चालू खरीफ सीजन 2024 में देश में सोय़ाबीन का उत्पादन 125.817 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष के 118.744 लाख टन की तुलना में 5.96 फीसदी अधिक है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) द्वारा जारी किए गए सोयाबीन उत्पादन के अनुमान में यह जानकारी दी गई है।
सोपा के अनुसार, पिछले वर्ष (2023-24) की तुलना में इस वर्ष उत्पादन में 7.073 लाख टन की वृद्धि होने का अनुमान है। वर्ष 2024 में औसत उपज 1063 किलोग्राम/हेक्टेयर रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2023 में 1002 किलोग्राम/हेक्टेयर थी।
सोपा के मुताबिक, चालू सीजन में सोयाबीन का कुल बुवाई क्षेत्रफल 118.318 लाख हेक्टेयर है, जबकि सरकारी अनुमान 127.138 लाख हेक्टेयर है। यह अंतर 8.820 लाख हेक्टेयर का है, जिसका मुख्य कारण महाराष्ट्र में अंतर-फसल और मध्य प्रदेश में मक्का की खेती में बदलाव बताया गया है।
सोपा के अनुसार, इस साल मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन 52.46 लाख टन से बढ़कर 55.39 लाख टन होने का अनुमान है, हालांकि क्षेत्रफल में मामूली गिरावट आई है। महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन बढ़कर 50.16 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 46.91 लाख टन था। हालांकि यहां क्षेत्रफल घटकर 45 लाख हेक्टेयर हो गया है जो पिछले साल 45.64 लाख हेक्टेयर था।
राजस्थान में सोयाबीन उत्पादन बढ़कर 10.52 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल 10.12 लाख टन था। यहां क्षेत्रफल बढ़कर 11.12 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 10.94 लाख हेक्टेयर था। वहीं, कर्नाटक में क्षेत्रफल बढ़ने के कारण उत्पादन बढ़कर 4.26 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल 3.87 लाख टन था। तेलंगाना में उत्पादन घटकर 1.49 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल उत्पादन 1.67 लाख टन हुआ था। गुजरात में अधिक क्षेत्रफल के साथ उत्पादन 2.94 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 2.48 लाख टन था।
सोपा द्वारा 2024 के लिए सोयाबीन उत्पादन का यह सर्वेक्षण 2 अक्टूबर से 10 अक्टूबर 2024 के बीच किया गया था, जिसमें उनकी दो टीमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के 51 प्रमुख सोयाबीन उत्पादक जिलों में गईं। इन जिलों में 5021 किलोमीटर की दूरी तय करके फसल का क्षेत्र और उत्पादन का अनुमान लगाया गया। मध्य प्रदेश के 25 जिलों, महाराष्ट्र के 20 जिलों और राजस्थान के 6 जिलों में यह सर्वेक्षण किया गया। इस साल उत्पादन में बढ़ोतरी का मुख्य कारण अनुकूल मौसम और कृषि पद्धतियों में सुधार बताया गया है।