रबी सीजन (2022-23) में रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन होने के बावजूद बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए गेहूं के स्टॉक की सीमा (स्टॉक लिमिट) निर्धारित करने का फैसला लिया है। इसके लिए 12 जून को अधिसूचना जारी कर दी गई है। साल 2006-07 के बाद पहली बार गेहूं पर स्टॉक लिमिट लागू की गई है। उस साल 6 अगस्त को गेहूं पर स्टॉक लिमिट लागू की गई थी। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार ने 11.2 करोड़ टन गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़े पिछले दिनों जारी किए थे। साथ ही रबी मार्केटिंग सीजन (2023-24) की समाप्ति में अभी तीन दिन बचे हुए हैं। तकनीकी रूप से कई राज्यों में गेहूं की सरकारी खरीद 15 जून तक होती है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के अनुसार इस साल अभी तक 262 लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई है। पिछले साल गेहूं की कीमतों में आई तेजी के चलते सरकार ने 13 मई, 2022 को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि सरकारी आंकड़ों में पिछले साल का उत्पादन 10.7 करोड़ टन रहा था।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी अधिसूचना में कहा गया है कि सभी राज्यों में 31 मार्च, 2024 तक गेहूं पर स्टॉक लिमिट लागू रहेगी। इसके तहत थोक व्यापारियों के लिए 3000 टन गेहूं की स्टॉक सीमा तय की गई है। रिटेल आउटलेट के लिए 10 टन गेहूं की सीमा तय की गयी है। वहीं रिटेल चेन के लिए प्रति आउटलेट 10 टन और कुल 3000 टन सीमा तय की गई है। वहीं प्रोसेसर्स के लिए स्थापित क्षमता का 75 फीसदी या साल (2023-24) के बाकी माह में प्रति माह की क्षमता को साल की बकाया अवधि से गुणा करने के बाद जो भी कम हो वह सीमा तय की गई है। इसके साथ ही खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल पर कारोबारियों को नियमित रूप से स्टॉक की जानकारी देनी होगी। सभी संबंधित इकाइयों को 30 दिन के भीतर स्टॉक को उनके लिए निर्धारित सीमा तक लाना होगा।
सरकार के इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि वह गेहूं की कीमतों को लेकर बहुत ही चिंतित है। जबकि इस साल देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने का दावा सरकार की ओर से किया गया है। यह पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन अधिक है। गेहूं के निर्यात पर 13 मई, 2022 से ही प्रतिबंध लागू है। जबकि पिछले साल 70 लाख टन गेहूं का निर्यात भी हुआ था। ऐसे में रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद सरकारी खरीद सीजन के दौरान ही कीमतों का 2125 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक होना उत्पादन के आंकड़ों पर भी सवाल खड़ा करता है।
पिछले साल मार्च के मध्य के बाद तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से उत्पादन प्रभावित हुआ था लेकिन सरकार ने अपने अनुमानों में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया था। दूसरी और दिसंबर आते-आते गेहूं की कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई थी। उसके बाद कीमतों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना के तहत 50 लाख टन गेहूं की बिक्री का फैसला लिया था जिसमें से करीब 34 लाख टन गेहूं बेचा गया। अभी सरकार ऐसा कदम उठा सकती है। यह बात अलग है कि 1 जून, 2023 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 312 लाख टन था जो पिछले साल इसी समय 311.42 लाख टन था।
सरकार के लिए राहत की बात यह है कि इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें पिछले साल के मुकाबले करीब 40 फीसदी कम हैं। ऐसे में आयात के जरिये आपूर्ति बढ़ाने का विकल्प भी है। अगले साल अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक रूप महत्वपूर्ण कई राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में सरकार गेहूं जैसी मुख्य खाद्य उत्पाद की कीमतों पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयास करेगी। आज का फैसला इसी रणनीति का संकेत है।