 लाख टन कम रहा है। चीनी उत्पादन में यह गिरावट शुरुआती अनुमानों के मुकाबले काफी कम है जिसे देखते हुए सरकार ने गन्ने के रस और बी-हैवी शीरे से एथेनॉल उत्पादन पर रोक लगा दी थी।
उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, नये साल में एक अक्तूबर, 2024 को चीनी का ओपनिंग स्टॉक करीब 85 लाख टन रहेगा जो तीन माह की औसत खपत से काफी अधिक है। ऐसे में अगर सरकार चीनी का उत्पादन गिरने की आशंका में दिसंबर, 2023 में गन्ने के रस और बी-हैवी शीरे से एथेनॉल उत्पादन पर रोक नहीं लगाती तो उससे जहां पेट्रोल में एथेनॉल की ब्लैंडिंग का औसत 15 फीसदी पर पहुंच जाता। वहीं चीनी उद्योग को भी नुकसान नहीं उठाना पड़ता। मई तक एथेनॉल ब्लैंडिंक का स्तर 12.48 फीसदी ही रहा है।
चीनी उद्योग का कहना है कि सरकार द्वारा गन्ने का फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) बढ़ाये जाने और दूसरी लागतों के चलते चीनी उत्पादन की लागत करीब 250 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गई है। इसलिए चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) मौजूदा 31 रूपये प्रति किलो से बढ़ाकर 42 रुपये प्रति किलो किया जाना चाहिए। सरकार ने आखिरी बार चीनी का एमएसपी फरवरी, 2019 में बढ़ाकर 31 रुपये प्रति किलो किया था। पांच साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद यह उसी स्तर पर है।
उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल गरमी अधिक होने और लोक सभा चुनाव के चलते चीनी की खपत बढ़ी है और औसतन 275 लाख टन के मुकाबले इस साल घरेलू खपत 290 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। लेकिन इसके बावजूद चीनी उद्योग के पास 20 लाख टन चीनी को निर्यात करने या एथेनॉल में तब्दील करने की संभावना थी जिसका उपयोग नहीं हुआ है। इसके चलते उद्योग पर वर्किंग कैपिटल का बोझ बढ़ने के साथ ही चीनी के स्टॉक की कैरीओवर लागत बढ़ी है।
अब फायदेमंद नहीं निर्यात
ब्राजील के वैश्विक बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के चलते अब भारतीय चीनी का निर्यात फायदेमंद नहीं रहा है। सरकार ने पिछले साल चीनी के निर्यात को रेस्ट्रिक्टेड लिस्ट यानी प्रतिबंधित सूची में डाल दिया था जिसे 31 अक्तूबर, 2024 तक बढ़ाया। इसलिए चालू सीजन के लिए निर्यात का कोटा जारी नहीं किया था। इस समय व्हाइट शुगर की वैश्विक कीमत 19.25 सेंट है जो करीब 40 रुपये प्रति किलो बैठती है। जबकि घरेलू बाजार में रिफाइंड शुगर की एक्स फैक्टरी कीमत 3900 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। इसलिए निर्यात करना अब फायदेमंद नहीं है।
एथेनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम पर असर
गन्ने के रस और बी-हैवी शीरे से एथेनॉल उत्पादन पर रोक का असर एथेनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम पर भी पड़ा है। एथेनॉल सप्लाई साल (1 नवंबर, 2023 से 31 अक्तबूर, 2024) में मई तक पेट्रोल में एथेनॉल ब्लैंडिंग का स्तर 12.48 फीसदी रहा है। सरकारी तेल कंपनियों के मुताबिक, उन्होंने 26 मई, 2024 तक 327.31 करोड़ लीटर एथेनॉल खरीदा है। जबकि पूरे साल की जरूरत 825 करोड़ लीटर है। इसमें से चीनी उद्योग ने 165.37 करोड़ लीटर की आपूर्ति की है जो कुल आपूर्ति का 50.52 फीसदी है। वहीं ग्रेन सेक्टर ने 161.96 करोड़ लीटर की आपूर्ति की है जो कुल आपूर्ति का 49.48 फीसदी है।
चीनी उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगर दिसंबर में गन्ने के रस और बी-हैवी मोलेसेस से एथेनॉल बनाने पर रोक नहीं लगती तो ब्लैंडिंग 15 फीसदी तक पहुंच सकती थी। मई माह में 15 फीसदी ब्लैंडिंग का स्तर रहा है। लेकिन यह केवल एक माह में ही हासिल हुआ है। जबकि सरकार ने 2025 तक 20 फीसदी एथेनॉल ब्लैंडिंग का लक्ष्य रखा है।
चीनी उत्पादन में महाराष्ट्र अव्वल
जहां तक चीनी उत्पादन की बात है तो इसमें 110.20 लाख टन उत्पादन के साथ महाराष्ट्र पहले स्थान पर रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश का चीनी उत्पादन 103.65 लाख टन रहा है। चालू सीजन में महाराष्ट्र का उत्पादन 4.90 लाख टन बढ़ा है जबकि उत्तर प्रदेश में पिछले साल के मुकाबले चीनी उत्पादन में 1.15 लाख टन की गिरावट आई है।सीजन के शुरू में महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन में गिरावट की आशंका जताई गई थी लेकिन अक्तूबर के बाद से बारिश होने का फायदा मिलने से वहां उत्पादन बढ़ गया है।