हरित क्रांति ने भारत में, खासकर पंजाब और हरियाणा में कृषि का तौर-तरीका बदल दिया। गेहूं और धान की अधिक उपज वाली किस्मों, सरकार के रूप में गारंटीशुदा खरीदार और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से खेती दो फसलों की हो गई और इस तरह पराली जलाने की प्रथा को बढ़ावा मिला। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल 50 करोड़ टन फसल अवशिष्ट निकलता है। फसलों के अवशिष्ट का 70% चावल, गेहूं, मक्का और मिलेट से निकलता है।
पराली जलाना अक्टूबर में शुरू होता है और नवंबर में यह चरम पर पहुंच जाता है। ठीक उसी समय दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी होती है। पराली जलाना रोकने के लिए इस पर प्रतिबंध लगाने के साथ किसानों को दंडित भी किया गया, लेकिन उससे समस्या का समाधान नहीं हुआ। भविष्य में इसे रोकने के लिए स्थाई और प्रभावी समाधान की जरूरत है।
गंभीर वायु प्रदूषण से सांस और दिल की बीमारी, फेफड़ों में कैंसर तथा अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चे, बुजुर्ग और गरीब इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन लोगों पर इसका असर ज्यादा देखा जा रहा है जो पहले कोविड-19 की चपेट में आ चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 2.5 पार्टिकल सेहत के लिए सबसे नुकसानदायक प्रदूषक तत्व है। यह हमारे फेफड़ों तक पहुंच जाता है। दिल्ली-एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले 2.4 करोड़ लोग वास्तव में धुए में सांस ले रहे हैं, और जैसा कि अनेक लोग कहते हैं, एक गैस चैंबर में रहते हैं।
अभी दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 का कंसंट्रेशन विश्व स्वास्थ्य संगठन के एयर क्वालिटी इंडेक्स मानकों से 20.9 गुना ज्यादा है। इन महीनों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से 500 के बीच रहता है और कई बार दिल्ली-एनसीआर में 500 के ऊपर भी चला जाता है। पूरे इलाके के ऊपर स्मॉग की मोटी परत बन जाती है।
बीते 50 दिनों में पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं 12.59% बढ़कर 26583 हो गईं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के आंकड़ों के अनुसार दिवाली के बाद घटनाओं में तेजी आई है। इन्हीं आंकड़ों के मुताबिक पंजाब की तुलना में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में धान की पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं।
जहरीले प्रदूषक तत्वों का स्तर बढ़ने और स्वास्थ्य की चेतावनी को देखते हुए दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की कि शनिवार से प्राइमरी स्कूल बंद रहेंगे और राज्य सरकार के कार्यालयों में आधे कर्मचारी घर से काम करेंगे। निजी कार्यालयों को भी ऐसा करने की सलाह दी गई है। पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय के अधीन काम करने वाले वाली संस्था सफर (SAFAR) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यहां लगातार दूसरे दिन हवा की क्वालिटी गंभीर रही। यहां पीएम 2.5 में 30% हिस्सा पराली का था।
पिछले कुछ दिनों से पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं पर भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप चले। हालांकि शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब में धान की पराली जलाने की जिम्मेदारी लेते हुए अगले साल इसे नियंत्रित करने का वादा किया। मान के साथ साझी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने कहा, “पंजाब में हमारी आम आदमी पार्टी की सरकार है और अगर वहां पराली जलाई जा रही है तो उसके लिए हम जिम्मेदार हैं, किसान इसके लिए जिम्मेदार नहीं।”
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि पराली जलाना राजनीतिक मुद्दा नहीं। हालांकि उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि केंद्र सरकार की तरफ से फंड दिए जाने के बावजूद किसान पराली जला रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा जहां कोर्ट 10 नवंबर को इसकी सुनवाई करने पर राजी हुआ है। पराली जलाने पर दिशानिर्देश जारी करने की मांग करते हुए एक जनहित याचिका जारी की गई है।
हवा में प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों को नोटिस भेजा है और 10 नवंबर को ही इस पर चर्चा के लिए उन्हें बुलाया है। आयोग का कहना है कि वह इस दिशा में अब तक उठाए गए कदमों से संतुष्ट नहीं है और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
दिल्ली सरकार ने एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन (CAQM) की सिफारिशों के आधार प्रतिबंधात्मक कदम उठाने का निर्णय लिया है। इसमें गैर-बीएस6 डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल है। शुक्रवार को दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 450 पर पहुंच गया था। यह गंभीरतम श्रेणी से थोड़ा ही कम है। हालत को देखते हुए अथॉरिटी को ग्रेप के तहत प्रदूषण नियंत्रण मानक लागू करने पड़े। ग्रेप दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए उठाए जाने वाले कदमों को कहा जाता हैष एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से अधिक होना गंभीर माना जाता है। इस स्तर के प्रदूषण से लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचता है। जो लोग पहले से बीमार हैं उनकी स्थिति ज्यादा बिगड़ सकती है।
शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की तरफ से जून महीने में जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) के अनुसार हवा की खराब क्वालिटी के कारण दिल्लीवासियों की जीवन प्रत्याशा 10 साल कम हो जाएगी। डीपीसीसी की तरफ से 2021 में किए गए एक विश्लेषण में पता चला कि दिल्ली के लोग 1 नवंबर से 15 नवंबर के बीच सबसे खराब हवा में सांस लेते हैं। पराली जलाने की घटनाएं उसी समय सबसे ज्यादा होती हैं।
अगर ग्रीनपीस की रिपोर्ट को सही माना जाए तो खतरनाक पीएम 2.5 प्रदूषण हजारों लोगों की जान ले रहा है और शहर की अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है। इस गंभीर स्थिति की सबसे खराब बात यह है कि यह कोई एक बार होने वाली घटना नहीं बल्कि ऐसा हर साल होता है। यहां तो एयर क्वालिटी इंडेक्स पूरे साल खराब रहता है।
सिंगापुर और मलेशिया में भी 2 साल पहले ऐसी स्थिति आई थी। वहां किसानों ने ‘स्लैश एंड बर्न’ तकनीक से जंगल जलाए थे। इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से इंसेंटिव मिला था। ब्राजील के अमेजन तथा अन्य जगहों पर भी अनियंत्रित आग की घटनाएं हुईं, लेकिन उन सबका भी उचित समाधान निकाला गया। उत्तरी राज्यों में प्रदूषण कम करने के लिए वैसे कदम ही उठाने की जरूरत है।
(लेखक नई दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और पब्लिक पॉलिसी विश्लेषक हैं)