कृषि क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाने के साथ टिकाऊ खेती को अपनाया जाना चाहिए और निर्यात बढ़ाने वाली नीतियां लागू की जानी चाहिए। इससे कृषि विकास दर तो तेज होगी ही, विकास भी समावेशी होगा। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में कृषि से संबंधित जो अपेक्षाएं हैं, उनमें ये बिंदु भी शामिल हैं। विशेषज्ञों ने एफपीओ को बढ़ावा देने और फसल बीमा का प्रीमियम घटाने जैसे भी सुझाव दिए हैं।
प्राइमस रिसर्च ने बजट से जो उम्मीदें जताई हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण किसानों को सशक्त बनाने के लिए एफपीओ ईकोसिस्टम को मजबूत करना है। इसका कहना है कि खेती में ऐसे तरीके अपनाए जाने चाहिए जिन पर जलवायु का असर अधिक न हो। इसने खेती में ड्रोन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सैटेलाइट इमेजिंग का इस्तेमाल बढ़ाने की बात कही है।
इसका कहना है कि सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे जैविक खेती और जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिले। कोल्ड चेन, वेयरहाउसिंग और फूड प्रोसेसिंग व्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ निर्यात बढ़ाने पर भी जोर दिया जाना चाहिए। इसने अनुसंधान में राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों और किसान विकास केंद्रों की भूमिका बढ़ाने की भी बात कही है।
इसका आकलन है कि देश में 86% किसान छोटे और सीमांत हैं। छोटी जोत के कारण उत्पादकता घटती है। कृषि उपकरणों और उन्नत टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कम होने से भी उत्पादकता और किसानों की आय पर असर पड़ता है। अपर्याप्त भंडारण क्षमता, सभी इलाकों में गोदाम न होने, वैज्ञानिक तरीके से भंडारण और हैंडलिंग न होने आदि कारणों से 20 से 30 फीसदी उपज नष्ट हो जाती है।
आरबीआई चेयर प्रोफेसर, सीआरआरआईडी डॉ. सतीश वर्मा के अनुसार, “सरकार ने 10 हजार एफपीओ गठित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इसके लिए शुरुआती चरण में उनकी वित्तीय मदद भी की जा रही है। इस पहल को आगे ले जाने के लिए एफपीओ को कृषि उद्यम के रूप में विकसित करने की जरूरत है। ये एफपीओ प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग जैसे कार्य भी करें।”
सोहनलाल कमोडिटी मैनेजमेंट ग्रुप के सीईओ संदीप सभरवाल के अनुसार, “कोविड-19 के समय कृषि क्षेत्र को अनेक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। बजट में किसानों के भले के लिए विभिन्न बीमा योजनाओं की कवरेज बढ़ाई जा सकती है। यह जरूरी है कि वेयरहाउसिंग और एग्री फाइनेंसिंग जैसे कृषि उद्योगों को सरकार उभरते सेक्टर के रूप में देखे। इस सेक्टर के लिए सस्ते बीमा और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए विवादों के जल्दी समाधान की जरूरत है।” उन्होंने ऐसी स्कीमों की जरूरत भी बताई जिनसे कृषि अनुसंधान और टेक्नोलॉजी पर खर्च बढ़े।
एग्री टेक्नोलॉजी से जुड़ी एनालिटिक्स कंपनी लीड्स कनेक्ट के सीएमडी नवनीत रविकर का कहना है कि एक हेक्टेयर से कम जोत वाले सभी किसानों के लिए फसल बीमा प्रीमियम सिर्फ 10 रुपये सांकेतिक की जानी चाहिए। उनके बाकी प्रीमियम का 70 फीसदी केंद्र और 30 फीसदी राज्य सरकारें दें। सभी बीमित खेतों की जियो टैगिंग हो और उन्हें आधार से जोड़ा जाए। क्रॉप मैनेजमेंट के लिए रिमोट सेंसिंग और यूएवी में रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए अलग फंड बनाया जाना चाहिए। एग्री रिसर्च में इस्तेमाल होने वाले ड्रोन और उसके उपकरणों पर 50 फीसदी (या 10 लाख रुपये) सब्सिडी दी जानी चाहिए।
हाइड्रो ग्रीन्स एग्री सॉल्यूशंस के संस्थापक और सीईओ वसंत माधव कामथ के अनुसार वित्त मंत्री बजट में ग्रीन प्रोजेक्ट के लिए राहत पैकेज का ऐलान कर सकती हैं। इससे खास कर डेयरी उद्योग को ब्याज और मूलधन के भुगतान में मदद मिलेगी और वे ज्यादा ‘ग्रीन कैपिटल’ जुटाने के लिए प्रेरित होंगे।