शनिवार को सिंघु बार्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा की मैराथन बैठक में सरकार के साथ बातचीत करने के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला लिया गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समेत तमाम मांगों पर यह समिति सरकार के साथ बातचीत करेगी। सरकार के साथ बातचीत में जो भी फैसला होगा उसे सात दिसंबर को संयुक्त मोर्चा के सामने रखा जाएगा। हालांकि अभी तक मोर्चा को सरकार की ओर से बातचीत का कोई न्यौता नहीं मिला है लेकिन इस बात की मजबूत संभावना है कि जल्दी ही बातचीत शुरू हो सकती है। इस समिति में भारतीय किसान यूनियन के नेता युद्धवीर सिंह, हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी, पंजाब के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, मध्य प्रदेश के किसान नेता शिवकुमार कक्का और महाराष्ट्र के किसान नेता डॉ. अशोक धवले शामिल हैं। मोर्चा सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि समिति के गठन में जहां क्षेत्रीय आधार पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है वहीं आंदोलन कर रहे किसान संगठनों की पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखा गया है।
उक्त सूत्र ने स्पष्ट किया है कि यह समिति संयुक्त किसान मोर्चा की सभी मांगों पर सरकार के साथ बातचीत करने के लिए अधिकृत है। इन मांगों में सबसे प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी है। इसके अलावा आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज हुए मामले और आंदोलन के दौरान जिन किसानों कि मृत्यु हुई है उनके परिजनों को मुआवजा और उनके पुनर्वास की मांग प्रमुख है। मोर्चा पदाधिकारियों का कहना है इस समिति का गठन इस सवाल के जवाब के लिए भी किया गया है जिसमें लगातार कहा जा रहा है कि किसानों के नेताओं की कोई एक छोटी कमेटी नहीं है जिसके साथ बातचीत कर किसानों की मांगों का हल निकाला जा सके। संयुक्त किसान मोर्चा के तहत 40 किसान संगठन शामिल हैं। इसके पहले भी मोर्चा ने एक नौ सदस्यीय समिति गठित की थी जो आंदोलन को लेकर फैसले लेती रही है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार की ओर से बैक डोर बातचीत की कोशिशें पहले भी की गई लेकिन वह कामयाब नहीं हुई। हालांकि ताजा घटनाक्रम को भी बैक डोर प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। सरकार के कुछ मंत्री लगातार बातचीत का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे थे। प्रधानमंत्री द्वारा कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद बैक डोर बातचीत के प्रयास अधिक तेज हुए। मौजूदा घटनाक्रम को उसी के नतीजे के रूप में देखा जा सकता है। सरकार नहीं चाहती है कि अगले कुछ माह में पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों तक आंदोलन खिंचे। इसके चलते भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक नुकसान हो सकता है। इसलिए उसकी कोशिश है कि आंदोलन को किसी भी तरह से समाप्त कराया जाए। ऐसे में लगता है कि आज संयुक्त किसान मोर्चा की जो समिति गठित हुई है उसके साथ बातचीत में कुछ रास्ता निकाला जा सकता है।
जहां तक सरकार की ओर से बातचीत के न्यौते की बात है तो उस पर नवगठित समिति के एक सदस्य ने साफ किया कि अभी तक हमें सरकार की ओर से बातचीत का कोई न्यौता नहीं मिला है। हम इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस समिति के साथ सरकार की बातचीत में हल निकलने की संभावना पर वह कुछ आश्वस्त जरूर लगे। इस बात का कयास लगाया जा रहा है कि संयुक्त मोर्चा की इस समिति के साथ बातचीत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हो सकते हैं, लेकिन इस पर स्थिति आने वाले एक दो दिन में साफ हो जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को गुरू पर्व के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी। साथ ही एमएसपी समेत दूसरे मुद्दों पर एक समिति गठित करने की बात कही थी। इस घोषणा के बाद कैबिनेट ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए द फार्म लाॉज रिपील बिल, 2021 को मंजूरी थी। जिसे 29 नवंबर को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया था और उसके बाद राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद यह कानून समाप्त हो गये। तीन कानूनों की वापसी किसान संगठनों की सबसे बड़ी मांग थी। लेकिन किसान संगठनों ने आंदोलन समाप्त नहीं किया है और उनका कहना है कि हमारी दूसरी सबसे अहम मांग एमएसपी पर कानूनी गारंटी देना है। जब तक यह मांग पूुरी नहीं होती तो हम आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे। देश के कई हिस्सों से आये किसान 27 नवंबर, 2020 से तीन कृषि कानूनों की समाप्ति और एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। इसके पहले कई माह तक किसानों ने पंजाब और दूसरे हिस्सों में आंदोलन चला रखा था।