चीनी उद्योग और सरकार के अनुमानों के आधार पर चालू पेराई सीजन (2023-24) में चीनी का उत्पादन 315 लाख टन रहने का अनुमान है। उद्योग का कहना है कि उत्पादन 317 लाख टन रहेगा, वहीं सरकार का अनुमान 314 लाख टन चीनी उत्पादन का है। एथेनॉल समेत कुल उत्पादन 338 लाख टन रहने की संभावना है। चालू सीजन के लिए सरकार ने 17 लाख टन चीनी को एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट करने की अनुमति दी है। वहीं पिछले सप्ताह लिए फैसले में अगले पेराई सीजन (2024-25) के लिए गन्ने का एफआरपी 25 रुपये बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विटंल कर दिया है।
इन परिस्थितियों के बीच निजी और सहकारी चीनी मिल उद्योग के संगठनों ने सरकार से चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने की मांग की है। सालाना करीब 285 लाख टन चीनी की खपत के आधार पर उद्योग का कहना है कि सरकार को कम से कम 10 लाख टन अतिरिक्त चीनी को एथेनॉल के लिए डायवर्ट करने की अनुमति देनी चाहिए। ऐसा नहीं होने की स्थिति में सरकार को दस लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाना चाहिए। इन मुद्दों को लेकर 29 फरवरी को सहकारी चीनी मिलों की संस्था नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) और निजी चीनी मिलों की संस्था इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के प्रतिनिधि केंद्रीय खाद्य सचिव के साथ बैठक करेंगे।
सूत्रों के मुताबिक, खाद्य सचिव के साथ बैठक में दोनों संगठनों के चार-चार प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसी मुद्दे पर उद्योग प्रतिनिधियों ने खाद्य मंत्री पीयूष गोयल से मिलने का समय भी मांगा है। चीनी उद्योग के प्रतिनिधि केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह के साथ भी मिलना चाहते हैं।
उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि चालू सीजन में चीनी का ग्रॉस उत्पादन 338 लाख टन रहने की संभावना है। जो पिछले साल 366 लाख टन रहा था। पिछले साल एथेनॉल उत्पादन के लिए 45 लाख टन चीनी का डायवर्सन किया गया था। इस साल अभी तक सरकार ने 17 लाख टन चीनी डायवर्जन की सीमा तय कर रखी है। सरकार का अनुमान है कि एथेनॉल के डायवर्जन के बाद करीब 314 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। वहीं चीनी उद्योग का अनुमान है कि उत्पादन 317 लाख टन रहेगा। ऐसे में 315 लाख टन को उत्पादन का औसत माना जा सकता है।
ऐसे में उद्योग का कहना है कि चीनी की उपलब्धता पिछले साल के 57 लाख टन बकाया स्टॉक के साथ कुल 372 लाख टन होगी। वहीं देश में चीनी की इस साल की अनुमानित खपत 285 लाख टन है। ऐसे में देश मेंं करीब 87 लाख टन अतिरिक्त चीनी है। सीजन के अंत में एक अक्तूबर को बकाया के मानकों के आधार पर 60 लाख टन चीनी का स्ट़ॉक होना चाहिए। जबकि उत्पादन के अनुमानोें के आधार पर यह बकाया स्टॉक काफी अधिक है। इस स्थिति में यह स्टॉक बनाये रखने पर चीनी मिलों के ऊपर अतिरिक्त वित्तीय बोझ होगा। उस स्थिति में सरकार को कम से कम दस लाख टन को एथेनॉल के लिए डायवर्ट करने की अनुमति देनी चाहिए। ऐसा करने से जहां सरकार के एथेनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम (ईबीपी) के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी वहीं चीनी उद्योग की वित्तीय स्थिति बेहतर होने से चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों को समय से भुगतान करने में आसानी होगी।
वहीं बैठक का दूसरा बड़ा मुद्दा चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी करना है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी के समय ही लागत के आधार पर चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी की सिफारिश करनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसका चीनी मिलों और किसान दोनो को नुकसान हो रहा है। सरकार द्वारा तय चीनी का एमएसपी साल 2019 से 31 रुपये प्रति किलो पर स्थिर है। पांच साल से बढ़ोतरी नहीं होना उद्योग के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। वहीं 27 फरवरी को देश में चीनी की एक्स-फैक्टरी कीमत 3360 रुपये से 3830 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रही। उत्तर प्रदेश में एम ग्रेड की चीनी की एक्स-फैक्टरी कीमत 3730 रुपये से 3830 रुपये प्रति क्विंटल रही। वहीं महाराष्ट्र में एस ग्रेड की चीनी की कीमत 3360 रुपये से 3450 रुपये प्रति क्विंटल रही।
असल में सरकार ने आगामी लोक सभा चुनावों को देखते हुए पिछले सप्ताह गन्ने के एफआरपी में 25 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर इसे 340 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला लिया था। ऐसा पहली बार हो रहा है कि सरकार ने फरवरी माह में ही आगामी अगले सीजन का एफआरपी तय किया गया हो। गन्ने का पेराई सीजन अक्तूबर से सितंबर के बीच चलता है। सामान्य तौर पर गन्ने का एफआरपी अगस्त के आसपास घोषित होता रहा है। सीएसीपी ने इस साल सामान्य बरसों के मुकाबले समय से पहली गन्ने के एफआरपी पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी और इसी के आधार पर साल 2024-25 के लिए एफआरपी पर कैबिनेट की मुहर फरवरी में ही लग सकी। करीब आठ फीसदी की बढ़ोतरी के साथ सरकार करोड़ों गन्ना किसानों को संदेश देना चाहती है कि वह उनके हित में अहम फैसला ले रही है। चुनावों के एकदम पहले सरकार के इस कदम को गन्ना किसानों को लुभाने के कदम कदम के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं इस फैसले के बाद चीनी उद्योग भी सरकार पर चीनी के एमएसपी में बढ़ोतरी का दबाव बना रहा है। इसी के लिए चीनी उद्योग अधिकारियों और मंत्रियों के साथ बैठक कर रहा है। हालांकि चुनावों के नजदीक होने और चीनी की कीमतों पर अतिसंवेदनशील सरकार इस बारे में जल्द कोई फैसला लेगी उसकी संभावना काफी कम है।