केंद्र सरकार और किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के बीच आंदोलन समाप्त करने के मुद्दो पर बनी सहमति पर केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल का पत्र मिलने के बाद मोर्चा ने किसान आंदोलन समाप्त करने का फैसला ले लिया है। किसान संगठन 11 दिसंबर को दिल्ली की सीमाओं पर सभी मोर्चों को समाप्त कर देंगे और वापस अपने घरों को लौट जाएंगे। संयुक्त मोर्चा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक आज दोपहर को संयुक्त मोर्ची की सिंघु बार्डर की बैठक में यह फैसला लिया गया। यह फैसला केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय सचिव का आधिकारिक पत्र मिलने के बाद लिया गया। पत्र की प्रति इस स्टोरी के साथ संलग्न है। इस पत्र में मंत्रालय ने संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच चल रही वार्ता में जिन मुद्दों पर सहमति हुई है उनके बारे में लिखा गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति के गठन, आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ केसों, बिजली बिल को पेश करने के बारे में किसानों की सहमति और पराली के मुद्दे पर किसानों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से राहत के साथ ही इस पत्र में आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजे और उनके पुनर्वास के बारे में सहमति की बात कही गई है। साथ ही कहा गया है कि जब इन सभी मुद्दों पर सहमति बन गई है तो आंदोलन को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।
इस बारे में मोर्चा के एक पदाधिकारी ने फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि 11 दिसंबर को किसान आंदोलन के लिए लगाये गये मोर्चों को खाली कर देंगे और अपने घरों को लौट जाएंगे। यह फसला 9 दिसंबर को दोपहर में हुई संयुक्त मोर्चा की बैठक में लिया गया। जिसका फोटो नीचे दिया गया है।
संयुक्त किसान मोर्चा के एक वरिष्ठ सदस्य ने रूरल वॉयस को बताया कि सरकार के साथ बातचीत पिछले करीब एक माह से चल रही थी। इस बातचीत में पहले सरकार ने पंजाब के किसान संगठनों के साथ सरकारी अधिकारियों को सहमति बनाने की राह निकालने का जिम्मा दिया था। साथ ही भारतीय किसान यून यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह के साथ कुछ दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह की बातचीत शुरू हुई। पंजाब के संगठनों में इस बातचीत में वहां के वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल शामिल हुए। सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत में सहमति बनती जा रही थी। कानूनों की वापसी की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद एमएसपी पर कानून की बात पर जोर था लेकिन बाद में मोर्चा समिति पर सहमत हो गया। लेकिन दूसरी बड़ा मुद्दा आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज हुए केसों की वापसी और आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजे और उनके पुनर्वास का था। दो दिन पहले इन मुद्दों पर भी सहमति बनती दिखी और सरकार का अनौपचारिक प्रस्ताव मोर्चा के पास पहुंचा।
इसके बावजूद मोर्चा ने आंदोलन की वापसी की घोषणा के पहले सरकार से लिखित में सहमति वाले मुद्दो पर पत्र की मांग की थी। आज सुबह भी मोर्चा के एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस के साथ बातचीत में साफ किया था कि जब तक हमें सरकार का आधिकारिक पत्र नहीं मिल जाता तब तक आंदोलन वापसी की घोषणा नहीं की जा सकती है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल का पत्र दोपहर में संयुक्त मोर्चा को मिला और उसके बाद मोर्चा की बैठक में आंदोलन वापसी की फैसला लिया गया। दिल्ली की सीमाओं पर किसान 11 दिसंबर को मोर्चे खाली कर देंगे और टोल प्लाजा पर लगे मोर्चों को 15 दिसंबर को समाप्त करने की बात मोर्चा के सूत्र कह रहे हैं।
पांच जून, 2020 को अध्यादेशों के जरिये सरकार तीन नये कृषि कानून लेकर आई थी। द फार्मर्स प्रॉडयूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) एक्ट, 2020, फार्मर्स (इंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्यूरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून, 2020 के नाम से यह कानून लाये गये थे। इनमें पहले दो कानून नये थे और तीसरे कानून में कई बड़े बदलाव कर इसे अधिक उदार बनाया गया था। इन कानूनों को रद्द करने वाले नये विधेयक संसद में पारित होने के बाद जहां पहले दो कानून समाप्त हो जाएंगे वहीं आवश्यक वस्तु अधिनियम पांच जून, 2020 के पहले की स्थिति में आ जाएगा।
इन तीन कृषि कानूनों के आने के कुछ दिन बाद ही इनका विरोध शुरू हो गया था। विरोध में तेजी आती गई और कुछ माह बाद ही यह किसानों के बड़े आंदोलन के रूप में बदल गया। स्थानीय स्तर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में आंदोलन के बाद किसानों ने 26 नवंबर, 2020 को दिल्ली कूच शुरू किया और उसे पुलिस द्वारा रोक दिये जाने के बाद किसानों ने 27 नवबंर, 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू कर दिया। जो अभी तक जारी है और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को दो दिन बाद एक साल हो जाएगा। इस आंदोलन के शुरू में सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच 11 बार वार्ता हुई जो नाकाम रही। वहीं जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक आदेश तक रोक लगा दी थी। साथ ही एक चार सदस्यीय समिति गठित की थी जिसे दो माह में रिपोर्ट देनी थी। समिति के एक सदस्य भूपिन्दर सिंह मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था। बाकी तीन सदस्यों प्रोफेसर अशोक गुलाटी, डॉ. पी के जोशी और अनिल घनवत ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को मार्च में सौंप दी थी। यह रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है।
इस बीच किसानों के लगातार चलते आंदोलन और विरोध के तेज होने का दौर जारी रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवबंर को गुरू पर्व के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए इन तीनों कानूनों को रद्द करने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। साथ ही किसान संगठनों की महत्वपूर्ण मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य् (एमएसपी) पर एक कमेटी बनाने की घोषणा भी की थी।
इसके बाद ही किसान संगठनों के साथ अनौपचारिक बातचीत शुरू हुई। यह बातचीत ही 9 दिसंबर को सरकार द्वारा सहमति के मुद्दों पर भेजी गई आधिकारिक चिट्ठी का नतीजा लेकर आई। साथ ही यह किसान आंदोलन इतिहास दर्ज हो गया। जिसकी अधिकांश मांगों को सरकार ने स्वीकार किया। यह बात अलग है कि यह आंदोलन एक साल से अधिक चला। जिसे सही मायने में एक राष्ट्रीय आंदोलन कहा जा सकता है।